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२४. १०. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
दीपावली के भक्तिभाव और उत्सवधर्मिता से भरपूर विविध विधाओं में अनेक रचनाकारों की ढेर सी नई रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- उत्सव का मौसम आ गया है। इसे स्वाद और सुगंध से भरने के लिये पकवानों की शृंखला में इस सप्ताह प्रस्तुत है-- नारियल बर्फी

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का ४३वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- जोड़ों के दर्द के लिये बथुए का रस

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १६ अक्तूबर से ३१ अक्तूबर २०११ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- गूगल प्लस फ़ेसबुक की तरह का एक सामाजिक जालस्थल है जिसे गूगल ने बनाया है। इसका प्रमुख आकर्षण यह है कि ...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-१८, के गीतों का प्रकाशन इस सप्ताह पूरा हो जाएगा। अगली कार्यशाला की घोषणी दीपावली के बाद होगी। 

शुक्रवार चौपाल- इस शुक्रवार को चौपाल में बहुत महीनों बाद बहुत से लोग जुटे। बहुत से लोगों को देखना अच्छा लगता है। लेकिन... 

वर्ग पहेली-०५२
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य व संस्कृति में- दीपावली के अवसर पर

1
समकालीन कहानियों में भारत से
सुमति सक्सेना लाल की कहानी विस्थापित

रात जब अपना अंचरा ओढ़ा देती है धरती को तो नैका धान की पहली गमक से सगरी घर-दुआर एकाएक गमगमा जाता है। आज महीनों बाद बदरी मैया को लगता है कि रात लोरी गा रही है और एक गमक लुटा रही है। जबकि रोज ऐसा लगता था कि रात सिसक-सिसककर विलाप कर रही है और मुर्दा जलाने जैसी बदबू फैला रही है। बगल की खाट में बबनी और उसके बेटे सोनू को बेखबर सोया देख मैया का हर गम गलत हो जाता है। आज शाम ही बबनी आयी है। मैया अपनी खाट छोड़कर जगह न रहने पर भी बबनी की बगल में तंगी से लेट जाती है। उसका मुँह अपनी ओर करके उसे छाती से चिपटा लेती है, जैसे वह कोई दूधमुँही बच्ची हो। फिर उसके बदन को अपने हाथ से सहलाने लगती है। उसे महसूस होता है कि बबनी की देह बहुत खुरदरी हो गयी है। लगता है बेचारी को तेल भी मयस्सर नहीं होता। वह उठकर मलिया में तेल लाती है और उसके गोड़ आदि में लगाने लगती है। बबनी की नींद उचट जाती है। वह आँखें मल-मलकर भौंचक देखती है कि एक साठ बरस की बूढ़ी मैया विस्तार से पढ़ें...

शिल्पा अग्रवाल का व्यंग्य
श्री गणेश के साक्षात दर्शन
*

आज सिरहाने इंदुजा अवस्थी का
शोधग्रंथ- रामलीला : परंपरा और शैलियाँ

*

डॉ. पांडुरंग राव का
निबंध- रामायण में स्‍वयंप्रभा
*

पुनर्पाठ में राजेन्द्र तिवारी का
आलेख- सिरमौर की बूढ़ी दिवाली

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पिछले सप्ताह-

1
सुरेश यादव की लघुकथा
करवाचौथ
*

शशिपाधा का संस्मरण
विजय स्मारिका

*

रंगमंच में सूर्यकांत जोशी का आलेख
'त्रियात्र'
- गोवा का अनोखा लोकनाट्य
*

पुनर्पाठ में रति सक्सेना से सुनें
आस की कथा प्यास की व्यथा

*

समकालीन कहानियों में भारत से
जयनंदन की कहानी बदरीमैया

रात जब अपना अंचरा ओढ़ा देती है धरती को तो नैका धान की पहली गमक से सगरी घर-दुआर एकाएक गमगमा जाता है। आज महीनों बाद बदरी मैया को लगता है कि रात लोरी गा रही है और एक गमक लुटा रही है। जबकि रोज ऐसा लगता था कि रात सिसक-सिसककर विलाप कर रही है और मुर्दा जलाने जैसी बदबू फैला रही है। बगल की खाट में बबनी और उसके बेटे सोनू को बेखबर सोया देख मैया का हर गम गलत हो जाता है। आज शाम ही बबनी आयी है। मैया अपनी खाट छोड़कर जगह न रहने पर भी बबनी की बगल में तंगी से लेट जाती है। उसका मुँह अपनी ओर करके उसे छाती से चिपटा लेती है, जैसे वह कोई दूधमुँही बच्ची हो। फिर उसके बदन को अपने हाथ से सहलाने लगती है। उसे महसूस होता है कि बबनी की देह बहुत खुरदरी हो गयी है। लगता है बेचारी को तेल भी मयस्सर नहीं होता।  विस्तार से पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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