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३०. ११. २००

सप्ताह का विचार-  इस विश्व में स्वर्ण, गाय और पृथ्वी का दान देनेवाले सुलभ है लेकिन प्राणियों को अभयदान देनेवाले इन्सान दुर्लभ हैं। भर्तृहरि

अनुभूति में-
रमेश गौतम, धनंजय कुमार, सुधा ओम ढ़ींगरा, निवेदिता जोशी और मदन गोपाल लढा  की रचनाएँ।

कलम गहौं नहिं हाथ-दीवार को भारतीय संस्कृति में विशेष श्रद्धा की दृष्टि से नहीं देखा जाता- कहीं यह रुकावट की प्रतीक है तो कहीं बँटवारे की ...आगे पढ़ें

सामयिकी में- सोमालिया के समुद्री डाकुओं की पड़ताल के बाद क्रिस मिल्टर खोल रहै हैं इन भयानक समुद्री डाकुओं का ज़हरीला रहस्य!

रसोई सुझाव- पूरी का आटा माड़ते समय पानी के साथ थोड़ा दूध मिला दिया जाए तो पूरियाँ नर्म और स्वादिष्ट बनती हैं।

पुनर्पाठ में- पर्यटन के अंतर्गत १६ जनवरी २००१ को प्रकाशित सोहन शर्मा का आलेख सोने के शहर में रेत के सपने

क्या आप जानते हैं? कि संस्कृत साहित्य का अधिकतर साहित्य पद्य में रचा गया है, जब कि अन्य भाषाओं का ज़्यादातर साहित्य गद्य में पाया जाता है!

शुक्रवार चौपाल- बकरीद का उपलक्ष्य में इस शुक्रवार चौपाल की छुट्टी रही। अगली चौपाल ४ दिसंबर को लगेगी। तब फिर से उपस्थित होंगे... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-५ की सभी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आशा है इस सप्ताह अगली कार्यशाला के विषय की घोषणा हो जाएगी।


हास परिहास

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में भारत से
बलराम अग्रवाल की कहानी खुले पंजोंवाली चील

दोनों आमने-सामने बैठे थे-काले शीशों का परदा आँखों पर डाले बूढ़ा और मुँह में सिगार दबाए, होठों के दाएँ खखोड़ से फुक-फुक धुँआ फेंकता फ्रेंचकट युवा। चेहरे पर अगर सफेद दाढ़ी चस्पाँ कर दी जाती और चश्मे के एक शीशे को हरा पोत दिया जाता तो बूढ़ा 'अलीबाबा और चालीस चोर' का सरदार नज़र आता और फ्रेंचकट लम्बोतरे चेहरे और खिंची हुई भवों के कारण वह चंगेजी-मूल का लगता था। आकर बैठे हुए दोनों को शायद ज़्यादा वक्त नहीं गुज़रा था, क्योंकि मेज़ अभी तक बिल्कुल खाली थी। बूढ़े ने बैठे-बिठाए एकाएक कोट की दायीं जेब में हाथ घुमाया। कुछ न मिलने पर फिर बायीं को टटोला। फिर एक गहरी साँस छोड़कर सीधा बैठ गया।
''क्या ढूँढ रहे थे?'' फ्रेंचकट ने पूछा,''सिगार?''
''नहीं…''
''तब?''
''ऐसे ही…'' बूढ़ा बोला, ''बीमारी है थोड़ी-थोड़ी देर बाद जेबें टटोल लेने की।''...  पूरी कहानी पढ़ें...
*

प्रमोद ताम्बट का व्यंग्य
आज़ादी सपने देखने की
*

स्वदेश राणा का धारावाहिक
नचे मुंडे दी माँ का छठा भाग

*

कैलाश जैन का आलेख
अद्भुत औषधि- ईसबगोल
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

1

पिछले सप्ताह-
 

विनोद विप्लव का व्यंग्य
सच की नगरी - चोरों का राजा
*

स्वदेश राणा का धारावाहिक
नचे मुंडे दी माँ का पाचवाँ भाग

*11

रामकृष्ण का आलेख
गीता की रचना
*

ज्ञान-विज्ञान में डॉ. गुरूदयाल प्रदीप से जानें
सदुपयोग मकड़ी के जाले का

1*

समकालीन कहानियों में
भारत से महेशचंद्र द्विवेदी की कहानी चाची

चाची! तुम पूछोगी नहीं, 'लला! मेम साहब कौ नाईं लाए का?'
मैं आ गया हूँ और तुम्हें बताने को उत्सुक हूँ कि मेम साहब भी आईं हैं, मेरे पीछे बरामदे के दरवाज़े पर किवाड़ का सहारा लेकर खड़ीं हैं- तुम्हारे द्वारा पूछे जाने की प्रतीक्षा वह भी कर रहीं हैं। पर हम जानते हैं कि यह प्रतीक्षा तो हमारी मृगतृष्णांत करने को मृगमरीचिका मात्र है- तुम तो हमसे इतनी रूठ गई हो कि कभी भी हमसे कोई पूछताछ न करने का संकल्प ले चुकी हो।दोपहरी हो चुकी है और दोपहर चाहे जाड़े की हो, बरसात की हो या गर्मी की, उस समय तुम्हारे मुहल्ले की दस-पाँच स्त्रियाँ तो तुम्हें घेरे ही रहती हैं- मुनुआँ की दादी को अपनी बहू द्वारा उलटा जवाब दिए जाने की शिकायत करनी होती है, चमेली को अपनी सास की गालियों से तंग आकर अपने दिल की भड़ास निकालनी होती है... 
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