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१४

बारहवाँ भाग

डॉ. ब्रैडी व्यक्तिगत बात पर नहीं आना चाह रहे थे और बात उचित भी थी मगर... मन ने ही उत्तर दिया, "तुम केवल देखो, जितना समझ पाओ समझ लो और वापस अपने देश चली जाओ। संघर्ष तुम्हारे सामने भी है।
"बर्फ़ घंटे भर में सड़कों से साफ़ कर दी जाएगी। उसके बाद तुम लोग घूमने जा सकती हो। अच्छा मैं चला, कैथी से कहिएगा कि क्लिनिक में मुझे फ़ोन कर ले।"
करीब-करीब दो बजे खा-पीकर मैं और कैथी निकले। इस बर्फ़ में भी लोग बाहर निकले हुए थे। सारा शहर पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण, वैसे ही चल रहा था, मानो कुछ घटा ही न हो। हाँ कपड़े थोडे बदल गए थे। पैरों में रबर के लंबे बूट, हाथों में दस्ताने।
"क्या यह शहर कभी सोता नहीं?" मैंने मन ही मन सोचा और यदि ये दिन भर चलते ही रहते हैं तो काम कब करते हैं?"
टैक्सी में बैठे-बैठे ही कैथी मुझे ट्रेड सेंटर, एंपायर स्टेट बिल्डिंग, अंतर्राष्ट्रीय संघ आदि महत्वपूर्ण जगहें दिखाती जा रही थी। हमलोग ब्लुमिंगडेल के सामने उतरे। भीतर काफी भीड़ थी। कैथी ने कहा, "चूँकि आज बाहर बर्फ़ है और विशेष कुछ करने को नहीं, इसलिए ज़्यादातर लोग, ब्लुमिंगल सैक्स, या मेकी जैसे डिपार्टमेंटल स्टोर में ही समय काटेंगे। सारे रेस्टोरेंट और कॉफी हाउस ठसाठस भरे होंगे।"
फिर उसने मुस्कुराकर कहा, "आज ब्रैडी के पास सबसे अधिक पेशेंट आएँगे। ब्रैडी इसको विंटर डिप्रेशन कहते हैं।"
"मुझको लगता है कि तुमको भी विंटर डिप्रेशन हो गया है।"
वह खिलखिला उठी। सुबह से यह पहली बार उसकी हँसी छलकी थी।
"अरे नहीं घबड़ाओ नहीं। मैंने तुमसे कहा था कि यह मेरा, शाविनिस्ट सुअर पति, सीधे रास्ते से मेरी बात नहीं मानेगा।"
"कैथी क्या कोई ईमानदार समझौता नहीं हो सकता?"
"समझौता और वह भी ईमानदार? समझौते का अर्थ ही होता है कि आप अपने प्रति कहीं बेईमान हो रहे हैं।"

मैंने पहले भी कहा था न उसने तर्कों के फंदे में न पड़ना ही अच्छा है।
"ब्लुमिंग डेल" जगमगाता हुआ न्यूयार्क का मशहूर डिपार्टमेंटल स्टोर, सात तल्ले की बिल्डिंग। कैथी ने चीज़ें खरीदनी शुरू की। पहले हमलोग महिलाओं की पोशाक वाले सेक्शन में गए। वह कपड़े क्या खरीद रही थी मानो शाक-भाजी। फिर कोट, स्वेटर, जूते। उसके चेहरे पर एक अजीब-सा उन्माद था मानो वह सारी दुकान ही खरीदकर रख देगी। पचासों स्वेटर्स की तहें उसने लगाईं, जिनका औसत दाम १५० से २५० डालर या पता नहीं कितना? एक बार मैंने कहा भी, "कैथी! इतने कपड़े तुम्हारी आलमारी में अटेंगे कैसे?"
वही बड़ी-बड़ी बादामी आँखें शैतानी से मुस्कुराकर चहक उठीं, "क्यों? पुराने सारे फेंक दूँगी।"

अब हमलोग नीचे आ गए थे। इतने पैकेट तो सम्हालने मुश्किल थे। दुकान में उसने अपने घर का पता दे दिया, शाम को चार बजे के बाद भेजने के लिए कहा।
बीच में अचानक टैक्सीवाले को उसने, टिफानी, जाने को कहा। दुनिया की मशहूर गहने की दुकान। भीतर की जगमगाहट देखते ही बनती थी। वहाँ के तौर-तरीके देखकर लगता कि मदाम ब्रैटले से सब परिचित थे। चमड़े के सोफे में धँसते हुए कैथी ने फर्माया, "व्हॉट इज लेटेस्ट?"
एक हीरे और नीलम का हार निकाला गया, साथ में ब्रेसलेट। दाम चालीस हज़ार डॉलर।
"घर भेज दीजिएगा।"
दस मिनट में हमलोग बाहर थे।
हे भगवान! यह कहीं पागल तो नहीं हो गई है? नहीं, वह पूरे होश-हवास में थी।
मेडिसन एवन्यू थ्री ट्वेंटी। वहाँ उतरकर दूसरे फुटपाथ पर हमलोग सलाद-बार में घुसे। गर्म सूप और ब्रेड खाने के बाद जान में कुछ जान आई। वैसे ठंड सहन करने की आदत हो चली थी। बातों ही बातों में मैंने कैथी से पूछा, "कैथी! यहाँ हार्लेम कहाँ पर है?"
"देखना चाहोगी?" उसने पूछा।
"संभव होगा?"
मेरे स्वर में आग्रह था।
"कैथी के लिए कुछ भी असंभव नहीं, पर ब्रैडी से मत बोलना। हमलोग कल चलेंगे।"

शाम को घर पर अलग ही नज़ारा था- पूरा ड्राइंगरूम, बैठकर चाय पीनेवाला जापानी बगीचा, सोफा, कालीन। हर जगह केवल पैकेट नज़र आ रहे थे। सामान और केवल सामान। सोफे पर कैथी जी अपने नीलम के हार को उलट-पुलट रही थी। घर में पैर रखते ही डॉ. बैरी के पैरों से पैकेट टकराने लगे। कैथी के गालों को चूमते हुए उनकी नज़र हीरे के हार पर पड़ी। मगर उनमें ग़ज़ब का आत्मनियंत्रण था। एक शब्द भी नहीं फूटा। बस इतना भर पूछा, "इन्हें रखोगी कहाँ?"
"पहले पुराने सामानों को चर्च में भेज दूँ?" एक ज़िद्दी उग्र बच्चे की तरह कैथी ने पूछा।
"ओ.के., स्वीटहार्ट। खाना हमलोग बाहर खाने चलें?"
"नहीं, घर में खाएँगे।"
"स्टेक?"
"नहीं पित्ज़ा।"
"प्रभा क्या लेगी?"
"उसका पेट भरा है। वह सोना चाहती है।" बिना मुझसे पूछे कैथी ने उत्तर दे दिया था।
डॉ. ब्रैडी की गहरी नीली आँखें कैथी पर कुछ क्षण रुकी रहीं। फिर उठकर उन्होंने, डेली, में फोन कर दिया पित्ज़ा के लिए।
दूसरे दिन कैथी फुसफुसायी, "हम लोग हार्लेम चल रही हैं। तैयार हो जाओ।"
"क्या मैं साड़ी पहन लूँ?"
पता नहीं मैंने यह क्यों पूछा? शायद अचेतन में कहीं मुझे अपने में और काले लोगों में कोई समानता दिखी।

कैथी की चमचमाती हुई सफेद क्राइसलर, हार्लेम की ओर जा रही थी। चमचमाता हुआ शहर धीरे-धीरे गरीब होता जा रहा था। हमलोगों ने दाहिने एक गली में गाड़ी खड़ी की। उजड़े हुए मकान, जिनके खिड़की दरवाज़े गायब थे, जगह-जगह ग्रैफिटो लिखे हुए। श्वेत अमेरीकियों के खिलाफ़ नस्लवाद का आरोप। कहीं अब्राहम लिंकन की तस्वीर, साथ में मार्टिन लूथर किंग एक मकान के सामने लिखा था, "सावधान! यदि तुम अमेरिकन हो तो भीतर जान का खतरा है।"
बायें फुट के उस पार एक उजड़ा-सा पार्क नज़र आया। लुढ़के हुए बीअर कैन, शराब की बोतलें, बेंच पर उँघाते हुए नशे में धुत्त कुछ बूढ़े-बूढ़ियाँ।
"यही हार्लेम है, जिसके बारे में इतना सुन रखा था।"
गरीबी से भी बढ़कर एक खतरा जैसे सनसना रहा था।
"कैथी! हमलोग वापस चलें। क्यों कि आते-जाते काले लोगों के चेहरे पर हैरत को पढ़ा जा सकता था।
"रुको ना यार। थोड़ा देखने तो दो।"
तब तक एक बुढ़िया टकराई, "यू आ काम फ्राम इंडिया। गांधी, वी लव गांधी..."
"कैथी! चलो वापस। पता नहीं क्यों मुझे यहाँ कालों की आँखों में तुम्हारे प्रति हिंसा दिख रही है।"
"तुममें ज़रा भी सेंस ऑफ एडवेंचर नहीं? चलो बाबा, वापस ही चलते हैं।"

लौटकर गाड़ी के पास आए। देखो तो काले छोकरे गाड़ी के मडगार्ड पर बैठे थे। लाल लिपस्टिक से सफ़ेद गाड़ी के ऊपर गालियाँ लिखी हुई थीं। कैथी ने ज्योंही गाड़ी का दरवाज़ा खोलने के लिए चाबी घुमाई, त्योंही एक सख्त काले हाथ ने उसकी कलाई पकड़ ली।
"नो यू कांट गो..."
कैथी का चेहरा सफ़ेद हो गया था। दूसरी आवाज़ आई, "हेट व्हाइट बिच! तुम यहाँ कैसे?" तीसरी आवाज़ का धमाका... "वी विल फक यू, वी द बास्टर्ड सन्स ऑफ ए बिच..." आवाज़ें और आवाज़ें। भीड़ घेरती चली जा रही थी। पता नहीं मैं शायद परिणाम से अनजान थी या फिर कलकत्ते में रहने की वजह से भीड़ और जुलूस से मुझे दहशत कम होती थी। मैंने करीब-करीब चीखते हुए कहा, "हमलोगों को जाने दो। हम लोग टूरिस्ट हैं।"
एक काले आदमी ने मुझे कैथी से खींचकर अलग किया।
"तुम जाओ, तुम भारतीय हो। बट वी विलरेपहर।"

तब तक कैथी चक्कर खाकर गिर पड़ी। दो-तीन पिस्तौल निकल चुके थे। मेरे गले की घरघराहट से केवल... "नो नो डोंट।" पर भय और दहशत। एक ने कैथी को कंधे पर लटका लिया और दो कदम आगे बढ़ा। मैं ज़ोरों से रो पड़ी। "नो, नो, यू कांट, प्लीज", लेकिन वह वहशी भीड़, हिंसा का उन्माद, किसी ने कहा, "गाड़ी में आग लगा दो।" दो-तीन सिगरेट लाइटर जल उठे। मगर अचानक भीड़ को ढकेलते हुए कोई आगे आया। उसके हाथ में चाकू चमक रहा था। चीखते हुए उसने कहा, "यदि तुम लोग एक कदम भी आगे बढ़े तो मैं यहीं चीरकर रख दूँगा।"
एक ख़ौफ़नाक दहशत। क्षणभर की चुप्पी जिसमें दस-बीस साँसों की आहटें भी सुनाई दे रही थीं। ऊपर अगल-बगल दूर से झाँकते हुए चेहरे।
उसने हाथ बढ़ाया, पूछा, "क्या हम दोस्त नहीं?"
अब तक का रुका हुआ आवेग, जीवित-मृत्यु का भय, आँखों से फूट पड़ा। मेरी हिचकियाँ बँध गईं। उसने हाथ से मेरे दोनों कंधों को समेटकर कहा, "नो नो, डोंट क्राइ, यू आर माई फ्रेंड।"
उन लोगों ने कैथी को उतार दिया था। उसका पीला ज़र्द चेहरा, पसीने में डुबा हुआ था। वह अब भी थर-थर काँप रही थी। मैं आगे बढ़कर कैथी से लिपट गई और हम दोनों की फिर हिचकियाँ बँध गईं।
"कैथी!" मैं उसके आँसू पोंछ रही थी। "प्रभा!" वह मुझे चूम रही थी। उसने सफ़ेद क्राइसलर के पीछे का गेट खोला और करीब-करीब हम दोनों को भीतर ढकेलते हुए तुरंत गाड़ी स्टार्ट कर दी। इससे पहले कि भीड़ कुछ और सोचे, गाड़ी पूरी रफ़्तार से हार्लेम से बाहर एवेन्यू पर दौड़ रही थी। कैथी रोये जी रही थी। उसकी हिचकियाँ बँध गई थीं। अब उस काले आदमी के दहाड़ने की बारी थी, "रोओ मत। मुझसे औरत का रोना बर्दाश्त नहीं होता।"
हिचकियों में कैथी ने जवाब दिया, "आई कांट हेल्प।"
"आप लोगों से किसने कहा यहाँ पर आने को। आप तो अमेरिकन हैं, क्या आपको यहाँ के हालात पता नहीं?"
"मैं अपनी दोस्त को रीअल अमेरिका दिखाना चाह रही थी।"
"तो रीअल अमेरिका की क्या यही तस्वीर है?"
कैथी अब तक काफी सँभल चुकी थी। उसने कहा, "अब तुम उतर जाओ। मैं गाड़ी चला लूँगी।"
"ओ.के." वह गाड़ी रोककर उतर पड़ा।
उसने फिर कहा, "कहीं एक्सीडेंट मत कर बैठना। तुम्हारा नर्वस ब्रेक डाउन हो गया है।"
"नहीं, नहीं, मैं चला लूँगी।"
"मदाम! इस घटना के बारे में तुम पुलिस को खबर मत देना, वरना दुनिया के किसी भी कोने में, जहाँ भी रहोगी, मैं ज़िंदा नहीं छोडूँगा।"
"मैं जीसू की कसम खाती हूँ..."
"ओ.के. गो एन फक योर गॉड।" उसकी आँखों में घृणा की लपटें लहरा रही थीं।

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