पुरालेख तिथि-अनुसार। पुरालेख विषयानुसार हिंदी लिंक हमारे लेखक लेखकों से
SHUSHA HELP // UNICODE HELP / पता-


५. ४. २०१

सप्ताह का विचार-स्वदेशी उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा, ज्ञान, तकनीक,  खानपान, भाषा, वेशभूषा एवं स्वाभिमान के बिना विश्व का कोई भी देश महान नहीं बन सकता। - बाबा रामदेव

अनुभूति में-
निर्मला जोशी, गौतम राजरिशी, कृष्ण कन्हैया, जयजयराम आनंद और प्रत्यक्षा की रचनाएँ।

यह चेहरा कुछ पहचाना सा है न? अनिल कपूर ही तो हैं शायद किसी भूमिका के लिए वज़न कुछ बढ़ाया है। मैंने भी एक बार यही सोचा था लेकिन...आगे पढ़ें

सामयिकी में- लखनऊ में अपशिष्ट प्रबंधन के नए प्रयोगों के विषय में प्रभा चतुर्वेदी से वरालिका दुबे की बातचीत- कूड़े से आसक्ति प्रदूषण से मुक्ति

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव - रोज़ दोपहर में खाने के साथ एक गाजर सलाद की तरह कच्ची खाने से आँखों के चारों और पड़े काले निशान दूर हो जाते हैं।

पुनर्पाठ में- १ अप्रैल २००१ को पर्व परिचय के अंतर्गत प्रकाशित टीम अभिव्यक्ति का आलेख- अप्रैल माह के पर्व।

क्या आप जानते हैं? कि आस्ट्रेलिया में पाए जाने वाला पशु कंगारू और पक्षी एमू केवल आगे की ओर ही चल या दौड़ सकते हैं, पीछे की ओर नहीं।

शुक्रवार चौपाल- पिछले सप्ताह शरद जोशी के नाटक एक था गधा उर्फ अल्लादाद खाँ का फिर न हो सका। कारण? कुछ सदस्य छुट्टी पर थे और... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- छाई है कुछ सुस्ती, गर्मी का मौसम है और नए विषय की प्रतीक्षा, देखते हैं कि अगला विषय क्या आता है।


हास परिहास
1

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
इला प्रसाद की कहानी मुआवज़ा

"सब साले काले - पीले हैं !"
श्रुति और इन्द्र की आँखों में सीधा देखते हुए उसने एक जोर का ठहाका लगाया। सामने से आ रहे एक चीनी और एक काले मित्र के अभिवादन पर दी गई प्रतिक्रिया थी यह। वे हँसे, एक नासमझ हँसी, एक खुली, निश्छल हँसी - उसका साथ देने के लिए- बिना यह जाने कि वह कमेन्ट उन्हीं के लिए है। वह चाह कर भी साथ नहीं दे पाई। मुस्करा कर रह गई। एक उदास मुस्कराहट, जो जबरन ओठों के कोरों तक फैलती है और आँखों में कोई अहसास नहीं उपजता। उसकी हँसी भी तो कैसी थी! अन्दर का सारा खालीपन मूर्त हो उठा था एकबारगी। मैनहट्टन में सब-वे के उस सूने प्लेटफ़ार्म पर वे खड़े थे जहाँ से उस दिन कोई ट्रेन नहीं जानी थी। वह यही समझा रहा था उन्हें। सप्ताहांत में ट्रेनों के रूट बदल जाते हैं और वे दोनों घूम- फ़िर कर उसी प्लेटफ़ार्म पर वापस आ गए थे, जहाँ से कुछ ही मिनट पहले उसने उन्हें वापस भेजा था। सम्मेलन तो सिर्फ़ तीन दिनों का था!  पूरी कहानी पढ़ें...
*

संजय पुरोहित का व्यंग्य
लोन ले लो लोन
*

प्रकाश गोविंद का लेख
भारतीय नाटकों पर विदेशी प्रभाव

*

हमारी संस्कृति के अंतर्गत
डॉ. आशीष मेहता का आलेख- मल्लखंभ

*

राहुल संकृत्यायन का साहित्यिक निबंध
अथातो घुमक्कड़ - जिज्ञासा

पिछले सप्ताह

विजी श्रीवास्तव का व्यंग्य
सच का सामना में गांधी जी का बंदर
*

रूपेश कुमार का आलेख
आईआईटी कानपुर का जुगनू अंतरिक्ष में
*

कैलाश जैन से सुनें
पहली अप्रैल की कहानी

*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

*

समकालीन कहानियों में भारत से
निर्मल गुप्त की कहानी नदीदे

हाथ में काँच की रंग-बिरंगी गोलियाँ उछालता रघु चारों ओर घेर कर खड़े बच्चों को चीख-चीख कर हिदायतें दे रहा था। छूना मत। हाथ मत लगाना। अबके धंईया मेरी। निशाना न लगे तो कहना।
जबरदस्त खेल चल रहा था। पूरी बारह गोलियाँ दाँव पर लगी थीं। मजाक की बात थी क्या। सुकना ने उलाहना दिया, ''हाँ-हाँ बहुत देखे हैं धंईया जीतने वाले। पहले कन्चे फेंक तो सही।''
''फेंकता हूँ, पर देख सुकना। सबको गुच्चक पर से हटा दे।''
''हटो रे'' कहता सुकना किसी कांस्टेबिल की तरह उत्सुकता से आगे बढ़ आए बच्चों को पीछे धकेलने लगा।
सब बच्चे दम साधे खड़े थे। देखों क्या होता हैं? कौन जीतेगा इत्ते सारे कन्चे? सुकना या रघु, रघु या सुकना। सब अटकलें लगा रहे थे। पूरी कहानी पढ़ें...

अपनी प्रतिक्रिया लिखें / पढ़ें

Click here to send this site to a friend!

अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ

आज सिरहानेउपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग घर–परिवार दो पल नाटक
परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
डाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसरहमारी पुस्तकें

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

पत्रिका की नियमित सूचना के लिए अभिव्यक्ति समूह के सदस्य बनें। यह निःशुल्क है।

Google
Search WWW Search www.abhivyakti-hindi.org

hit counter

आँकड़े विस्तार में
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ०