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डॉ प्रेम जनमेजय

 



जन्मः १८ मार्च , १९४९ इलाहाबाद।

शिक्षाः एम. ए., एम. लिट्., पीएच. डी. ( दिल्ली विश्वविद्यालय)

व्यंग को एक गंभीर कर्म तथा सुशिक्षित मस्तिष्क के प्रयोजन की विद्या मानने वाले प्रेम जनमेजय आधुनिक व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उत्तर प्रदेश सरकार, महाराष्ट्र सरकार, माध्यम संस्थान, लखनउ तथा युवा साहित्य मंडल, गाजियाबाद की पुरस्कार समिति के सदस्य डॉ प्रेम जनमेजय की, हिंदी की लगभग सभी शीर्ष पत्र-पत्रिकाओं -आकाशवाणी के माध्यम से लगभग तीन सौ रचनाएँ प्रकाशित-प्रसारित हो चुकी हैं। आप १5 अगस्त १९९८ को स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती समापन समारोह के आकाशवाणी से सीधे प्रसारण के कमेंटेटर तथा 'इंडो रशियन लिट्रेरी क्लब ' के महासचिव रह चुके हैं। आपने 'दूरदर्शन' के लिए धारावाहिकों का लेखन तथा अनेक साहित्यिक कार्यक्रमों में भागीदारी की है। आपकी अनेक रचनाओं का अंग्रेज़ी, पंजाबी, गुजराती तथा मराठी में अनुवाद भी हुआ है।

पुरस्कार व सम्मान

अवंतिका सहस्त्राब्दी सम्मान, २००१ हरिशंकर परसाई स्मृति पुरस्कार - १९९७, हिंदी अकादमी साहित्यकार सम्मान १९९७-९८, अंतर्राष्ट्रीय बाल साहित्य दिवस पर 'इंडो रशियन लिट्रेरी क्लब' सम्मान - १९९८, प्रकाशवीर शास्त्री सम्मान - १९९७, 'माध्यम' युवा रचनाकार अट्टाहास - सम्मान - १९९१, 'युवा साहित्य मंडल सम्मान' -१९९6, युवा साहित्य मंडल - विशिष्ट सम्मान -१९९७।

प्रमुख कृतियाँ

व्यंग संकलन -
राजधानी में गँवार, बेशर्ममेव जयते, पुलिस! पुलिस! मैं नही माखन खायो, आत्मा महाठगिनी, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ, शर्म मुझको मगर क्यों आती!
बाल साहित्य -
शहद की चोरी, अगर ऐसा होता, नल्लुराम।
नव-साक्षरों के लिए -
खुदा का घड़ा, हुड़क।
आलोचना -
प्रसाद के नाटकों में हास्य व्यंग्य।

संपर्क - prem_janmejai@yahoo.com

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