अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

पुरालेख तिथि-अनुसार। पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक लेखकों से
तुक कोश  //  शब्दकोश //
पता-


४. ३. २१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में- राजा अवस्थी, रामबाबू रस्तोगी, राजेश जोशी, गाफिल स्वामी और पुष्पिता की रचनाओं के साथ खबरदार कविता।

- घर परिवार में

रसोईघर में- देश-विदेश के व्यंजनों की शृंखला में इस बार शुचि प्रस्तुत कर रही हैं इतालवी व्यंजन भारतीय स्वाद में- पास्ता सलाद।

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- संयोजन कुर्सी और टोकरी का

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- लैपटॉप

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला- २६ का विषय है रंग। रचना भेजने की अंतिम तिथि है १५ मार्च। विस्तृत जानकारी के लिये यहाँ देखें।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है पुराने अंकों से १६ फरवरी २००७ को प्रकाशित लोकबाबू की कहानी शिवः माम मर्षयतु

वर्ग पहेली-१२३
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

अपनी प्रतिक्रिया लिखें / पढ़ें1

साहित्य एवं संस्कृति में- शिवरात्रि अवसर पर

समकालीन कहानियों में भारत से
आभा सक्सेना की कहानी- शिवरात्रि का महूरत

ट्रेन में चढ़ने के बाद सुगन्धा ने जैसे ही सामान रखा, कि अचानक ट्रेन में ‘‘बम बम भोले’’ का नाद शुरू हो गया। कंधे पर काँवर लटकाये कई सारे यात्री डिब्बे में चढ़ गए। ट्रेन ने अपनी गति पकड़ ली थी। काँवरिये देहरादून से हरिद्वार के लिये ट्रेन में चढ़े थे। सुगन्धा ने ही स्थिति को समझते हुए दो काँवरिया धारकों को अपनी सीट पर जगह दे दी। बात उसने ही आगे बढ़ायी ‘‘हरिद्वार जा रहे हो क्या भैया ?’’
"हाँ माँजी... कल शिवरात्रि है न? इसी लिये नील कंठ महादेव पर जल चढ़ाना है मन्नत माँगी थी हमने उसी की आस्था में जल चढाने के लिये इसी ट्रेन में चढ़ गए हैं माँ जी आपको भी तकलीफ हो रही है न हमारे कारण?"
‘‘नहीं... ऐसा बिलकुल भी नहीं है आओ, तुम दोनों ठीक से बैठ जाओ।’’ और वह दोनो अपने अपने काँवर ऊपर की लगेज़ शैल्फ पर रख कर सुगन्धा के ही पास सीट पर बैठ गए। खिड़की से ठंडी हवा के झोंके बार बार सुगन्धा की यादों को सहला रहे थे... आगे-

*

मुक्ता की पुराण-कथा
पार्वती का स्वर्ण महल
*

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध का निबंध
भगवान भूतनाथ और भारत
*

बुद्धिनाथ मिश्र का यात्रा संस्मरण
चाँदनी रात में मानसरोवर

*

पुनर्पाठ में कुबेरनाथ राय का
ललित निबंध कुब्जासुंदरी

अभिव्यक्ति समूह की निःशुल्क सदस्यता लें।1

पिछले सप्ताह-


संजीव निगम का व्यंग्य
मैं तेरा मेहमान
*

राजीव रंजन प्रसाद का यात्रा वृत्तांत
नालंदा, बख्तियार खिलजी और हमारी शिक्षा के दायरे
*

त्रिलोक सिंह ठकुरेला द्वारा संपादित
कुंडलिया छंद के सात हस्ताक्षर से परिचय

*

पुनर्पाठ में अमृता प्रीतम के संस्मरण
छोटा सच बड़ा सच

*

समकालीन कहानियों में भारत से
अलका सिन्हा की कहानी- एका

हमें साथ रहते छह महीने हो चुके थे और हम एक - दूसरे का नाम तक नहीं जानते थे। उन्होंने भी इस बीच मेरे बारे में कुछ नहीं जानना चाहा और मैंने तो वादा ही कर रखा था। इसी शर्त पर तो हम साथ रह रहे थे। फिर भी, हम एक - दूसरे के बारे में काफी कुछ जानने लगे थे, मसलन वे जान चुके थे कि मुझे बड़बड़ाते रहने की आदत है, मुझे पता लग गया था कि जब वे मेज बजाते तब वे बेचैन हुआ करते थे। ऐसी ही कुछ बातें थीं, एक-दूसरे की पसंद-नापसंद की। फिर भी, नाम से बेहतर रिश्ते होते हैं और हमारे बीच पहली मुलाकात से ही एक रिश्ता बन गया था। हमारी मुलाकात भी बहुत अजीब-से हालात में हुई थी। पूरी तरह टूट और बिखर कर, मैं इस गाँवनुमा शहर के पार्क के एकांत कोने में सिमटी पड़ी थी। शाम पर रात की रंगत चढ़ने लगी थी और धीरे-धीरे एक सन्नाटा पसरता जा रहा था। ... आगे-

अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ1

आज सिरहानेउपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग घर–परिवार दो पल नाटक परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसरहमारी पुस्तकेंरेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : कल्पना रामानी
 

Loading
   

आँकड़े विस्तार में

Review www.abhivyakti-hindi.org on alexa.com