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१. १२. २०१७

इस माह-

1
अनुभूति में- 
अनेक रचनाकारों द्वारा विविध विधाओं में नव वर्ष को समर्पित भावभीनी रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस माह गणतंत्र दिवस के अवसर पर हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- तिरंगे फलों का प्याला

स्वास्थ्य में-
मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के उपाय-
१६- प्याज खाएँ

बागबानी- वनस्पति एवं मनुष्य दोनो का गहरा संबंध है फिर ज्योतिष में ये दोनो अलग कैसे हो सकते हैं। जानें- १- सूर्य और आक (मदार) के विषय में

भारत के विचित्र गाँव- जैसे विश्व में अन्यत्र नहीं हैं- - भद्रपुर - जहाँ के लोग अपने विचित्र नामों के कारण प्रसिद्ध हैं।

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (जनवरी) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया?...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- शिवानंद सहयोगी की कलम से रमेश गौतम के नवगीत संग्रह- ''इस हवा को क्या हुआ'' का परिचय।

वर्ग पहेली- २९५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
दीपक शर्मा की कहानी- बिगुल

“तुम्हें घोर अभ्यास करना होगा”, बाबा ने कहा, “वह कोई स्कूली बच्चों का कार्यक्रम नहीं जो तुम्हारी फप्फुप फप्फुप को वे संगीत मान लेंगे...”
जनवरी के उन दिनों बाबा का इलाज चल रहा था और गणतंत्र दिवस की पूर्व-संध्या पर आयोजित किए जा रहे पुलिस समारोह के अंतर्गत मेरे बिगुल-वादन को सम्मिलित किया गया था बाबा के अनुमोदन पर। “मैं सब कर लूँगी, आप चिंता न करें...”मैंने कहा। उनके सामने बिगुल बजाना मुझे अब अच्छा नहीं लगता।
वे खूब टोकते भी और नए सिरे से अपने अनुदेश दोहराते भी- “बिगुल वाली बाँह को छाती से दूर रखो, तभी तुम्हारे फेफड़े तुम्हारे मुँह में बराबर हवा पहुँचा सकेंगे...”
“अपने होंठ बिगुल की सीध में रखो और उन्हें आपस में भिनकने मत दो...” इत्यादि...इत्यादि।
“कैसे न करूँ चिंता?” बाबा खीझ गए, “जाओ और बिगुल इधर मेरे पास लेकर आओ। देखूँ, उसमें, लुबरिकेन्ट की ज़रुरत तो नहीं...”
बिगुल का ट्युनिंग स्लाइड चिकनाने के लिए बाबा उसे अकसर लुबरिकेन्ट से ओंगाया करते।...आगे-
*

अज्ञात की लघुकथा-
गणतंत्र दिवस की परेड
*

शशि पाधा की कलम से-
नतमस्तक हुआ हिमालय (कैप्टेन तुषार महाजन)
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भावना सक्सैना के साथ चलें
सूरीनाम जहाँ प्रेम का स्वर है
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डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली का
ललित निबंध - भारत बोध

पिछले अंकों से-

लेख-

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आज़ादी में पत्रकारिता का योगदान

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एक और जलियाँवाला- मुंशीगंज गोलीकांड

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क्या आज भी प्रासंगिक है संविधान

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कला में आज़ादी के सपने

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कालापानी की सेल्युलर जेल

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गाँधी भवन हरदोई  

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झंडा ऊँचा रहे हमारा

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डाकटिकटों ने बखानी तिरंगे की कहानी

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डाकटिकटों में अशोक स्तंभ

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डाकटिकटों में राष्ट्र चिह्न

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नवगीत और देश

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नार्वे में भारतीय तिरंगा

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पार्षद और झंडा गीत

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बुंदेल केसरी छत्रसाल

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भारत के बारह राष्ट्रपति

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राष्ट्रध्वज के निर्माता पिंगली वैंकैया

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राष्ट्र चेतना और आल्हा का व्यक्तित्व

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वंदे मातरम की रचना

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वह बरगद

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स्वतंत्रता की साधक सुभद्राकुमारी चौहान

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स्वतंत्रता के पुजारी- महाराणा प्रताप

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स्वतंत्रता सेनानी मदारी पासी

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सलामी लाल क़िले से ही क्यों

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हमारा संसद भवन

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हिंदी फ़िल्मों में राष्ट्रीय भावना

संस्मरण में-

आज सिरहाने उपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग घर–परिवार दो पल नाटक
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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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