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२९. ७. २०१३

इस सप्ताह-


अनुभूति में-
संध्या सिंह, सुल्तान अहमद, बद्रीनारायण, संदीप सृजन और विजय ठाकुर की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत दक्षिण भारत के व्यंजनों की विशेष शृंखला में इस बार प्रस्तुत है-- साँभर

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- पुराने लैंपों का पुनर्जन्म

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- ग्रामोफोन

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- चंपा के फूल पर आधारित नवगीतों का प्रकाशन अनुभूति के चंपा विशेषांक के बाद अब पाठशाला में- कुछ नए गीतों के साथ।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- इस सप्ताह प्रस्तुत है ९ मई २००६ को प्रकाशित गुरमीत बेदी की कहानी- बुधवार का दिन

वर्ग पहेली-१४४
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-  प्रेमचंद जयंती के अवसर पर

वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में प्रेमचंद की कहानी शतरंज के खिलाड़ी

वाजिदअली शाह का समय था। लखनऊ विलासिता के रंग में डूबा हुआ था। छोटे-बड़े, गरीब-अमीर सभी विलासिता में डूबे हुए थे। कोई नृत्य और गान की मजलिस सजाता था, तो कोई अफीम की पीनक ही में मजे लेता था। जीवन के प्रत्येक विभाग में आमोद-प्रमोद का प्राधान्य था। शासन-विभाग में, साहित्य-क्षेत्र में, सामाजिक अवस्था में, कला-कौशल में, उद्योग-धंधों में, आहार-व्यवहार में सर्वत्र विलासिता व्याप्त हो रही थी। राजकर्मचारी विषय-वासना में, कविगण प्रेम और विरह के वर्णन में, कारीगर कलाबत्तू और चिकन बनाने में, व्यवसायी सुरमे, इत्र, मिस्सी और उबटन का रोजगार करने में लिप्त थे। सभी की आँखों में विलासिता का मद छाया हुआ था। संसार में क्या हो रहा है, इसकी किसी को खबर न थी। बटेर लड़ रहे हैं। तीतरों की लड़ाई के लिए पाली बदी जा रही है। कहीं चौसर बिछी हुई है; पौ-बारह का शोर मचा हुआ है। कही शतरंज का घोर संग्राम छिड़ा हुआ है। राजा से लेकर रंक तक इसी धुन में मस्त थे। शतरंज, ताश, गंजीफ़ा खेलने से बुद्धि तीव्र होती है, विचार-शक्ति का विकास होता है, पेचीदा मसलों को सुलझाने की आदत पड़ती है। ये दलीलें जोरों के साथ पेश की जाती थीं ...आगे-
*

प्रेमचंद की लघुकथा
बाबा जी का भोग
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डॉ. गौतम सचदेव की कलम से
मजदूर फिल्म की नायिका बिब्बो
*

कृष्ण कुमार राय का आलेख
प्रेमचंद की लुप्त कहानियाँ
*

पुनर्पाठ में- डॉ. जगदीश व्योम से जानें
प्रेमचंद मुंशी कैसे बने

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पिछले सप्ताह-


अनुरूप मिश्र का व्यंग्य
कौए क्यों बढ़ रहे हैं
*

दीपक नौंगाईं अकेला के साथ देखें
सीमांत गाँव माणा की दुनिया
*

पंकज परिमल का ललित निबंध
मछली मारने का पुरुषार्थ
*

पुनर्पाठ में- आशीष गर्ग से जानकारी
कैसे काम करता है स्मोक डिटेक्टर
*

समकालीन कहानियों में भारत से
सुमति सक्सेना लाल की कहानी कौशल्या दी

सुबह सुबह फोन मिला था ’‘सुरेन्द्र बोल रहा हूँ दीदी।”
सुरेन्द्र ..मैं कुछ समझ नहीं पाती कि यह किसका फोन है। तभी उधर से फिर आवाज़ आई थी।”
एक बुरी खबर है, कौशल्या बुआ की डैथ हो गई।”
तब समझ आया था कि यह कौशल्या दी के क़ज़न का बेटा है, यहीं इण्डियन ओवर सीज बैंक में मैनेजर हैं ‘‘ अरे कब, कैसे... कहाँ थीं वे आजकल ?
’’आज ही आधी रात को। आजकल भोपाल में राजन भाई के पास थीं वे।”
’’तुम जा रहे हो भोपाल?’’
’’जी आज ही निकल रहा हूँ।”
मैं चुप रहती हूँ। समझ ही नहीं आता आगे क्या बोलूँ। कुछ देर लाईन पर रहकर सुरेन्द्र ने ‘‘अच्छा दीदी’’ कह कर फोन रख दिया था। फोन रखकर मैं काफी देर चुपचाप वहीं बैठी रहती हूँ। कौशल्या दीदी नहीं रहीं। उनके जाने से मातम मनाने जैसी कोई बात नहीं। न जाने कितनी बार मन में आता रहा था कि क्यों इतनी लंबी उम्र दे रहा है भगवान उनको। अस्सी साल की तो हो चुकीं। न जाने कितनी बार कितनी तरह से कहतीं कि ...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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