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लेखकों से
 

इस माह-

अनुभूति में-
शिशिर विशेषांक की सर्दी में नहाई विविध विधाओं में विभिन्न रचनाकारों की अनेक रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- नये साल की तैयारियाँ शुरू हो गयी हैं। इस अवसर पर हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- ब्लैक फारेस्ट केक

स्वास्थ्य में- २० आसान सुझाव जो जल्दी वजन घटाने में सहायक हो सकते हैं- २०- धैर्य, निरंतरता और विश्वास।

बागबानी- तीन आसान बातें जो बागबानी को सफल, स्वस्थ और रोचक बनाने की दिशा में उपयोगी हो सकते हैं-  कुछ उपयोगी सुझाव- १२

कलम गही नहिं हाथ में- अभिव्यक्ति के उन्नीसवें जन्मदिन का अवसर और नवांकुर पुरस्कारों की घोषणा

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (दिसंबर) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- शुभम श्रीवास्तव ओम की कलम से योगेन्द्र प्रताप मौर्य के नवगीत संग्रह- चुप्पियों को तोड़ते हैं का परिचय। 

वर्ग पहेली- ३२०
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति के अंतर्गत- शिशिर विशेषांक में

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
सुदर्शन वशिष्ठ की कहानी- साहिब है रंगरेज

किस्सा उस समय का है जब शहर ने अँगड़ाई नहीं ली थी। बस अपने में सकुचाया और सिमटा हुआ रहता था। ठण्डी सड़कों में जगह जगह झरने बहते, जहाँ स्कूली बच्चे और राहगीर अंजुली भर भर पानी पीते। मुख्य बाजार में बहुत कम आदमी नजर आते। गर्मियों में गिने चुने लोग मैदानों से आते जिन्हें सैलानी नहीं कहा जाता था। कुछ मेमें छाता लिए रिक्शे पर बैठी नजर आतीं। इन रिक्शों को आदमी दौड़ते हुए चलाते थे। सर्दियों में तो वीराना छा जाता। माल रोड़ पर कोई भलामानुष नजर नहीं आता। मॉल रोड पर तो बीच से सड़क साफ कर रास्ता बना दिया जाता, लोअर बाजार में दुकानें बर्फ से अटी रहतीं। स्कूल कॉलेज बंद। वैसे भी ले दे कर लड़कियों का एक सरकारी स्कूल, लड़कों का डी.ए.वी. स्कूल और एक प्राईवेट कॉलेज था। दो चार कांवेंट स्कूल थे, जो संभ्रांत परिवारों की तरह अपने में ही रहते। इन में ऐसे बच्चे रहते जिनके माता पिता के पास उन के लिए समय नहीं था। सर्दियों की छुट्टियों में होस्टल भी ख़ाली हो जाते। आगे-
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यश मालवीय का व्यंग्य
लेट गाड़ी और मुरझाता हार
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डॉ. भावना कुँअर के साथ-
गपशप- सर्दियों में सर्दी
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डॉ. अशोक उदयवाल से जानें
सर्दी की दुआ बथुआ
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डॉ गुरुदयाल प्रदीप के साथ विज्ञान वार्ता-
गरमा-गरम चाय की प्याली: आप के स्वास्थ्य के नाम

पुराने अंकों-से---

अश्विन गाँधी की कलम से-
दो पल- ठंडे से गरम, गरम से ठंडा

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माधव नागदा की लघुकथा
अभिलाषा

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पर्यटन में एस आर हरनोट का आलेख
हिमाचल में शीतकालीन पर्यटन और बर्फ़ के खेल  
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फुलवारी में पूर्णिमा वर्मन का
बालगीत- सर्दी में अच्छी लगती है

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कथा महोत्सव में पुरस्कृत- भारत से
ईश्वरसिंह चौहान की कहानी
कहानी रति का भूत

अमावस की काली रात ने गाँव को धर दबोचा था। चौधरियों के मोहल्ले में से बल्बों की रोशनी दूर से गाँव का आभास करवाती थी। आठ बजते-बजते तो सर्दी की रात जैसे मधरात की तरह गहरा जाती है। कहीं कोई कुत्ता भौंकता तो कभी कोई गाय रंभाती पर आदमी तो जैसे सिमट कर अपनी गुदड़ी का राजा हो गया हो। कभी-कभी बूढ़े जनों की खराशकी आवाज़ आती थी। जसोदा ने ढीबरी जला दी। लखिया अभी तक घर नहीं आया था। वैसे भी उसको कहाँ पड़ी थी जसोदा की... जब देखो तब चौधरी हरी राम की बैठक में जमा रहता था। कई दिनों से अफीम भी लेने लगा है। लखिया की ये बात जसोदा को पसंद नहीं। इसी बात पर दोनों के बीच तू-तू मैं-मैं होती रहती हैं। दूर खेतों से सियार की डरावनी आवाज़ सुनाई देने लगी तभी मोर चीखे जसोदा का कलेजा दहल गया। रोटी को तवे से उतारते हुए आह भरी,
''हे राम! सब की रक्षा करना कौन जाने क्यों आज की शाम उसे मनहूस लग रही थी।
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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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