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24. 3. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह—

सेंट पैट्रिक्स डे के अवसर पर
यू एस ए से इला प्रसाद की कहानी बैसाखियाँ
परेड दोपहर दो बजे से शाम चार बजे के बीच थी। सेंट पैट्रिक्स डे यानी हरे रंगों की बहार! हरी शर्ट, हरी टोपी, हरे मोतियों की माला और आँखों पर हरे रंग के फ़्रेम का चश्मा। कुछ ने हरा रंग चेहरे पर पोत रखा था। हरा गुलाल भी दिखाई पड़ा। हरियाली सब ओर। संत पैट्रिक ने नाम पर मनाया जाने वाला यह आइरिश त्योहार अब अमेरिका की ज़िंदगी का हिस्सा हो चुका है। यों तो उसने देखा है कि खुलता हुआ हरा रंग ही- जैसा घास का होता है- हर ओर छाया होता है लेकिन हरे के बाकी शेड भी देखने को मिल जाते हैं। अमूमन वह भी उस दिन कोई हरी शर्ट डाल लेती है अपनी ब्लू जीन्स पर और भीड़ में शामिल हो जाती है।

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हास्य-व्यंग्य में
तरुण जोशी का आलेख जिस रोज़ मुझे भगवान मिले
'ना माया से ना शक्ति से भगवन मिलते हैं भक्ति से', एक खूबसूरत गीत है और इसको सुनने के बाद लगा कि अगर मिलते होते तो भी प्रभु हमको मिलने से रहते। क्योंकि माया हमें वैसे ही नहीं आती, शक्ति हममें इतनी है नहीं और भक्ति हम करते नहीं, तो कुल जमा अपना चांस हुआ सिफ़र। लेकिन वो कहते हैं ना कि बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले ना भीख तो एक दिन बिन बुलाए मेहमान से भगवान हम से टकरा ही गए। अब इससे आगे का हाल अति धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत सज्जन और देवियाँ ना पढ़ें, इसको पढ़कर आपके मन के क्षीरसागर में उठने वाले तूफ़ान के हम ज़िम्मेदार नहीं होंगे और हमें गालियाँ देने को उठने वाले उफान के आप खुद ज़िम्मेदार होंगे।

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प्रौद्योगिकी में श्रीश बेंजवाल शर्मा सिखा रहे हैं
कंप्यूटर पर यूनिकोड में हिंदी टाइपिंग
हिंदी टाइपिंग से अनभिज्ञ बहुत से लोगों को भ्रम होता है कि कंप्यूटर पर हिंदी टाइप करने के लिए टाइपिंग सीखनी पड़ती है लेकिन यह आवश्यक नहीं है। आजकल यूनिकोड के आगमन के पश्चात हिंदी टाइपिंग हेतु कई फोनेटिक टूल उपलब्ध हैं जिनसे आप इंग्लिश में लिखेंगे और वह अपने आप हिंदी में बदल कर टाइप हो जाएगा। मैं हिंदी और इंग्लिश समान गति से लिखता हूँ जबकि मैंने हिंदी टाइप करना कभी नहीं सीखा। अतः नए लोगों को यह बात मन से निकाल देनी चाहिए कि हिंदी के लिए अलग से टाइपिंग सीखने की ज़रूरत होती है। चूँकि आजकल यूनिकोड हिंदी प्रचलन में है अतः इसी को सीखने की बात करते हैं।

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विज्ञानवार्ता में गुरु दयाल प्रदीप सुलझा रहे हैं
दिल और दिमाग़ की उलझन में फँसी रचना-प्रक्रिया की प्रक्रिया
रचना-प्रक्रिया की प्रक्रिया. . .शीर्षक जटिल है न? मुझे भी लग रहा है, लेकिन किया क्या जाय? यह तो होना ही था। आख़िर यह रचनाकारों के दिमाग़ का मामला है, कोई दिल्लगी नहीं! दिल्लगी से याद पड़ा, चाहे सामान्य सोचने-समझने की प्रक्रिया हो या फिर चाहे प्यार, गुस्सा, उत्तेजना, घृणा जैसी भावनाओं का उफान हो - दिल का इनसे कुछ लेना-देना नहीं है, यह बिचारा तो मुफ़्त में बदनाम है। इसकी ग़लती बस इतनी ही है कि भावनाओं के उतार-चढ़ाव के साथ इसके धड़कनों की रफ़तार बढ़ जाती है और वह भी इस दौरान हमारे दिमाग़ में चल रही विद्युत-रासायनिक प्रक्रियों तथा अंत:स्रावी ग्रंथियों से स्रवित हॉरमोन्स के कारण ऐसा होता है।

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साहित्य समाचार में

सप्ताह का विचार
इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। –आचार्य श्रीराम शर्मा

 

कृष्णा नंद कृष्ण, राजेन्द्र पासवान घायल, दिनेश पारते, और संदेश त्यागी की नई रचनाएँ

ताज़ा हिंदी चिट्ठों के सारांश
नारद से

होली विशेषां ग्र

-पिछले अंकों से-

कहानियों में
पगडंडियों की आहटें - जयनंदन
अगर वो उसे माफ़ कर दे-अर्चना पेन्यूली
होली का मज़ाक-यशपाल
एक और सूरज-
जितेन ठाकुर
शिवः माम् मर्षयतु-
लोकबाबू
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हास्य व्यंग्य में
ग्लोबल वार्मिंग...- शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
आखिर ऐसा क्यों होता है?-अलका पाठक
काव्य कामना-अशोक चक्रधर
अमेरिका में गुल्ली डंडा-उमेश अग्निहोत्री
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प्रकृति और पर्यावरण में
स्वाधीन की पड़ताल
गरमाती धरती घबराती दुनिया
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आज सिरहाने
ज्ञानप्रकाश विवेक का उपन्यास
दिल्ली दरवाज़ा

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संस्कृति में
ममता भारती का आलेख
संस्कृति में सात का महत्व

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साक्षात्कार में
मधुलता अरोरा की बातचीत
महिलावादी कार्यकर्ता
दिव्या जैन से
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महानगर की कहानियों में
सुवर्ण शेखर दीक्षित की लघुकथा
कल्पवृक्ष
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रसोईघर में
गृहलक्ष्मी पका रही हैं
बेक्डबीन आलू कैसरोल
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संस्मरण में
मधुलता अरोरा की परिचर्चा
प्रख्यात लेखकों के होली-पल
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ललित निबंध में
प्रेम जनमेजय का आलेख
लला फिर आईयो खेलन होली
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साहित्यिक निबंध में
सुधीर शाह के संग्रह से कतरनें
होली-पुराने दौर के समाचार-पत्रों में

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

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