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२८. ३. २०१

इस सप्ताह-

अनुभूति में- 1
माधव कौशिक, ओम प्रकाश यती, अपर्णा मनोज, श्यामल सुमन और शशिरंजन कुमार की रचनाएँ।

- घर परिवार में

मसालों का महाकाव्य- देश-विदेश में लोकप्रिय चटपटे मिश्रणों के बारे में प्रमाणिक जानकारी दे रहे हैं शेफ प्रफुल्ल श्रीवास्तव। इस अंक में- शाकालाका

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का तेरहवाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से - दाँतों की कष्ट में तिल का उपयोग

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- मार्च से ३१ मार्च २०११ तक का भविष्य फल

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- एड्रेस बार पर कुछ लिख कर Ctrl+Enter दबाने पर प्रारम्भ में www और अन्त में .com अपने आप लगाकर...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-१५ का विषय है समाचार हैं, रचना भेजने की अंतिम तिथि १० अप्रैल है। प्राप्त रचनाओं का प्रकाशन होगा १ अप्रैल से

वर्ग पहेली-०२२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- में इस सप्ताह मोपासां की तीन कहानियाँ पढ़ी जानी थीं। हीरों का हार, बेकार सौंदर्य और एक राज काज।... आगे पढ़ें

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य और संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से
सुभाष नीरव की कहानी चुप्पियों के बीच तैरता संवाद

मुझे यहाँ आए एक रात और एक दिन हो चुका था।
पिताजी की हालत गंभीर होने का तार पाते ही मैं दौड़ा चला आया था। रास्ते भर अजीब-अजीब से ख्याल मुझे आते और डराते रहे थे। मुझे उम्मीद थी कि मेरे पहुँचने तक बड़े भैया किशन और मँझले भैया राज दोनों पहुँच चुके होंगे। पर, वे अभी तक नहीं पहुँचे थे। जबकि तार अम्मा ने तीनों को एक ही दिन, एक ही समय दिया था। वे दोनों यहाँ से रहते भी नज़दीक हैं। उन्हें तो मुझसे पहले यहाँ पहुँच जाना चाहिए था, रह-रहकर यही सब बातें मेरे जेहन में उठ रही थीं और मुझे बेचैन कर रही थीं।
मैं जब से यहाँ आया था, एक-एक पल उनकी प्रतीक्षा में काट चुका था। बार-बार मेरी आँखें स्वत: ही दरवाजे की ओर उठ जाती थीं। मुझे तो ऐसे मौकों का जरा-भी अनुभव नहीं था। कहीं कुछ हो गया तो मैं अकेला क्या करूँगा, यही भय और दुश्चिन्ता मेरे भीतर रह-रहकर साँप की तरह फन उठा रही थी।
पूरी कहानी पढ़ें...
*

डॉ. बालकरण पाल का व्यंग्य
बैठकबाजी
*

वल्लभाचार्य जयंती के अवसर पर
पुष्टि मार्ग के प्रवर्तक वल्लभाचार्य
*

रश्मि आशीष का लेख
उपयोगी ब्राइजटर एक्सटेंशन
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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पिछले सप्ताह-


शैल चंद्रा का प्रेरक प्रसंग
पूजनीय कौन
*

कुमार रवींद्र का रचना प्रसंग
लोक संस्कृति और नवगीत

*

अनुपम मिश्र का प्रकृति-लेख
पानी की राजनीति
*

पुनर्पाठ में निर्मला जोशी का आलेख-
मंच के हंस बलबीर सिंह रंग

*

समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
सुधा ओम ढींगरा की कहानी ...और बाड़ बन गई

''साथ वाले घर के सामने सामान ढोने वाला ट्रक खड़ा है। लगता है नए पड़ोसी आ गए हैं।" घर में प्रवेश करते ही मनु ने कहा।
यह सुनते ही मेरी उनींदी आँखें पूरी तरह से खुल गईं। मैं रसोई में सुबह की चाय बना रही थी और पूरी तरह से सचेत नहीं हुई थी। सुबह जब तक मैं एक प्याला चाय का ना पी लूँ, चुस्त-दुरुस्त नहीं हो पाती।
''क्या आप ने उन्हें देखा है ?'' उँगलियों के अग्रिम पोरों से आँखों को मलते हुए मैंने पूछा।
''नहीं सिर्फ सामान ढोने वाले श्रमिक देखें हैं।'' 
अखबार को पालीथिन के कवर से बाहर निकालते हुए मनु ने कहा और पालीथिन को कचरा डालने वाले डिब्बे में डाल दिया।
सुबह उठते ही वे बाहर से अखबार उठाने चले जाते हैं और मैं रसोई में चाय बनाने। अमेरिका में अखबार भी कितने सलीके से ढका होती है ताकि बरसात का पानी उसके काग़ज़ों पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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