शुषा लिपि
सहायता

अनुभूति

 24. 6. 2003

आज सिरहानेआभारउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवार
दो पल
परिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
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हास्य व्यंग्य

 

 रवीन्द्र कालिया का
नवीनतम व अप्रकाशित लघु उपन्यास 
ए बी सी डी
धारावाहिक (दूसरी किस्त)

शील ने आंखें खोलीं और यह जान कर राहत की सांस ली कि वह यथार्थ नहीं था, एक दु:स्वप्न था। उसे अपने संसार में लौटने में देर न लगी। एक टीस की तरह उसे याद आया कि शीनी डेट पर गयी हुई है। वह पलंग पर उकडूं बैठ कर फिर बिसूरने लगी। नेहा भाग कर पानी का गिलास ले आयी, "अब क्या हुआ मॉम। शीनी डेट पर गयी है, हमेशा के लिए ससुराल नहीं चली गयी।'' 

"यह लडकी मेरी मौत बन कर पैदा हुई है।'' नेहा ने तुरंत मां के मुंह पर पानी का गिलास लगा कर उसकी जुबान बंद कर दी।

°°°

कथा महोत्सव 2003
भारतवासी हिन्दी लेखकों की कहानियों
का संकलन 

'माटी की गंध'
चुनाव चौखाना
पाठकों से निवेदन है वे 'माटी की गंध'
की दस कहानियों को ध्यान से पढ़ें और
अपनी पसंद की कहानी का चुनाव करें।
चुनाव करने से पहले ठीक तरह से
निश्चित कर लें कि किस कहानी को
अपना मत देना है क्यों कि आप केवल
एक ही मत दे पाएंगे।

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इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से नवनीत मिश्र की कहानी
यह तो कोई खेल न हुआ

"आंखें बंद करो।" मां ने झपटती–सी आवाज़ में धीरे से कहा। सब के सब आंखें बंद करके बैठ गए। काला घना अंधेरा था। सन्नाटा ऐसा कि अपनी सांसें भी कानों में तेजी से बज रही थीं। झिल्ली की झनकार और झींगुरों की चिकचिकाहट जंगल में शोर लग रही थी। हम सब जीने–मरने के सवाल से जूझ रहे हैं, यह बात मैं तब तक समझ ही नहीं पाई थी। बंद आंखों के भीतर अंधेरा और भी काला लग रहा था, जिसमें मेरा मन घबरा उठा था। मगर मां की वह बात बार–बार मन में घूम रही थी कि रोशनी पड़ने पर चमक उठने वाली हमारी आंखें ही हमारी सबसे बड़ी दुश्मन हैं।

°

परिक्रमा में
लंदन पाती के अंतर्गत शैल अग्रवाल
का आलेख
बर्मिंघम में

°

पर्यटन में
महेश कटरपंच की कलम से
अनोखा आकर्षण आम्बेर

°

साहित्य समाचार
प्रबुद्ध कालिया को माइक्रोसाफ्ट पुरस्कार

°
विज्ञान वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप जानकारी दे रहे हैं
नये विज्ञान समाचारों
के बारे में

°

कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
'इस पार से उस पार से' 
का अगला भाग
किसे आवाज़ दूं मैं
!°!

!सप्ताह का विचार!

त्साही मनुष्य कठिन से कठिन काम
आ पड़ने पर भी हिम्मत नहीं हारते।

— वाल्मीकि

 

अनुभूति में

राजेन्द्र चौधरी, श्याम तिवारी, सुनील साहिल, पियूष पाचक, 
और 
चंद्र शेखर की
12 नयी कविताएं

° पिछले अंकों से°

कहानियों में
डेड एण्ड पद्मेश गुप्त 
°
आज सिरहाने में कृष्ण बिहारी द्वारा शैलेश मटियानी के कहानी संग्रह शैलेश मटियानी की इक्यावन कहानियां
का परिचय
°
यू के में हिन्दी मीडिया के अंतर्गत तेजेन्द्र शर्मा का लेख ब्रिटन में हिन्दी रेडियो के पहले महानायक — रवि शर्मा
°
रसोई घर में
शाकाहारी मुगलई का मस्त ज़ायका
मशरूम मसाला
°
निबंध में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के
अवसर पर प्रवासी विद्वान
प्रो हरिशंकर आदेश का लेख
प्रवासी
भारतीय और हिन्दी
°
नार्वे से सुरेश चंद्र शुक्ल 'शरद
आलोक' का लेख
हिन्दी संयुक्त
राष्ट्रसंघ की भाषा बन कर रहेगी
°
हास्य–व्यंग्य में शैल अग्रवाल का
परी–पुराण
हिन्दी–मैया
(शुद्ध विलायती हिन्दी में)
°
संस्मरण में  कोरिया से कौंतेय देशपांडे का लेख ओ! पिलसंग इंदीऽऽया!
°
कलादीर्घा में कला और कलाकार के
अंतर्गत 
सतीश गुजराल का परिचय
उनकी कलाकृतियों के साथ
°
साक्षात्कार में प्रसिद्ध नृत्यांगना
संयुक्ता पाणिग्रही और अन्ना मरिया
थामस
से बातचीत
°
फुलवारी में दिविक रमेश की कविता
हाथी बोला और इला प्रवीन से
जानकारी
शुक्र ग्रह
°

परिक्रमा में

दिल्ली दरबार के अंतर्गत बृजेश कुमार
शुक्ला का आलेख
सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों
का पुनः प्रारंभ

11
नार्वे निवेदन के अंतर्गत ओस्लो से
सुरेश चंद्र शुक्ला 'शरद आलोक' का
आलेख
वसंत आगमन से पहले

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुर्नप्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
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