अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

पुरालेख तिथि-अनुसार पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक लेखकों से
तुक कोश // शब्दकोश //
पता-


२३. ६. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
पवन प्रताप सिंह पवन, अनिल जैन, स्वर्णलता ठन्ना, डॉ. शैलेष गुप्त धीर और निशांत कुमार की  रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- भुट्टों के मौसम में मक्के के स्वादिष्ट व्यंजनों के क्रम में- मकई का हलवा

गपशप के अंतर्गत- सब चाहते हैं कि हमारा घर सुंदर हो, कैसे बनाया जा सकता है अपने घर को सबसे सुंदर? आप भी जानें- सुंदर घर

जीवन शैली में- शाकाहार एक लोकप्रिय जीवन शैली है। फिर भी आश्चर्य करने वालों की कमी नहीं। १४ प्रश्न जो शकाहारी सदा झेलते हैं

सप्ताह का विचार में- चितवन से जो रुखाई प्रकट की जाती है, वह भी क्रोध से भरे हुए कटु वचनों से कम नहीं होती। - रामचंद्र शुक्ल

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं कि आज के दिन (२३ जून को) १९१४ में वैष्णव दार्शनिक भक्तिविनोद ठाकुर, १९२१ में अभिनेता रहमान, १९३४ में वीरभद्र सिंह...

लोकप्रिय उपन्यास (धारावाहिक) - के अंतर्गत प्रस्तुत है २००४ में प्रकाशित स्वदेश राणा के उपन्यास— 'कोठेवाली' का छठा और अंतिम भाग

वर्ग पहेली-१९०
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

अपनी प्रतिक्रिया लिखें / पढ़ें

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
राहुल यादव की-कहानी-- बिल्ला और शेरा

कहानी का शीर्षक पढ़ कर आपको ऐसा लग रहा होगा कि हो न हो ये सत्तर के दशक की किसी फिल्म के खलनायक हैं, लेकिन बिल्ला और शेरा किसी हिंदी फिल्म के खूँखार खलनायक नहीं बल्कि मेरे बचपन के वे दो मित्र हैं जिनके बिना मेरे बचपन की कहानी अधूरी है। गाँव में हमारे घर के पिछवाड़े में एक छोटा सा तालाब था। छोटा तालाब तो क्या उसे बड़ा गड्ढा ही समझ लीजिए। उसके पास में ही कनेर के फूल के साथ साथ ढेर सारे सरकंडे की झाड़ियाँ भी थीं। सरकंडा खोखले तने वाली एक झाड़ी थी जिसकी तलवार बना के मैंने और रमेश ने न जाने खेल खेल में कितने संग्राम लड़े हैं। ठंडी के दिनों में एक दिन शाम को यूँ ही हमारा युद्धाभ्यास का खेल जोर शोर से जारी था कि हमने तालाब के किनारे झाडियों में दो पिल्लों को देखा। दोनों कीचड में सने हुए थे और उन्हें देख कर लगता था कि पैदा हुए मुश्किल से बस एक या दो दिन हुए होंगे। बचपन में मुझे कुत्तों से बहुत डर लगता था इसलिए मैंने रमेश को मना किया कि उन्हें मत छू, हो सकता है कि इनकी माँ आस पास ही कहीं हो। ... आगे-
*

सुशील यादव का व्यंग्य
तेरे डॉगी को मुझ पे भौकने का नईं
*

अमिताभ सहाय से जानें
सिक्कों और नोटों की कहानी
*

डॉ. दया ललित श्रीवास्तव का आलेख
अग्नि- सभ्यता के विकास की महत्वपूर्ण कड़ी
*

पुनर्पाठ में- महावीर प्रसाद द्विवेदी का
ललित निबंध- महाकवि माघ का प्रभात वर्णन

अभिव्यक्ति समूह की निःशुल्क सदस्यता लें।

पिछले सप्ताह-  कनेर विशेषांक

प्रमोद यादव का व्यंग्य
कहानी सपनों की
*

डॉ राकेश कुमार प्रजापति की कलम से
सदाबहार कनेर की कहानी
*

पूर्णिमा वर्मन का ललित निबंध
चारदीवारी पर बाँह टिकाए खड़ा है कनेर
*

पुनर्पाठ में- अशोक श्री श्रीमाल का आलेख
शब्दकोश का जन्म
*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है मारीशस से
कुंती मुकर्जी-की-कहानी--गुलाबी कनेर का गुच्छा

‘’मही, इन कनेर के पेड़ों को लॉन से निकलवा देना। इसे रखने से बड़ा अपशकुन होता है।’’ डॉक्टर सोमदत्त त्रिपाठी आयुर्वेदाचार्य ने मही के घर में प्रवेश करते हुए कहा।
‘’जी गुरु जी।’’
मही अपने गुरु से बहस करना उचित नहीं समझती थी अन्यथा वह उन्हें बतलाती कि जिन फूलों को वे अक्सर भूत प्रेतों के आकर्षण का केंद्र मानते हैं वह उसके जीवन में कितना शुभ शकुन लाया है। मही को बचपन से सफ़ेद और लाल कनेर लुभाता आया है। उसकी पड़ोसिन मीमोज़ा ने उसे कनेर के बारे में अनेक जादुई बातें बतायी थी। अपनी दादी के कहने पर वह माँ सरस्वती के चरणों में नियमित रूप से सफ़ेद कनेर चढ़ाया करती थी। दादी कहती थी कि हर देवता देवी के चढ़ावे के लिये विशेष फूल होता है। सरस्वती विद्यादायिनी है। उसे सफ़ेद कनेर पसंद है।
’बिटिया, तुम शारदे माँ को सफ़ेद कनेर उनके चरणों में नित्य चढ़ाया करो। तुम्हें बुद्धि मिलेगी।’’
दादी की बात सुनकर मही स्कूल जाने से पहले, पास के मंदिर में नित्य सफ़ेद कनेर के... आगे-

अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ

आज सिरहाने उपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग घर–परिवार दो पल नाटक परिक्रमा
पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसरहमारी पुस्तकेंरेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

Loading
 

Review www.abhivyakti-hindi.org on alexa.com