अनुभूति

 24. 1. 2004

आज सिरहानेउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवारदो पल
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विशेषांक
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पिछले सप्ताह

सामयिकी में
नयी दिल्ली में प्रवासी दिवस के अवसर पर हिन्दी आयोजनों की एक रिपोर्ट
गोष्ठियां और सम्मेलन
रामविलास के शब्दों में

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हास्य व्यंग्य में
रवि रतलामी के आज़माए हुए नुस्खे
नया साल नये संकल्प

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समीक्षा में
प्रदीप मिश्रा का आलेख
2003 में कविता की दस्तक

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आज सिरहाने में
चित्रा मुद्गल का बहुचर्चित उपन्यास
आवां

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कहानियों में
भारत से सूरज प्रकाश की कहानी
यह जादू नहीं टूटना चाहिये

अगले तीन दिन उस आवाज ने दस्तक नहीं दी। हो सकता है, दी भी हो और मैं मीटिंग वगैरह में बाहर गया होऊं। बहरहाल इस ओर ज्यादा सोचने की फुर्सत भी नहीं मिली। खुद से ही पूछता हूं – क्यों इन्तज़ार कर रहा हूं उसके फोन का। मुझे उसकी आवाज़ ने बांध लिया है, जरूरी थोड़े ही है उसे भी मेरी आवाज, बातचीत अच्छी लगी हो। जैसे उसे और कोई काम ही न हो, एक अनजान आदमी से बात करने के सिवा। हमारा परिचय ही कहां है? एक दूसरे का नाम भी नहीं जानते, देखा तक नहीं है, सिर्फ आवाज का पुल! कई तरह के तर्क देकर उसके ख्याल को भुलाने की कोशिश करता हूं, फिर भी हल्की–सी उम्मीद जगाए रहता हूं। वह फिर फोन करेगी।
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इस सप्ताह

कहानियों में
गणतंत्र दिवस के अवसर पर
भारत से मीरा कांत की कहानी
विसर्जन

सप्ताह में लगभग दो बार फोन पर फौजी बेटे की रोशनी–सी आवाज के स्पर्श के लिए कान सप्ताह के सातों दिन सावधान की मुद्रा में रहते थे। रात का विश्राम भी वस्तुतः कानों के लिए सावधान ही होता था। फौजी के पिता के कानों को भला विश्राम कैसा! फोन वहीं से आ सकता था। यहां उस खुफिया जगह का नंबर नहीं दिया जा सकता था। इसलिए सप्ताह भर के उन असंख्य पलों में से वे कौन–से जीवंत पल होंगे जो उस रोशनी को बंसी के कानों तक लाएंगे, खुद उन पलों को भी नहीं मालूम था। न ही लगभग तीन महीने बाद आने वाले वे बदनुमा स्याह पल जानते थे कि बंसी के कानों को वे कबीर की नहीं, इंफाल से ही किसी सेनाधिकारी की आवाज सुनाने वाले हैं कि 'कबीर इज नो मोर'
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सामयिकी में
निराला जयंती के अवसर पर
महादेवी वर्मा की कलम से संस्मरण
जो रेखाएं कह न सकेंगी
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विज्ञान वार्ता में
साल भर की विज्ञान गतिविधियों पर 
डा गुरूदयाल प्रदीप की कलम से
वैज्ञानिक अनुसंधानः
बीते वर्ष का लेखा–जोखा

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धारावाहिक में
इस पार से उस पार से का अगला भाग
शील सा’ब से बदलते रिश्ते
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साहित्य समाचार में
गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली
के तालकटोरा स्टेडियम से
कवि सम्मेलन की रपट
और नार्वे निवेदन के अंतर्गत
ओस्लो समाचार

!सप्ताह का विचार!
विता गाकर रिझाने के लिए नहीं
समझ कर खो जाने के लिए है।
!— रामधारी सिंह दिनकर

 

अनुभूति में

जारी है 
नव वर्ष महोत्सव,
समस्यापूर्ति 
साथ में हल्दीघाटी
और जकार्ता से नयी कविताएं

नववर्ष विशेषांक समग्र

° पिछले अंकों से°

  कहानियों में
सुबह होती है शाम होती हैरजनी गुप्त 
चेहरे के जंगल मेंतरूण भटनागर
वे दोनोंसुषम बेदी
हिरासत के बादसुरेश कुमार गोयल
युगावतार वीना विज 'उदित'
फ़र्क़विनोद विप्लव

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साहित्यिक निबंध में 
डा रति सक्सेना की कलम से
वैदिक देवताओं की कहानियां
इस अंक में—
अग्नि

°
रसोईघर में
स–फल व्यंजन के अंतर्गत
इंद्रधनुष

°

उपहार में
नव वर्ष के उपलक्ष्य में 
शुभकामना संदेश जावा आलेख के साथ
नये साल का शुभ दुलार

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'
मंच मचान' में 
मंच कविता के महत्व के विषय में
प्रसिद्ध व्यंग्यकार अशोक चक्रधर के विचार 
एक होता है शब्द, एक
होती है परंपरा

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फुलवारी में
'
जंगल–के–पशु' लेखमाला के अंतर्गत
हाथी के विषय में जानकारी,हाथी का चित्र
रंगने के लिए और कविता
नये साल की बात

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परिक्रमा में
मेलबोर्न की महक के अंतर्गत
हरिहर झा का आलेख

आस्ट्रेलिया की आवाज़

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
        सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिया
  साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला