अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

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५. १. २०१५

इस सप्ताह-

अनुभूति में- 11
नव वर्ष के अवसर पर विविध विधाओं में विभिन्न रचनाकारों की ढेर सी रचनाओं का सुंदर संकलन।

- घर परिवार में

रसोईघर में- गणेश संकष्टी के अवसर पर हमारी रसोई-संपादक शुचि लाई हैं स्वाद और स्वास्थ्य से भरपूर- तिल अखरोट और खजूर की पट्टी

वास्तु विवेक के अंतर्गत-- घर के निर्माण से संबंधित उपयोगी जानकारी से भरपूर विमल झाझरिया की लेखमाला- वास्तु विवेक में- भूखंड का चुनाव

जीवन शैली में- १५ आसान सुझाव जो हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखद और संतुष्ट बना सकते हैं - १५. तुलना करना छोड़ दें

सप्ताह का विचार- अधिकतर लोग नए साल की प्रतीक्षा केवल इसलिए करते हैं कि पुरानी आदतें नए सिरे से फिर शुरू की जा सकें। - अज्ञात

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- आज के दिन (५ जनवरी को) गुरू योगानंद परमहंस, मुरली मनोहर जोशी, मंसूर अली खाँ पटौदी, दीपिका पादुकोण का जन्म... विस्तार से

लोकप्रिय लघुकथाओं के अंतर्गत- अभिव्यक्ति के पुराने अंकों से- २४ जुलाई २००५ को प्रकाशित कमल चोपड़ा की लघुकथा — 'खेलने के दिन'

वर्ग पहेली-२१८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में-

साहित्य संगम में देवकांतन की तमिल कहानी का
हिंदी रूपांतर- मनसा वाचा

पिच्चैमुत्तु ठेले में सब्जियाँ लेकर गली-गली घूमकर बेचा करता था। उस छोटे बाजार की मछली की दुकान के पास खड़े होकर हर दिन दो बजे तक खड़े होकर बेचता था। शाम को साढ़े छः-सात बजे चौथे एवेन्यू में घर-घर जाकर फेरी लगाता।
धीरे-धीरे इस पेशे में भी प्रतिद्वंद्विता बढ़ती गई। कठिन परिश्रम करने पर भी पिच्चै का जीना मुश्किल होता गया। जीवन भर उसे मुसीबतें झेलनी पड़ीं और कटु अनुभवों का सामना भी करना पड़ा।
दिन में दस बारह घंटे अविरल काम करने पर भी आमदनी में बढ़ोत्तरी न होते देख पिच्चैमुत्तु को एक अद्श्य पीड़ा सताने लगी। वह सोचने लगा कि क्या सारी की सारी पीड़ाएँ मुझे ही झेलनी हैं? उसे इस दरिद्रता कठिनाइयों से जकड़े हुए जीवन में आशा मिटती दिखाई दी।
पिच्चैमुत्तु को पौ फटने के पहले ही सब्जियाँ लेने माँवलस बाजार दौड़ना पड़ता था। उसी गति से लौटकर आठ बजे से ही सब्जियों से लदा ठेला लेकर बेचने निकल जाना होता था। आगे-
*

रघुविन्द्र यादव की
लघुकथा- झूठ

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डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का दृष्टिकोण
नया साल- मूल्यांकन व नियोजन का अवसर
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आज सिरहाने में इला प्रसाद की दृष्टि में
नरेन्द्र मोदी का कविता संग्रह- आँख ये धन्य है

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पुनर्पाठ में दुर्गा प्रसाद शुक्ला का आलेख
समय बहता हुआ

पिछले सप्ताह- नव वर्ष के अवसर पर

भावना सक्सेना का व्यंग्य
नया नौ दिन

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मुक्ता की कलम से
तिब्बत का नव वर्ष लोसर
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डॉ. जगदीश व्योम का निबंध
हाइकु कविता में नया साल

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पुनर्पाठ में राहुल देव का आलेख
समकालीन कहानियों में नया साल
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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
संजना कौल की कहानी- शहर दर शहर

पतझड़ के मौसम में चिनार के पत्ते अब भी लाल-सुर्ख हो उठते थे, लेकिन उनकी रोमानियत गायब हो गई थी। उनकी वह सिंदूरी रंगत अब जाड़ों के मौसम की पूर्व सूचना बन गई थी। कश्मीर का ठंडा मौसम! आत्मा को तोड़ने वाले अवसाद, वीरानी और अकेलेपन का दूसरा नाम!
और जाड़ों की शुरुआत के साथ ही सुजाता का मन अपने शहर से भागने लगता था। नए साल के पहले महीने में ही वह दफ्तर से छुट्टी लेकर एक छोटी सी अटैची तैयार कर लेती थी और जम्मू की बस मे सवार होकर अपने शहर से दूर चली जाती थी।
उस दिन सफर के लिए कुछ जरूरी सामान लेकर वह ऑटो से घर लौट रही थी। तेज चाल से सड़क पार करती हुई एक बनी-सँवरी जवान लड़की ऑटो के पहिए के नीचे आते-आते रह गई। सुजाता के मुँह से हल्सी सी चीख निकल गई जिस पर बातूनी ऑटो ड्राइवर ने उसकी तरफ देखा, "बहनजी, देखा आपने? कैसे आँखों पर पट्टी बाँधे चल रही थी? कट कर मर जाती तो हमारी कौन सुनने वाला था? आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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