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कहानियाँ

'समकालीन हिन्दी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से
जयनंदन की कहानी-'हीरो'।


हमें उन दिनों अपना देश बहुत अच्छा लगता था और देश में अपना गाँव सबसे अच्छा लगता था और अपने गाँव में रदीफ रौनक बेमिसाल लगता था और रदीफ रौनक में उसकी फिल्मी हीरो बनने की खब्त तथा उसकी हैरतअंगेज मोहब्बत हमें खास तौर पर आकर्षित करती थी। गाँव के हम उम्र स्कूली लड़के आई ए एस, आई पी एस, डॉक्टर, इंजीनियर जैसे कैरियर के बड़े-बड़े पदों के सपने देखते थे मगर एक अकेला था रदीफ जो सिर्फ और सिर्फ हीरो बनने की दिलचस्प तैयार में संलग्न था।

हम उसके हाव-भाव, क्रिया-कलाप, रंग-ढंग पर बेहद मुग्ध थे। इतना ही मुग्ध हम उसकी मोहब्बत पर भी थे। चूँकि जिस लड़की से वह प्यार करता था वह गाँव की कोई मामूली लड़की नहीं थी। वह इस इलाके के इकलौते राजकीय अस्पताल के एक मसीहा की तरह लोकप्रिय डॉक्टर की लाड़ली बेटी थी। वह एक बड़ी कोठी में रहती थी और एक बड़े शहर में रहती थी ज़हीन थी, खूबसूरत थी, आलीशान थी, आम लोगों के लिए बेपहुँच और हम लोगों के लिए कौतूहल का विषय थी। हम लोग उससे बात तक करने की औकात खुद में नहीं देखते थे वह हमसे बात करे, हमें देखे, इस लायक हम थे भी नहीं। हमारी शक्लें लुटी-पिटी जैसी दिखती थीं अभावों और विपन्नताओं ने हममें एक भी चमक महफूज नहीं रहने दी थी। मगर क्या ही फख्र्र का सबब था कि रदीफ को वह दिलोजां से चाहती थी। रदीफ की इस खुशकिस्मती पर हमें घनघोर रश्क होता था।

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