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२१. १२. २००९

सप्ताह का विचार- चरित्रहीन शिक्षा, मानवता रहित विज्ञान और नैतिकताहीन व्यापार सृष्टि को खोखला कर विनाश की ओर ले जाते है।  -सत्यसाईं बाबा

अनुभूति में-
संतोष कुमार, डॉ. आशुतोष कुमार सिंह, कुंअर रवीन्द्र, त्रिलोक सिंह ठकुरेला और डॉ. धर्मवीर भारती की रचनाएँ।

कलम गहौं नहिं हाथ- जिस तरह मुंबईवालों को दौड़ने की आदत है उसी तरह दुबई वालों को चलने की आदत है। किसी न किसी बात पर पदयात्रा...आगे पढ़ें

सामयिकी में- कोपेनहेगन जलवायु शिखर वार्ता में छुपे चालाकी भरे पक्ष को उजागर करते हुए मीनाक्षी  अरोरा का आलेख- समझौते में छुपे रहस्य

रसोई सुझाव- केक की ५०० ग्राम आइसिंग में अगर एक चाय का चम्मच ग्लीसरीन मिला दी जाय तो आइसिंग सूखती नहीं और देर तक ताज़ी रहती है।

पुनर्पाठ में- २००२ में प्रकाशित गीतांजिलि सक्सेना का लेख क्रिसमस कुछ तथ्य तथा २००६ में प्रकाशित सरोज मित्तल का लेख देश-विदेश में क्रिसमस

क्या आप जानते हैं? कि सन १८४३ में सर हेनरी कोल जे.सी. हॉर्सले के निर्देश पर इंग्लैंड में पहली बार क्रिसमस कार्ड छपवाए और बेचे गए थे।

शुक्रवार चौपाल- १७ दिसंबर को भारतीय दूतावास, आबूधाबी में संक्रमण और गैंडाफूल के मंचन से कलाकार और दर्शक दोनो संतुष्ट दिखे। ... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-६ में घोषित कुहासा या कोहरा विषय पर गीतों का प्रकाशन २५ दिसंबर से प्रारंभ हो रहा है।


हास परिहास

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में भारत से
दुर्गेश गुप्त 'राज' की कहानी
आइटम नंबर दस

'आइटम नंबर टेन` आवाज़ आती है। 'हाँ, मैं तैयार हूँ.' मैं जबाव देता हूँ और कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए अपने आपको तैयार करने लगता हूँ। सायकल उठाता हूँ और उस पर सवार हो अपने चेहरे पर रोज़ाना वाली कृत्रिम मुस्कुराहट लाने की कोशिश करता हूँ। बालों में कंघी मारता हूँ। फिर होठों की मुस्कुराहट को स्थिर करने की कोशिश करने लगता हूँ। तभी देखता हूँ जिमनास्टिक वाला ग्रुप लौटकर आ रहा है और मेरा ही नंबर है। तभी मेरे पाँव हमेशा की तरह यंत्रवत अपना कार्य शुरू कर देते हैं और मैं एक बार फिर अपने करतब दिखाने के लिए कूद पड़ता हूँ ज़िन्दा लाशों के बीच। हाँ हज़ारों ज़िन्दा लाशों के बीच में। जो केवल सर्कस देखने के लिए आते हैं। सर्कस यानि कि जाँबाज़ कलाकारों के ख़तरनाक खेल, हैरत-अंगेज़ कारनामे। मैं संगीत की धुन पर किसी लहराते, बलखाते नाग की तरह अपने होठों पर सदाबहार मुस्कुराहट बिखेरते हुए सायकल पर नाचने लगता हूँ। पूरी कहानी पढ़ें...
*

राकेश शर्मा का व्यंग्य
कोई जूते से न मारे
*

स्वदेश राणा का धारावाहिक
नचे मुंडे दी माँ का अंतिम भाग

*

डॉ. दिवाकर का आलेख
चूड़ियाँ- इतिहास से संस्कृति तक
*

रानी पात्रिक का संस्मरण-
क्रिसमस जो ढ़ोलक की थाप पर पूरा हुआ

पिछले सप्ताह
 

अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य
काले का बोलबाला
*

स्वदेश राणा का धारावाहिक
नचे मुंडे दी माँ का आठवाँ भाग

*

तारादत्त निर्विरोध के साथ देखें
आबू की प्राकृतिक सुषमा
*

और घर-परिवार में-
माटी कहे पुकार के

*

समकालीन कहानियों में
भारत से दीपक शर्मा की कहानी रक्त कौतुक

''कुत्ता बँधा है क्या?'' एक अजनबी ने बंद फाटक की सलाखों के आर-पार पूछा।
फाटक के बाहर एक बोर्ड टँगा था- 'कुत्ते से सावधान!'

ड्योढ़ी के चक्कर लगा रही मेरी बाइक रुक ली। बाइक मुझे उसी सुबह मिली थी। इस शर्त के साथ कि अकेले उस पर सवार होकर मैं घर का फाटक पार नहीं करूँगा। हालाँकि उस दिन मैंने आठ साल पूरे किए थे।
''उसे पीछे आँगन में नहलाया जा रहा है।''

इतवार के इतवार माँ और बाबा एक दूसरे की मदद लेकर उसे ज़रूर नहलाया करते। उसे साबुन लगाने का ज़िम्मा बाबा का रहता और गुनगुने पानी से उस साबुन को छुड़ाने का ज़िम्मा माँ का।
''आज तुम्हारा जन्मदिन है?'' अजनबी हँसा- ''यह लोगे?''  पूरी कहानी पढ़ें...

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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