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१८. ८. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर अनेक विधाओं में श्रीकृष्ण को समर्पित कविताओं का नया संग्रह।

कलम गही नहिं हाथ में- अभिव्यक्ति के चौदहवें जन्मदिवस के अवसर पर नवगीत के लिये एक विशेष पुरस्कार की घोषणा।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में विशेष फलाहारी व्यंजन- बादाम की खीर

गपशप के अंतर्गत- पर्वों के अवसर पर पेय के रूप में सोडा का प्रचलन बढ़ रहा है, पर क्या ये सेहत के लिये ठीक है जाने- सेहत के विरुद्ध सोडा

जीवन शैली में- शाकाहार एक लोकप्रिय जीवन शैली है। फिर भी आश्चर्य करने वालों की कमी नहीं। १४ प्रश्न जो शकाहारी सदा झेलते हैं- ९

सप्ताह का विचार में- फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करनेवाला मनुष्य ही मोक्ष प्राप्त करता है। - गीता

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- कि आज के दिन (१८ अगस्त को) बाजीराव प्रथम, विष्णु दिगंबर पलुस्कर, विजयलक्ष्मी पंडित, गुलजार, संदीप पाटिल का जन्म...

धारावाहिक-में- लेखक, चिंतक, समाज-सेवक और प्रेरक वक्‍ता, नवीन गुलिया की अद्भुत जिजीविषा व साहस से भरपूर आत्मकथा- अंतिम विजय का दूसरा भाग

वर्ग पहेली-१९८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

विशेषांकों की समीक्षाएँ

साहित्य एवं संस्कृति में-

प्रसिद्ध कथाकारों की विशिष्ट कहानियों के स्तंभ
गौरव गाथा में प्रेमचंद की कहानी- झाँकी

कई दिनों से घर में कलह मची हुई थी। माँ अलग मुँह फुलाये बैठी थी, स्त्री अलग। घर की वायु में जैसे विष भरा हुआ था। रात को भोजन नहीं बना, दिन को मैंने स्टोव पर खिचड़ी डाली, पर खाया किसी ने नहीं। बच्चों को भी आज भूख न थी। छोटी लड़की कभी मेरे पास आकर खड़ी हो जाती, कभी माता के पास, कभी दादी के पास, पर कहीं उसके लिए प्यार की बातें न थीं। कोई उसे गोद में न उठाता था, मानो उसने भी अपराध किया हो। लड़का शाम को स्कूल से आया। किसी ने उसे कुछ खाने को न दिया, न उससे बोला, न कुछ पूछा। दोनों बरामदे में मन मारे बैठे हुए थे और शायद सोच रहे थे- घर में आज क्यों लोगों के हृदय उनसे इतने फिर गये हैं। भाई-बहिन दिन में कितनी बार लड़ते हैं, रोना-पीटना भी कई बार हो जाता है, पर ऐसा कभी नहीं होता कि घर में खाना न पके या कोई किसी से बोले नहीं। यह कैसा झगड़ा है कि चौबीस घंटे गुजर जाने पर भी शांत नहीं होता, यह शायद उनकी समझ में न आता था। झगड़े की जड़ कुछ न थी। अम्माँ ने मेरी बहन के घर तीजा भेजने के लिए जिन सामानों की सूची लिखायी... आगे-
*

मुक्ता की कलम से पुराणकथा
अभिमान का अंत
*

डॉ. हरगुलाल गुप्त का आलेख
ब्रजभाषा के अल्पज्ञात कवि और कृष्
*

जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी से जानें
मध्यकाल में मथुरा की शिल्पकला
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पुनर्पाठ में- वीरनारायण शर्मा का आलेख
दो भूली बिसरी कृष्णभक्त कवयित्रियाँ

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पिछले सप्ताह-  

आचार्य संजीव सलिल की
लघुकथा- स्वजनतंत्र
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अशोक शुक्ला का आलेख
स्वतंत्रता सेनानी मदारी पासी
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अमरेश बहादुर अमरेश की कलम से
एक और जलियाँवाला- मुंशीगंज गोलीकांड
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शशि पाधा का संस्मरण
शांतिदूत

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भारत से डॉ सुधा पांडेय की पुराण कथा
इंद्र की स्वराज कामना

वर्षा ऋतु का समय था, आकाश घने मेघों से आच्छन्न। सायंकाल होते ही पर्वतों और घने कांतार की वृक्षावलियों में अंधकार छाने लगा। दैदीप्यमान सूर्य की लोकित प्रभायुक्त सुढ़ह देहयष्टि, आजानुबाहु एक व्यक्ति पगडंडी पर अपने विचारों में लीन मंदगति से चला जा रहा था। मुख किंचित अवसाद से मलिन किंतु दृढ़वती अस्तित्वयुक्त वह युवक अंतरिक्ष और द्युलोक सभी को अभिभूत कर रहा था, उसकी व्याप्ति का अंत न तो द्युलोक पा सकता था, न पृथिवी और न ही कोई अन्य लोक ! उसके दृढ़व्रत का अनुकरण करने को द्यावा पृथ्वी, वरुण, सूर्य और नदियाँ भी तत्पर रहती थीं। चलते-चलते युवक पथ में अचानक क्षणभर ठिठक गया, समीप के गुल्म से कोई आहट आयी....युवक ने अपना खड्ग संभाला ही था कि उसके सामने धम से कूदने की आवाज हुई।

कहीं कोई वन्य जीव या असुर तो नहीं ? इस आशंका से युवक संभलता, तभी उसने देखा विपत्ति कुछ भी नहीं थी, सामने मुस्कराती शची विद्यमान थी। आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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