अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

पुरालेख तिथि-अनुसार पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक लेखकों से
तुक कोश // शब्दकोश // पता-


 २३. ३. २०१५

इस सप्ताह-

1
अनुभूति में
-1शशि पुरवार, लोकेश नदीश, किशोर दिवसे, शेषनाथ श्रीवास्तव और संजीव कुमार पाठक की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक शुचि लेकर आई हैं पेय की विशेष शृंखला में- फलों के रस का - इंद्रधनुष

बागबानी में- आसान सुझाव जो बागबानी को रोचक बनाने में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं- ८- पानी की आवश्यकता

जीवन शैली में- कुछ आसान सुझाव जो व्यस्त जीवन में, जल्दी वजन घटाने के लिये सहायक हो सकते हैं- ११- नमकीन इकट्ठा न करें

सुंदर घर- घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- ७- बड़े बूटों से घबराना कैसा

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- आज के दिन (२३ मार्च को) राम मनोहर लोहिया का जन्मे थे। इसी दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु शहीद हुए थे। ... विस्तार से

नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह प्रस्तुत है- पारसनाथ गोवर्धन की कलम से मधुकर अष्ठाना के नवगीत संग्रह- कुछ तो कीजिये का परिचय।

वर्ग पहेली- २२९
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- होली के अवसर पर

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
संजीव दत्त शर्मा की कहानी- नानी कितनी खुश होतीं

आखिरकार नानी चल बसीं। कंधा देने वाले चार लोग थे और साथ में छह-सात लोग और। कुल मिलाकर एक दर्जन से कम। वो इसलिए कि नानी कोई बड़ी हस्ती तो थीं नहीं। नानी जैसे लोग बगैर हल्ले-गुल्ले के निकल जाते हैं। अखबार में न तो उठावने का विज्ञापन छपाने की जरूरत होती है, न ही उनकी फोटो के साथ क्रिया का विज्ञापन छपाने की। लेकिन नानी की मौत पर कुछ लिखना इसलिए जरूरी लग रहा है कि एक साधारण घरेलू औरत होने के बावजूद नानी कई मामलों में बड़ी असाधारण थीं। नानी ने भरपूर जिंदगी पाई। नब्बे बरस की उम्र कोई कम तो नहीं होती और एक लंबी जिंदगी में जो कुछ अच्छा-बुरा कोई देख सकता है वो नानी ने भी देखा। नानी पैदा हुई थी लाहौर के नजदीक एक गाँव में, खानदानी पटवारियों के परिवार में। परिवार पटवारियों का था इसलिए घर में पैसा भी था, जमीन भी थी और घोड़े भी थे। नानी को घोड़े की सवारी बखूबी आती थी। जब नानी की शादी हुई तब नाना खूबसूरत जवान थे। सवा छह फुट से ऊपर निकलता कद। गोरा रंग और... आगे-
*

ज्योतिर्मयी पंत की
लघुकथा- प्रायश्चित
*

डॉ. अशोक उदयवाल की कलम से
जिमिंकंद स्वस्थ लोगों की पसंद 

*

रामलाल शर्मा का आलेख
वाल्मीकि रामायण में शकुन चर्चा
*

पुनर्पाठ में जानें
दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में बसी रामकथा

पिछले सप्ताह-

दिनेश का व्यंग्य
चमचा चिंतन
*

डॉ. दीपक आचार्य का आलेख
प्रकृति का उपहार बहूपयोगी लक्ष्मी तरु
*

यमुना दत्त वैष्णव ‘अशोक’ से जानें
शिशुनाग शशांक: इतिहास के दर्पण में 

*

पुनर्पाठ में निर्मल वर्मा की
डायरी के अंश- हवा में वसंत

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
सुदर्शन वशिष्ठ की कहानी- साहिब है रंगरेज

किस्सा उस समय का है जब शहर ने अँगड़ाई नहीं ली थी। बस अपने में सकुचाया और सिमटा हुआ रहता था। ठण्डी सड़कों में जगह जगह झरने बहते, जहाँ स्कूली बच्चे और राहगीर अंजुली भर भर पानी पीते। मुख्य बाजार में बहुत कम आदमी नजर आते। गर्मियों में गिने चुने लोग मैदानों से आते जिन्हें सैलानी नहीं कहा जाता था। कुछ मेमें छाता लिए रिक्शे पर बैठी नजर आतीं। इन रिक्शों को आदमी दौड़ते हुए चलाते थे। सर्दियों में तो वीराना छा जाता। माल रोड़ पर कोई भलामानुष नजर नहीं आता। मॉल रोड पर तो बीच से सड़क साफ कर रास्ता बना दिया जाता, लोअर बाजार में दुकानें बर्फ से अटी रहतीं। स्कूल कॉलेज बंद। वैसे भी ले दे कर लड़कियों का एक सरकारी स्कूल, लड़कों का डी.ए.वी. स्कूल और एक प्राईवेट कॉलेज था। दो चार कांवेंट स्कूल थे, जो संभ्रांत परिवारों की तरह अपने में ही रहते। इन में ऐसे बच्चे रहते जिनके माता पिता के पास उन के लिए समय नहीं था। सर्दियों की छुट्टियों में होस्टल भी ख़ाली हो जाते। आगे-

आज सिरहाने उपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग घर–परिवार दो पल नाटक
परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वाद और स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसररेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

Loading