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२८. २. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में- 1
कीर्ति काले, विनोद तिवारी, प्रेमचंद गांधी, आचार्य संजीव सलिल और दिनेश चमोला शैलेष की रचनाएँ।

- घर परिवार में

सप्ताह का व्यंजन- चीनी भोजन के अंतर्गत गृहलक्ष्मी प्रस्तुत कर रही हैं व्यंजन विधि- शाकाहारी मंचूरियन, सॉस के साथ

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- नवजात शिशु का नवाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- ल्यूकोरिया नामक रोग कमजोरी और चिडचिडेपन, के साथ चेहरे की चमक भी उड़ा ले जाता हैं। इससे बचने का एक आसान सा उपाय-

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १६ फरवरी से २८ फरवरी २०११ तक का भविष्य फल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- यू एस बी, पी सी से उपकरणों को जोड़ने के लिए एक मानक है जिसमें तारों की संख्या, कनेक्टर के आकार तथा उन पर...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला १४ की घोषणा हो चुकी है। इस सप्ताह रचनाओं का प्रकाशन आरंभ बो जाएगा। अपनी रचना शीघ्र भेज दें... आगे पढ़ें...

वर्ग पहेली-०१८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- इस सप्ताह अधिकतर सदस्यों के एक स्थानीय प्रस्तुति में व्यस्त रहने के कारण चौपाल स्थगित रही।... आगे पढ़ें

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य और संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कहानी निःशंक

वह घर पहुँचकर अनमनी और उदास तो थी ही, एक नि:संग सी व्यर्थता और खालीपन का बोझ भी उसे अन्दर ही अन्दर शिथिल किये था। अच्छा होता, वह घर से जाती ही नहीं। फिर एक प्रतिरोध उठा- क्यों नहीं जाती। नकाबों को ढोते-ढोते कब तक जीना होगा। पर नकाब उतर जाने से भी क्या बेचैनी मिट जाती है ? वह अपने आप में बड़ी अव्यवस्थित थी। दो बार बाहर यूँ ही बरामदे में जाकर देख आयी कि दरवाज़ा ठीक से बंद तो है। दरवाज़ों के पल्लों पर अन्यथा मिट्टी की परतें दिखाई देने लगी थीं। परदों का चितकबरापन मुँह चिढ़ा रहा था। धूप की वजह से उनका रंग उड़ा-उड़ासा लगने लगा था। आज तो वे नितांत बेरंग लग रहे थे। ध्यान नहीं जाता तो सब ठीक लगता है पर एक बार कहीं मन के कोने में खटका हो गया तो बात उतरती ही नहीं।  रोज़ डाइनिंग टेबल पर चिड़िया फुदकती रहती हैं और आज तो बड़ी ढीठता से बीट कर गई थीं। उसे लगा यह भी उन्हें न झटकने का ही कारण है। पूरी कहानी पढ़ें...
*

धीरेन्द्र शुक्ला का व्यंग्य
खेल घोटालों का 
*

टीम अभिव्यक्ति की
श्रद्धांजलि चाचा अनंत पई को
*

फुलवारी में बच्चों के लिये-
आविष्कारों की कहानी
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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पिछले सप्ताह-


सुरेन्द्र गुप्त की लघुकथा
रजाई 
*

प्रकृति और पर्यावरण में अनुपम मिश्र
का लेख- सिमट-सिमट जल भरहिं तलाबा

*

डॉ. राजेन्द्र गौतम का संस्मरण
सादगी और साफ़गोई की तस्वीर- डॉ. शंभुनाथ सिंह
*

पुनर्पाठ में देखें-
चित्र लेख- दिन की अगवानी

*

उपन्यास अंश में भारत से
पुष्पा तिवारी के उपन्यास 'नरसू की टुकुन कथा'
का एक अंश- नरसू

नाचते-नाचते थक गया हूँ। पैर हैं कि मन में थिरकते ही रहते हैं। स्टेशन दर स्टेशन गाड़ियाँ बदलते पैर कितने थक गए हैं और मन भी। मेरे पैर नाचते हुए कभी नहीं थके। नाचने से मैं कभी थकता भी नहीं। वह उत्साह नहीं है, लेकिन आज समय के बदलते अंदाज़ में, मैं कहाँ हूँ? क्या सोच कर यहाँ आया था और कहाँ पहुँचा? पहुँच पाया भी कि नहीं नहीं मालूम! उम्र के कितने बरस बीत गए हैं... शायद पैंसठ या एक दो साल ज्यादा ही। कभी फुरसत नहीं मिली कुछ भी सोचने की। मेरी एक ज़िद सदैव रही है और तिस पर एक जुनून। उसने मुझे और किसी बात के लिए अवसर ही नहीं दिया। बिता दिया एक सक्रिय जीवन अपनी तरह का। अब सोचने को बचा कहाँ है? बच्चे बड़े हो गए हैं। सोच तो वे रहे हैं। उनके सामने पूरा जीवन है। पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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