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शील 'काँ काँ' करते हुए गाड़ी से उतर गयी। वह तोड़-तोड़ कर रोटी के टुकड़े हवा में उछाल रही थी। कुछ पक्षी उसके सिर के ऊपर मंड़राने लगे। वह देर तक काले कौव्वे को टेरती रही। उसे कौव्वे जैसे अनेक पक्षी दिखायी दे रहे थे। किसी की चोंच चपटी थी, किसी के पंख झबरे, किसी की आवाज अजनबी। हरदयाल गाड़ी में बैठा रहा। वह निरपेक्ष भाव से झील के उस पार देख रहा था। उसे एक एक कर शीनी की नादानियाँ याद आ रही थीं। उसे वह दिन बार बार याद आता था जब शीनी अपने माता पिता की भावनाओं को रौंदते हुए उनके विरोध के बावजूद निक के साथ ड़ेट पर चली गयी थी। उस दिन हरदयाल यह जान कर इतना विचलित हो गया था कि वह देर तक गुजराल के यहाँ बैठा रहा था। भारत से स्वामी अपूर्वानंद आये हुए थे और उनका प्रवचन चल रहा था। स्वामी जी ने प्रवचन में क्या कहा, उसे कुछ भी याद नहीं। याद है तो सिर्फ यह बात कि स्वामी जी ने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया था। स्वामी जी ने रविवार को उसके यहाँ दोपहर का भोजन करने के लिए हामी भर दी थी।

दरअसल रविवार का समय स्वामी जी ने बहुत सोच विचार के बाद दिया था। उन्होंने पाया था कि सप्ताहांत में वह बहुत अकेलापन अनुभव करते थे। विदेशियों की तरह अधिसंख्य भारतीय मूल के लोग भी सप्ताहांत मनाने घर से निकल जाते थे। वह अपने प्रवचनों में इस बात की आलोचना करने लगे थे कि भारतीय मूल के लोग भी अपनी परम्पराओं और जातीय स्मृतियों की अवहेलना करते हुए पश्चिम का अंधानुकरण करने लगे हैं। वे दो चार वर्ष में कैनेड़ा आते थे और अपने जजमानों से भरपूर आदर सत्कार की अपेक्षा रखते थे। वे चार छह महीने विभिन्न प्रांतों का दौरा करते। हिन्दी पंजाबी के कुछ साप्ताहिक उनका भरपूर प्रचार करते। उन्होंने कई मंदिरों का शिलान्यास किया था। इस बार तो भारत में राममंदिर निर्माण के लिए भी उन्होंने भरपूर चंदा इकट्ठा किया था। इस बार की यात्रा में तो उनके भक्तों में एक महत्वपूर्ण नाम और जुड़ गया था, जिम स्मिथ का नाम। जिम ओटावा से संसद सदस्य था और सत्तारूढ़ दल का सक्रिय और महत्वपूर्ण सदस्य था। वह जब स्वामी जी से मिलने आया तो उसके साथ निजी स्टाफ के अलावा आठ दस लोग और थे।

स्वामी जी को यह जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि जिम के अंतरंग मित्रों में एक टैक्सी ड़्राइवर भी था— सरदार प्यारा सिंह। उन्होंने गुजराल से इस दोस्ती का राज जानना चाहा तो उसने बताया कि जिम के निर्वाचन क्षेत्र में पचास हजार पंजाबी मतदाता हैं। पंजाबी मतदाताओं के बीच लोकप्रियता हासिल करने के लिए जान कई बार पंजाब का दौरा कर चुका है। हर बार वह प्यारा सिंह को अपने साथ लेकर गया है। पंजाबी मतदाताओं की सभा को सम्बोधित करने वह प्राय: प्यारा सिंह की टैक्सी में जाता है। पहले प्यारा सिंह का पंजाबी में भाषण होता है, उसके बाद जिम सभा को सम्बोधित करता है। जिम प्यारा सिंह की क्षमता पर मुग्ध था कि प्यारा सिंह सिर्फ अपने दम पर सब पंजाबी मतदाताओं के मेल बाक्स में जिम की प्रचार सामग्री ड़ाल आता है। तीसरी बार चुनाव जीतने के बाद जिम ने प्यारा सिंह को सरकार में कोई ओहदा दिलाने की पेशकश की थी, मगर प्यारा सिंह ने कहा, वह अपने धंधे में खुश है। इस घटना के बाद दोनों की और घनिष्ठता बढ़ गयी। जिम तमाम लोगों से अपने दफ्तर में ही मिलता था, मगर प्यारा सिंह उन चुनिन्दा लोगों में से था, जो बेधड़क उसके बँगले में घुस सकते थे और उसका दरवाजा खटखटा सकते थे।

स्वामी जी ने एक दिन प्यारा सिंह का आतिथ्य भी स्वीकार किया था। एक अतिथि गृह के विशाल हाल में स्वामी जी के प्रवचन का कार्यक्रम रखा गया था। जिम समारोह के मुख्य अतिथि थे। ऐसा लग रहा था जैसे समूचा पंजाब स्वामी जी को सुनने उमड़ पड़ा हो। स्वामी जी प्यारा सिंह की लोकप्रियता से अत्यंत प्रभावित हुए। आजकल वह जिस किसी से भी मिलते, प्यारा सिंह का जिक्र करना न भूलते। जो भी व्यक्ति अथवा संस्था स्वामी जी को आमंत्रित करती, वह अतिथियों की सूची में जिम और प्यारा सिंह का नाम शामिल करवा देते। स्वामी जी ने जब हरदयाल का निमंत्रण स्वीकार किया तो उससे भी कहा कि वह जिम और प्यारा सिंह को अवश्य आमंत्रित करे। शायद स्वामी जी जिम को दर्शाना चाहते थे कि वह प्रवासी भारतीयों के बीच कितने लोकप्रिय हैं।

हरदयाल अवसर का लाभ उठाते हुए स्वामी जी को एक कोने में अलग ले गया था। उसने लगभग बिसूरते हुए स्वामी जी से प्रार्थना की कि वह उनकी बड़ी बिटिया के लिए उपयुक्त वर बतायें। प्रवासी भारतीय हो तो बेहतर। प्रवासी भारतीय न मिले तो कोई पढ़ा लिखा, योग्य और संस्कारवान भारतीय युवक सुझा सकते हैं।
"चिन्ता न कर बच्चा, मैं तुम्हारी मदद करूँगा।'' स्वामी जी ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा।
हरदयाल एकदम हल्का हो गया। उसे लगा, जैसे उसकी तमाम समस्याओं का समाधान हो गया हो।
वह जी जान से स्वामी जी के स्वागत की तैयारियों में जुट गया था। हरदयाल ने शील और बच्चों के साथ बैठ कर पंद्रह बीस अंतरंग मित्रों की सूची बनायी। अबरोल साहब से भी राय मश्वरा कर लिया। अबरोल दम्पत्ति पेशे से ड़ाक्टर थे। जिस ड़ाक्टरी की ड़िग्री की भारत में बहुत पूछ थी, अमरीका में उसका खास महत्व नहीं था। मियाँ बीवी दोनों अमरीका में यू।एम।एल।सी। की ड़िग्री हासिल करने के लिए प्रयास करते रहे, सफलता न मिली तो कैनेड़ा शिफ्ट कर गये। अबरोल कल्पनाशील और उत्साही नवयुवक था। कैनेड़ा में उसने थोड़ी सी पूँजी से रियल एस्टेट का धंधा शुरू किया और देखते ही देखते मिलियनेयर हो गया। आज कैनेड़ा में उसके तीन होटल हैं।

हरदयाल ने जब अबरोल को बताया कि उसके यहाँ आगामी रविवार को अपूर्वानंद जी आ रहे हैं और स्वामी जी के साथ सत्तारूढ दल के साँसद जिम कपलैण्ड़ भी होंगे तो अबरोल ने उसका काम बहुत आसान कर दिया। उसने सुझाव दिया कि स्वामी जी का प्रवचन तो हरदयाल के आवास पर रहे और भोजन का प्रबंध वह अपने होटल में कर देगा। नगर में हाल में ही उसका आठ मंजिला होटल शुरू हुआ था। अबरोल साँसद से परिचय का अवसर खोना नहीं चाहता था। यद्यपि तीन माह से उसका होटल चल रहा था, उसने होटल के विधिवत उद्घाटन का कार्यक्रम बना ड़ाला। उसी क्षण अपनी योजना के क्रियान्वयन में लग गया। सबसे पहले उसने शील को फोन मिलाया, "सुन रहा हूँ भरजाई, तुम स्वामी जी के आनर में पार्टी दे रही हो। तुमने अभी तक सरोज को निमंत्रित नहीं किया, यह बहुत आपत्तिजनक बात है।''
"क्या बताऊँ भराजी, मेरा तो दम सूख रहा है। कैसे मैनेज करूँगी कुछ समझ में नहीं आ रहा। आप तो लड़कियों को जानते हैं, रोटी तक बेलना नहीं जानतीं।''
"जब तक तुम्हारा यह देवर जिन्दा है, तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं।'' अबरोल बोला, "आपकी सब जहमत मैंने अपने ऊपर ले ली है। मैंने और भराजी ने बैठ के तय किया है कि आपके यहाँ स्वामी जी का आदर सत्कार होगा। भोजन का इंतजाम मेरे होटल में हो जाएगा।''
"सच भराजी?''
"और क्या?'' अबरोल ने फोन हरदयाल को सौंप दिया था और हरदयाल के मुँह से अपनी तारीफ सुन कर मंद मंद मुस्करा रहा था।

रविवार को सुबह जब स्वामी जी का काफिला घर में दाखिल हुआ तो उनके स्वागत में हरदयाल शील के अलावा अबरोल दम्पत्ति भी हाथ जोड़े खड़े थे। गाड़ियों के रुकने और जल्दी जल्दी दरवाजे खुलने बंद होने की आवाज सुन कर दोनों बेटियाँ— शीनी और नेहा— भी दरवाजे के पीछे खड़ी होकर यह नजारा देखने लगीं।
विशालकाय स्वामी जी ने केसरिया रंग का कौषेय परिधान पहन रखा था। सिर पर विवेकानंद की शैली में उसी रंग की पगड़ी थी। उनकी गर्दन सुराही के मटके के आकार की थी। उन्होंने गले में अनेक आकार प्रकार की मालाएँ पहन रखी थीं। उनके हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठे हुए थे। थोड़ी थोड़ी देर में वह अपनी भारी आवाज में कहते— ऊँ शांति शांति। स्वामी जी के पीछे चार छह देसी बुजुर्ग चल रहे थे। दो तीन अधेड़ स्त्रियाँ थीं, ठेठ पंजाबी लिबास में।

स्वामी जी के लिए अलग सोफे की व्यवस्था की गयी थी। सोफे की पुष्प सज्जा सरोज (मिसेज अबरोल) ने अपने हिसाब से की थी। उसी पर मृगछाल बिछा दी गयी थी। स्वामी जी को अपना आसन पहचानने में देर न लगी। वे आलथीपालथी मार कर सोफे पर विराजमान हो गये। उनके साथ आये लोगों ने दूसरे सोफों पर आसन ग्रहण किया। स्वामी जी ने अपने साथ आये महानुभावों का परिचय दिया तो पता चला, ये लोग स्वामी जी को लिवाने के लिए वैंकूवर से आये हैं और वहाँ ये लोग जहाजरानी के धंधे में हैं। अबरोल उन लोगों की आवभगत में व्यस्त हो गया और उनसे बातचीत करके वैंकूवर में होटल उद्योग की सम्भावनाओं को टटोलने लगा। हरदयाल ने नगर के प्रमुख प्रवासी भारतीयों को आमंत्रित कर रखा था। ज्यादातर पंजाबी परिवार थे, दो परिवार गुजराती थे। सबसे स्वामी जी का परिचय करवाया गया। जिसका परिचय दिया जाता, वह स्वामी जी का चरण स्पर्श करता और स्वामी जी चरण स्पर्श करने वाले व्यक्ति को प्रसाद स्वरूप कुछ न कुछ अवश्य प्रदान करते। किसी को रुद्राक्ष की माला तो किसी को स्फटिक की माला प्राप्त हुई। महिलाओं को उन्होंने न जाने क्यों मध्यम आकार के शंख दिये।

परिचय कार्यक्रम समाप्त होते ही स्वामी जी ने अपने झोले से एक शंख निकाला और उसे ओंठों तक ले गये। मधुर लेकिन विस्फोटक शंख ध्वनि से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया। शंख बजाने से स्वामी जी का सुर्ख चेहरा और सुर्ख हो गया था, आँखें बाहर को निकल आयी थीं। शंख ध्वनि से सहसा वातावरण भक्तिमय हो उठा। शंख ध्वनि सुन कर शीनी और नेहा अत्यंत चमत्कृत हुईं और पीछे से उठ कर आगे की कुर्सियों पर चली आयीं। शील ने दोनों को स्वामी जी का चरण स्पर्श करने को कहा तो स्वामी जी ने उन्हें बरज दिया। दोनों बहनों ने सीने पर हाथ रखा और झुक कर सम्मान प्रकट किया। स्वामी जी ने दोनों बहनों को एक एक अँगूठी दी। दोनों अँगूठियों में नग जड़े हुए थे। स्वामी जी ने कहा कि दोनों बहनें सोमवार को व्रत रखेँ और आरती के बाद अँगूठी धारण करें। प्रात: काल सूर्य को अध्र्य देते हुए सूर्य प्रार्थना करें—
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद यम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते।
"यह तो बहुत कठिन श्लोक है, कैसे याद होगा?'' शीनी बोली।

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