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 १३. ७. २०१५

इस सप्ताह-

अनुभूति में-1योगेन्द्रनाथ शर्मा अरुण, ओमप्रकाश तिवारी, तुलसी पिल्लै, रामदर्श मिश्र तथा सतीशचंद्र उपाध्याय की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक शुचि लेकर आई हैं शर्बतों की शृंखला में- फालसे का शर्बत

बागबानी में- आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं- २३- निराई गुड़ाई

कला और कलाकार- निशांत द्वारा भारतीय चित्रकारों से परिचय के क्रम में बी. प्रभा की कला और जीवन से परिचय।

सुंदर घर- घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- २३- पीले और भूरे रंग का संयोजन

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन- (१३ जुलाई को)  केसरबाई केरकर, प्रकाश मेहरा, सुनीता जैन, नीलम सिंह, सोनल सहगल... विस्तार से

नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है- संजीव सलिल द्वारा डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' के नवगीत संग्रह- अंधा हुआ समय का दर्पन का परिचय।

वर्ग पहेली- २४५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
महेंद्र भीष्म की कहानी मेरी कहानी

विमान ने काहिरा एयर-पोर्ट से उड़ान भरी। कुछ समय बाद माइक्रोफोन पर विमान परिचारिका का मोहक स्वर गूँजा, "कृपया आप लोग अपनी कमर से सीट बेल्ट खोल लें।" यह एयर इंडिया का विमान था, जिसमें मैं अपनी मॉम के साथ मंट्रियाल से सवार हुआ था। मैं अपने बिजनेस के सिलसिले में अक्सर अमेरिका से यूरोप आता-जाता रहा हूँ। मेरी सदैव यह इच्छा रहती है कि मैं एयरइंडिया के विमान से ही यात्रा करूँ। पिछली अधिकांश यात्राएँ जो मैंने एयर इंडिया के विमानों से सम्पन्न की थीं, उन सभी उड़ानों पर मुझे जितनी खुशी हुआ करती थी, उनकी सम्मिलित खुशी से भी अधिक मुझे इस बार भारत के लिए की जा रही अपनी यात्रा से हो रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि मेरा जन्म-स्थान भारत है और मेरी रगों में गौरवशाली देश भारतवर्ष का खून प्रवाहित हो रहा है, परन्तु आज मैं एक अमेरिकी नागरिक की हैसियत से भारत जा रहा हूँ। मंट्रियाल नगर के सम्भ्रांत उद्योगपति स्वर्गीय चार्ल्स का दत्तक पुत्र विल्सन चार्ल्स हूँ मैं। ‘विल्सन’ नाम मेरे अमेरिकी माता-पिता ने मुझे दिया था। आगे-
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राजेन्द्र परदेसी की
लघुकथा - जंगलीपन
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डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा का आलेख
हाइकु में वर्षा वर्णन

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प्रेमशंकर रघुवंशी का रचना प्रसंग
नवगीत और उसका उद्भव काल
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पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
सागर के इस पार से उस पार से का तीसरा भाग

पिछले सप्ताह-

दीपक दुबे का व्यंग्य
बाबा जी का ठुल्लू
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डॉ. कैलाश कौशल का रचना प्रसंग
ललित-निबंध- परंपरा-एवं-आधुनिक-चेतना-का-समन्वय

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प्रह्लाद रामशरण से
रणजीत पांचाल का साक्षात्कार
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पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
सागर के इस पार से उस पार से का दूसरा भाग

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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
सुदर्शन वशिष्ठ की कहानी जंगल का संगीत

"पेड़ कुदरत का करिश्मा है। अजूबा है पहाड़ पर पेड़। ऊँचा, सीधा, समाधि में लीन योगी सा। जो जितना ऊँचा है, उतना ही शांत है। जितना पुष्ट उतना ही अहिंसक। देखो, टेढ़ी पहाड़ी पर सीधा खड़ा रहता है, झण्डे सा। हरी वर्दी पहने पेड़ लगता है पहरेदार, कभी लगता है झबरीला भालू, कभी तिलस्मी एय्यार। कभी लगता है पेड़ रामायण की चौपायी, जो हनुमान ने गायी। कभी ऊपर चाँद से बातें करता, हवा से हाथ मिलाता...सच्च बच्चो! एक अजूबा है पहाड़ पर पेड़...।" बाबा कहा करते।
हरे भरे जंगल में शाम की धूप की लाली चमक रही होती। सभी पेड़, पहाड़ एक ओर से सुनहरे हो कर चमक रहे होते। इस समय पक्षी पूरे जोर से शोर मचाते। इस कलरव में हवा के साथ जंगल का संगीत बज उठता। बाबा की बातें सुनते हुए बच्चों के बीच बैठी वसुंधरा की आँखें अनायास जंगल की ओर घूम जातीं। जंगल उसे जादूगर सा लगता जिसकी पोटली में न जाने क्या क्या छिपा है। आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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