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16. 3. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह—

समकालीन कहानियों में भारत से
जयनंदन की कहानी
पगडंडियों की आहटें
एक मास्टर रितुवरन बाबू की आँखों में मुझे आर्द्रता दिखने लगी। उन्होंने पितृत्व भाव से बुलाकर मुझे कहा कि अगर कुछ समझने में दिक्कत हो तो निस्संकोच मेरे पास आ जाना। तुममें ललक है पढ़ने की और साथ ही स्पार्क भी है आगे बढ़ने की, इसे कम न होने देना। इसके बाद उन्होंने मेरी हालत देखकर किताबें और कॉपियाँ दीं, मुफ़्त में ट्यूशन दिए, फटे पैंट तथा पेट झाँकते शर्ट को सिलाने के पैसे दिए तथा खाली पैर को कई बार अपनी पुरानी चप्पलें दीं। इन सबसे बढ़कर एक बड़ी चीज़ भी उन्होंने दी और वह था संरक्षण...उन दबंग, शरारती और ज़ालिम लड़कों तथा पक्षपाती-जातिवादी शिक्षकों से जो मुझे चिढ़ाते थे और नीचा दिखाते थे।

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प्रकृति और पर्यावरण में
स्वाधीन की पड़ताल - गरमाती धरती घबराती दुनिया
तारीख, ''1 फ़रवरी 2007'', ख़बर - वार्षिक आय की दृष्टि से दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी होने के साथ-साथ दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी ऐक्सोन मोबिल ने नए कीर्तिमान स्थापित करते हुए ''वर्ष 2006'' में लगभग ''40 अरब डॉलर'' का मुनाफ़ा कमाने की घोषणा की। तारीख़, ''2 फ़रवरी 2007'', ख़बर - जलवायु परिवर्तन पर बनी अंतर्राष्ट्रीय समीति ने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें वातावरण में व्यापक स्तर पर देखी गई गर्मी के लिए मानवीय क्रिया-कलापों को दोषी ठहराया गया। मुद्दा यह है कि जब कुछ लोगों ने यह सवाल किया कि क्यों न इन कंपनियों के मुनाफ़े पर पर्यावरण को दूषित करने में योगदान देने के लिए एक अलग से टैक्स लगया जाए, तो इन कंपनी वालों ने जवाब दिया कि भई, हमने तो लोगों से नहीं कहा कि वे तेल जलाएँ और गाड़ियाँ चलाएँ।

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हास्य-व्यंग्य में शास्त्री नित्यगोपाल कटारे की रचना
ग्लोबल वार्मिंग से त्रस्त कैलाशपति
''मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है, ये ग्लोबल-म्लोबल वार्मिंग क्या होता है? ज़रा आप विस्तार से बताइए। यह तो पहले मैंने कभी सुना ही नहीं है।'' पार्वती जी ने अपनी अज्ञानता पर आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा।
शिव जी ने हिमालय से पिघलकर बहते हुए बर्फ़ को देखकर चिंता प्रकट करते हुए पार्वती से कहा, ''हे पार्वती तुम अभी इस समस्या से परिचित नहीं हो और न ही इसके भयावह परिणाम को जानती हो। इसलिए सावधान होकर सुनो, समझो और इस भूलोक को महाप्रलय से बचाने का प्रयत्न करो।''

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आज सिरहाने ज्ञानप्रकाश विवेक का उपन्यास
दिल्ली दरवाज़ा
तकनीकी विकास एक राष्ट्र को जहाँ अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर पहचान दिलवाता है, वहीं समाज के स्तर पर एक बड़ी अजनबीयत को भी जन्म देता है। बड़े स्तर पर अपनी पहचान की होड़ ने हमें भीतर से कितना संवेदना शून्य बनाया है, इसका उदाहरण महानगरों में पनप रही संस्कृति में देखा जा सकता है। दिल्ली के माध्यम से आज हम विकास की इस गति को नोटिस कर सकते हैं, और साथ ही नोटिस किया जा सकता है छीजती जाती मानवता की गति को भी। इसी दिशा में ज्ञानप्रकाश विवेक का यह उपन्यास दिल्ली के हर उस अनुभव से हमें रू-ब-रू करवाता है। जो एक राज्य को बाज़ार में तब्दील करता है। 'दिल्ली दरवाज़ा' इतिहास में प्रवेश कर उसकी राहों से गुज़रते हुए वर्तमान तक पहुँचने का माध्यम है।

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संस्कृति में ममता भारती का आलेख
हमारी संस्कृति में सात का महत्व
वैदिक रीति के अनुसार आदर्श विवाह में परिजनों के सामने अग्नि को अपना साक्षी मानते हुए सात फेरे लिए जाते हैं। विवाह की पूर्णता सप्तपदी के पश्चात तभी मानी जाती है जब वर के साथ सात कदम चलकर कन्या अपनी स्वीकृति दे देती है। वामा बनने से पूर्व कन्या वर से सात वचन लेती हैं। कन्या भी पत्नी के रूप में अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए सात वचन भरती है। सप्तपदी में पहला पग भोजन व्यवस्था के लिए, दूसरा शक्ति संचय, आहार तथा संयम के लिए, तीसरा धन की प्रबंध व्यवस्था हेतु, चौथा आत्मिक सुख के लिए, पाँचवाँ पशुधन संपदा हेतु, छटा सभी ऋतुओं में उचित रहन-सहन के लिए तथा अंतिम सातवें पग में कन्या अपने पति का अनुगमन करते हुए सदैव साथ चलने का वचन लेती है।


सप्ताह का विचार
चंद्रमा, हिमालय पर्वत, केले के वृक्ष और चंदन शीतल माने गए हैं, पर इनमें से कुछ भी इतना शीतल नहीं जितना मनुष्य का तृष्णा रहित चित्त। —वशिष्ठ

 

सुनीता ठाकुर, राजर्षि अरुण, रेखा कल्प, प्रो रमानाथ शर्मा और डा. भावना कुँअर की नई काव्य रचनाएँ

ताज़ा हिंदी चिट्ठों के सारांश
नारद से

होली विशेषां ग्र

-पिछले अंकों से-
कहानियों में
अगर वो उसे माफ़ कर दे-अर्चना पेन्यूली
होली का मज़ाक-यशपाल
एक और सूरज-जितेन ठाकुर
शिवः माम् मर्षयतु-
लोकबाबू
वैलेंटाइन दिवस-महावीर शर्मा
क़सबे का आदमी-
कमलेश्वर
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हास्य व्यंग्य में
आखिर ऐसा क्यों होता है?-अलका पाठक
काव्य कामना-अशोक चक्रधर
अमेरिका में गुल्ली डंडा-उमेश अग्निहोत्री
भोलेनाथ की . . .-शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
वनन में बागन में- अनूप कुमार शुक्ल
जनतंत्र-
डॉ नरेंद्र कोहली

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साक्षात्कार में
मधुलता अरोरा की बातचीत
महिलावादी कार्यकर्ता
दिव्या जैन से

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महानगर की कहानियों में
सुवर्ण शेखर दीक्षित की लघुकथा कल्पवृक्ष

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रसोईघर में माइक्रोवेव के साथ
गृहलक्ष्मी पका रही हैं
बेक्डबीन आलू कैसरोल
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संस्मरण में
मधुलता अरोरा की परिचर्चा
प्रख्यात लेखकों के होली-पल
*

ललित निबंध में
प्रेम जनमेजय का आलेख
लला फिर आईयो खेलन होली
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साहित्यिक निबंध में
सुधीर शाह के संग्रह से कतरनें
होली-पुराने दौर के समाचार-पत्रों में
*

प्रकृति और पर्यावरण में
टीम अभिव्यक्ति ले आई है
सदाबहार की बहार
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प्रौद्योगिकी में
मितुल पटेल द्वारा विकास की राह पर
हिंदी-विकिपीडिया
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साहित्य समाचार में—
ब्रसेल्स में भारत महोत्सव, दुबई में द्वितीय खाड़ी क्षेत्र हिंदी सम्मेलन संपन्न और सजीवन मयंक के काव्य संकलनों का विमोचन

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

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