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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से इंदिरा दाँगी की कहानी— करिश्मा ब्यूटी पार्लर


बड़ी चर्चा है, कॉलोनी में नया ब्यूटी पार्लर खुला है।
पिछले एक दशक से आसपास की चार कॉलोनियों सहित इस कॉलोनी पर एकछत्र राज करने वाले भव्य ब्यूटी पार्लर की गर्वीली संचालिका राजेश्वरी इन दिनों अपनी पुरानी ग्राहकों के मुँह से भी बस उसी पार्लर की चर्चाएँ सुन रही हैं। भव्य ब्यूटी पार्लर को ग्राहकों की कमी नहीं
थी, पर यों ग्राहकों का घटना राजेश्वरी को ईर्ष्या और चिड़चिड़ाहट से भर रहा था।

राजेश्वरी के पति व्यवसायी थे। आमदनी कम न थी और राजेश्वरी को घर में करने को कोई काम भी न था सो लगभग दस साल पहले मकान के निचले, खाली पड़े हिस्से में ब्यूटी पार्लर खोला लिया और अब इतने वर्षों बाद उनका ब्यूटी पार्लर इतना प्रतिष्ठित हो चुका था कि काम सम्हालने के लिये उन्होनें दो
सहायिकाएँ रख लीं थीं। वे संचालन भर करतीं, पार्लर सहायिकाएँ चलातीं।

राजेश्वरी इन दिनों उखड़ी-उखड़ी-सी रहती हैं। एक दिन पति ने प्यार से पूछा, क्या बात है राजो, इन दिनों कुछ उदास-सी दिखती हो ? उस नये पार्लर के खुल जाने परेशान हो?

मुझे उस पार्लर के बारे में कोई बात नहीं करनी।

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