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1. 7. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह—
समकालीन कहानियों में
आशुतोष कुमार झा की कहानी अविजित
जून का महीना। तपती दोपहर। गर्मी का यह आलम था कि सड़क का अलकतरा पिघल गया था। पैदल चलने वाले लोग पूर्णिया शहर को बीचो-बीच बाँटने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग से उतर कर किनारे-किनारे चल रहे थे ताकि उनके पैर पिघले अलकतरे पर न पड़ें। सड़क पर गुड़कते रिक्शा एवं साइकिल के पहिए पिघले सड़क से चिपक रहे थे। तेज़ी से गुज़रते ट्रक एवं बस जैसे बड़े वाहन अजीब-सी गंभीर आवाज़ कर रहे थे। चार पहिये वाली छोटी तथा बड़ी सवारियों के अलावा इक्के-दुक्के रिक्शे, ऑटो-रिक्शे तथा धूप में झुलसते साइकिल सवार नज़र आ जाते थे। सिवाय उनके मानो पूरा शहर वीरान पड़ा था।

*

हास्य-व्यंग्य में
अविनाश वाचस्पति खोज रहे हैं खुशी का ठिकाना
हैपिनेस इंडेक्स से खुशियों को नापने की तलाशी ज़ोरों पर है। पर इसमें कामयाबी जीरो ही रहेगी। पहले तो इस बात का पता लगाना होगा कि खुशी दिल में रहती है या दिमाग़ में। या इन दोनों से ही नदारद होती है। आधे तो इस बात से दुखी होते हैं कि दूसरा सुखी क्यों है? बाकी आधों को दूसरों के दुख में सुख की प्राप्ति होती है। और जो बाकी बचे वे सुखी के सुख में सुखी और दुखी के दुख में दुखी होते हैं। अब आप कहेंगे कि बाकी बचे ही कहाँ तो मेरा कहना है कि आप मान लीजिए कि ऐसे लोग इस पृथ्वी पर तो उपलब्ध नहीं हैं, बाकी सृष्टि के बारे में मैं कोई गारंटी-वारंटी नहीं ले सकता।

*

धारावाहिक में
ममता कालिया के उपन्यास दौड़ की पाँचवीं किस्त
बारह बजे अनुपम का धैर्य समाप्त हो गया। उसने कहा, ''भाई मैं सोने जा रहा हूँ। सुबह ऑफ़िस भी जाना है।''
कमरे में अकेले होते ही रेखा ने कहा, ''पुन्नू यह सिलबिल-सी लड़की तुझे कहाँ मिल गई?''
पवन ने कहा, ''तुम्हें तो हर लड़की सिलबिल नज़र आती है। इसका लाखों का कारोबार है।''
''पर लगती तो दो कौड़ी की है। यह तो बिलकुल तुम्हारे लायक नहीं।''
''यही बात तुम्हारे बारे में दादीमाँ ने पापा से कही थी। क्या उन्होंने दादीमाँ की बात मानी थी, बताइए।''  रेखा का सर्वांग संताप से जल उठा।
''मैंने तो ऐसी कोई लड़की नहीं देखी जो शादी के पहले ही पति के घर में रहने लगे।''

*

साहित्यिक निबंध में डॉ पद्मप्रिया का आलेख
मुक्तिबोध की अधूरी कहानियाँ और लंबी कविताएँ

'भूत का उपचार' कहानी लिखते हुए मुक्तिबोध ने स्वीकार किया है कि जब वो कहानी नहीं लिख पाए तो कविता लिख दी और लंबी कविताओं की समझने का यही आधार इस आलेख का मुख्य मुद्दा है। 'भूत का उपचार' 1968 में कल्पना में प्रकाशित हुई थी इसलिए इसे अधूरी कहानी नहीं कहा जा सकता किंतु इसके द्वारा मुक्तिबोध की कविताओं को ही नहीं बल्कि लंबी कविताओं की चेतना के विस्तार को भी समझा जा सकता है। ....वस्तुतः जब वे कहानियाँ नहीं लिख पाते तो बीच में ही कविता करने लगते हैं। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उनकी अधूरी कहानियाँ लंबी कविताओं में परिणत हो गई।

*

फुलवारी में
मौसम की जानकारी बर्फ़ क्यों गिरती है?

जब बादल का तापमान हिमांक से नीचे पहुँच जाता है तब वहाँ नन्हें-नन्हें  हिमकण बनने लगते हैं। जब ये कण बादल से नीचे की ओर गिरते हैं तो वे एक दूसरे से टकराते हैं और एक दूसरे में जुड़ जाते हैं। इस प्रकार इनका आकार बड़ा होने लगता हैं। जितने ज़्यादा हिमकण आपस में जुड़ते हैं हिमकण का आकार उतना ही बड़ा होता जाता हैं। पृथ्वी पर वे छोटी छोटी हिमपर्तों के रूप में झरने लगते हैं। ये हिमपर्त षटकोणीय होते हैं और कोई भी दो हिमपर्त आकार में एक से नहीं होते। हिमकण प्रकाश को प्रतिबिम्बित करते हैं, इसलिए ये सफ़ेद दिखाई देते हैं। अगर हवा का तापमान हिमांक से नीचे न हो तो ये हिमकण गिरते समय पिघल जाते हैं।

 

देवेंद्र आर्य,
मदन मोहन शर्मा अरविंद,
 जयप्रकाश मानस, कवि कुलवंत सिंह और सुरेश राय की नई रचनाएँ

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-पिछले अंकों से-
कहानियों में
लड़का, लड़की, इंटरनेट-कोल्लूरि सोम शंकर
बसेरा
- शैल अग्रवाल
अंतिम तीन दिन- दिव्या माथुर

पेड़ कट रहे है- सुमेर चंद
वसीयत- महावीर शर्मा

मुलाक़ात- शिबन कृष्ण रैणा

*

हास्य व्यंग्य में
बड़ी बेइंसाफ़ी है!- मुरली मनोहर श्रीवास्तव
अमलतास की...- शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
अमलतास बोले तो?- अभिनव शुक्ल
काश! हम भी कबूतरबाज़ होते-गुरमीत बेदी

*

साहित्य समाचार में

* डा. होमी भाभा हिंदी विज्ञान लेख प्रतियोगिता-2007
* कैनबरा आस्ट्रेलिया में काव्य संध्या
* अभिरंजन कुमार के कविता संग्रह 'उखड़े हुए पौधे का बयान' का लोकार्पण
* विश्व विरासत बना ऋग्वेद

*

प्रकृति में
अर्बुदा ओहरी का आलेख
अमलतास

*

टिकट संग्रह में
पूर्णिमा वर्मन ढूँढ लाई हैं
डाक टिकटों के संसार में अमलतास

*

निबंध में धर्म प्रकाश जैन का
अमलतास से परिचय

और डॉ जगदीश व्योम की गलियों में
फिर फूले अमलतास

*

दृष्टिकोण में
"भारतदीप" का विश्लेषण
मुद्दे उछलते क्यों हैं

*

रसोईघर में
तपती गरमी के लिए ठंडी
आम मधुरिमा

सप्ताह का विचार
दस गरीब आदमी एक कंबल में आराम से सो सकते हैं, परंतु दो राजा एक ही राज्य में इकट्ठे नहीं रह सकते।
— मधूलिका गुप्ता

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

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