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              समकालीन कहानियों 
				में भारत सेविवेक मिश्र की कहानी 
					ऐ गंगा बहती 
				हो क्यों
 
					
					 गंगा पीछे रह 
					गई थी, वाराणसी का स्टेशन भी। एक यात्रा तो पूरी हुई, लेकिन 
					दूसरी...? अजीब-सा शोर है, अजीब-सी सनसनी। गंगा का नतोदर 
					प्रवाह जैसे एक प्रत्यंचा है और ट्रेन एक छूटा हुआ तीर। तब के 
					विसर्जित दृश्य एक-एक कर उतराने लगे, प्रतिभा के भीतर एक 
					नही-सी बह चली थी। वही पुल, वही घाट, वही सीढ़ियाँ, वही 
					मणिकर्णिकाएँ, वही जलती चिताएँ। एक चिता उसके भीतर भी जल रही 
					थी...प्रतिभा को आज भी वह दिन याद हे जब रणवीर ने उसे बताया, ’’आज 
					मैंने उपने घरवालों को सूचित कर दिया कि मैं तुमसे शादी कर रहा 
					हूँ।’’ प्रतिभा की सारी इंद्रियाँ जैसे कान और आँख में 
					संकेंद्रित हो गई थीं, ’’क्या कहा उन्होंने ?’’
 ’’वही, जिसकी उम्मीद थी,’’ रणवीर ने सपाट-सा उत्तर दिया। ’’फिर 
					भी...? यह जानना मेरे लिए बहुत जरूरी है। सचसच बताओ, कुछ भी 
					छुपाना नहीं, तुम्हें...मेरी कसम,’’ प्रतिभा ने रणवीर का हाथ 
					पकड़ते हुए कहा था।
					...आगे-
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      मुक्ता की पुराण कथागंगा का विवाह
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      डॉ. सुरेश अवस्थी की कलम सेजी हाँ मैं गंगा बोल रही 
		हूँ
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					शंभुनाथ शुक्ल का यात्रा प्रसंगगंगोत्री की ओर
 
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      पुनर्पाठ में डॉ. रामप्रकाश सक्सेना का संस्मरण- पुण्य का काम
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