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१. २. २०१०

सप्ताह का विचार- जब तक हम स्वयं निरपराध न हों तब तक दूसरों पर कोई आक्षेप सफलतापूर्वक नहीं कर सकते। -सरदार पटेल

अनुभूति में-
डॉ. आर. पी. श्रीवास्तव, रचना श्रीवास्तव, कुमार आशीष और कश्मीर सिंह के साथ १६ नवगीत कार्यशाला-७ से

कलम गहौं नहिं हाथ- जीवन की आपाधापी में वसंत कब आता है और कब चला जाता है उसका पता ही नहीं चलता। यों भी विदेश में...आगे पढ़ें

सामयिकी में- निर्दोष भारतीयों पर होने वाले हमलों और ऑस्ट्रेलियाई सरकार की उदासीनता पर अशोक बंसल का आलेख- आस्ट्रेलिया में हमले : दोषी कौन

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव - पानी में शहद मिलाकर प्रतिदिन बिना मुँह धोए पीने से पेट साफ होता है और चेहरे पर निखार आता है।

पुनर्पाठ में- १ फरवरी २००१ को पर्व परिचय के अंतर्गत प्रकाशित टीम अभिव्यक्ति का आलेख- फरवरी माह के पर्व।

क्या आप जानते हैं? भारतीय रेल, कर्मचारियों की संख्या के आधार पर विश्व की सबसे बड़ी नियोक्ता है। इसमें दस लाख से भी अधिक कर्मचारी हैं।

शुक्रवार चौपाल- इस बार चौपाल के कार्यक्रम में विशेष आयोजन था डॉ. धर्मवीर भारती के नाटक अंधा युग के पाठ अभिनय का... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-७ की घोषणा हो गई है और इस कार्यशाला का विषय है- वसंत। सभी पाठकों और रचनाकारों का स्वागत है।


हास परिहास

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में भारत से
डॉ. श्यामसखा 'श्याम' की कहानी आखिरी बयान

मैंने जिन्दगी भर किसी से कुछ नहीं कहा, आज कह रहा हूँ, अगर आप सुन लें तो मेहरबानी होगी। वैसे भी मैं आज नौकरी से रिटायर हुआ हूँ, पूरे साठ साल का होकर। साठ साल तक जो आदमी पहले माँ-बाप की, फिर बीवी-बच्चों, सहकर्मियों की सुनता आ रहा हो, उसे इतना हक तो है कि वह आज कुछ कह सके। फिर आपने खुद ही मुझे दो शब्द कहने के लिए, मेरे विदाई समारोह के मंच पर बुलाया है। मेरे खयाल से जिन्दगी सचमुच एक दुर्घटना है और किसी के लिए हो ना हो कम से कम मेरे लिए तो जरूर है। दोस्तों! हालाँकि मैं नहीं जानता, आप में से कितने मेरे दोस्त हैं शायद कोई भी न हो। लेकिन आज सबने अपने भाषण में मुझे अपना दोस्त और एक अच्छा आदमी बतलाया है, जो शायद वक्त की नजाकत थी, वक्त का तकाजा था, क्योंकि हम हर दिवंगत को अच्छा ही कहते हैं यही रिवाज है और मैं चंद मिनट पहले इस दफ्तर, इस विभाग से दिवंगत हो गया हूँ, कर दिया गया हूँ।  पूरी कहानी  पढ़ें...
*

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' का व्यंग्य-
लूट सके तो लूट
*

डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव का दृष्टिकोण
हिंदी के ये उत्सव ये सम्मेलन

*

विज्ञानवार्ता में डॉ. गुरुदयाल प्रदीप
का आलेख- हाय रे दर्द
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

पिछले सप्ताह-  गणतंत्र दिवस के अवसर पर

डॉ. योगेंद्रनाथ शुक्ल की लघुकथा
बदलते नायक
*

अक्षय कुमार का साहित्य चिंतन
निराला की कविता में राष्ट्र

*

डॉ. सत्यभूषण वंद्योपाध्याय का आलेख
सलामी लाल किले से ही क्यों?
*

आशीष सान्याल द्वारा परिचय
क्रांतिकारी कवि: नजरुल इसलाम का
*

समकालीन कहानियों में भारत से डॉ. महीप सिंह
की कहानी धुँधलका

उसे लगता है, उसके पास बहुत कुछ है। वह संसद की सदस्य है। इस नाते पूरी कोठी, टेलीफोन, रेल और हवाई यात्रा सहित उसके पास अगणित सुविधाएँ हैं। उसकी पार्टी आज सत्ता में नहीं है। पर इससे क्या होता है? वर्षों तक उसकी पार्टी सत्ता में रही है। अगले चुनाव के बाद वह फिर सत्ता में आ सकती है। उस समय उसके मंत्री बन जाने की पूरी संभावना है। आज उसे पार्टी के अध्यक्ष के बहुत निकट समझा जाता है। वह दो राज्यों में पार्टी के सभी कार्यकलापों की इंचार्ज है। वहाँ पर उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। पिछले दिनों इन दोनों राज्यों की विधान सभाओं के आम चुनाव हुए थे। उम्मीदवारों के चुनाव, टिकटों के बँटवारे और चुनाव-प्रचार के लिए साधनों की सारी व्यवस्था उसकी आँखों के सामने से गुजरती थी। लाखों रुपए उसकी उँगलियों का स्पर्श लेते हुए निकल जाते थे। पूरी कहानी  पढ़ें...

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