अनुभूति

16. 8. 2003

आज सिरहानेआभारउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवार
दो पल
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इस सप्ताह

स्वतंत्रता दिवस विशेषांक

कहानियों में
यू के से शैल अग्रवाल की कहानी
अनन्य

सब कुछ ज्यों का त्यों है।  मानो मौत ने आदित्य को अमरत्व दे दिया हो।  आज भी वह वैसा ही बाँका और सजीला था।  उम्र की धूप तो सिर्फ शुभी के बालों पर ही बिखर गई थी।
'शहीद, फ्लाइट लेफ्टिनेन्ट, आदित्य राय को भारत सरकार मरणोपरान्त परमवीर चक्र प्रदान करती है। 
'शुभी को कल जैसी याद है जब भारत–सरकार का वह पत्र आया था।  आगे उसमें लिखा था कि उनकी इच्छानुसार उनका व्यक्तिगत सामान शुभांगी मित्रा को सौंपा जाता है।  और साथ के पैकेट में आदित्य की वरदी के साथ एक चाभी का गुच्छा, थोड़ी सी चेंज, एक कंघा, एक रूमाल और यही मेजरिंग टेप था।  शुभी को अच्छी तरह से याद है वह इक्कीस सितम्बर की शाम।

°

प्रौद्योगिकी में
विजय कुमार मल्होत्रा का आलेख
हिन्दी सीखते कंप्यूटर

°

संस्मरण में
डा नरेश की कलम से
फिर यह पाकिस्तान क्यों

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हास्य व्यंग्य में
महेशचंद्र द्विवेदी का आलेख

नौ और ग्यारह

°

अभिव्यक्ति की
तीसरी वर्षगांठ पर
आने वाले साल के लिये आयोजित
कुछ विशेष स्तंभों का विवरण
संपादक की कलम से

!सप्ताह का विचार!
स्वतंत्रता हमारा 
जन्म सिद्ध अधिकार है

!—लोकमान्य तिलक!

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अभिव्यक्ति तीन साल की

तीन साल पहले अभिव्यक्ति 
इस दुनिया में आयी।

साथ साथ 
अनुभूति को भी लायी।
अपार हर्ष है कि आज
दोनों अभि अनु साथ साथ किल्लोल कर रही है।

वतन से दूर हो या
माटी की गंध से रचे हो
.
अभिव्यक्ति विश्वव्यापी है।

गौरव गाथा हो या
नयी हवां का झोंका
.
अभिव्यक्ति को सब से प्यार है।

साहित्य का संगम कराती हुई.
ओ अभिव्यक्ति.
लंबी उम्र हो तेरी ।।।

(अभि–अनु गाथा चित्रों में)

पिछले सप्ताह

कहानियों में
यू एस ए से सुषम बेदी की कहानी
अज़ेलिया के फूल

"भारत जाती रहती हैं आप?" यह सवाल मैंने उठाया था।
"इतने साल तो हम लोग भारत में ही रहे। निक फोर्ड फाउन्डेशन के हैड थे न वहां। . . .अभी पांच साल ही तो हुए हैं यहां आए। कोई खास नहीं जाती। यूं भी।"
उनका "यूं भी" मेरी आंखों में शायद सवाल बना टंगा रहा था इसीलिए कहना फिर से जारी कर दिया – "वहां जाकर मन खराब हो जाता है . . .सब लोग बस रोते–धोते ही हैं! यहां अच्छा ही है कि लोग सिर्फ उपरी बात ही करते हैं . . .अपने कष्टों को लेकर चुप ही रहते हैं . . .एक हफ्ते के लिये गयी थी . . .सिर्फ रोना ही सुनती रही। जी उखड़ गया।"

°

परिक्रमा में
दिल्ली दरबार के अंतर्गत 
बृजेश कुमार शुक्ला का आलेख 
हरियाला ताज परिसर
°

महानगर की कहानियों में
मधु संधु की लघुकथा
अभिसारिका
°

पर्व परिचय में
12अगस्त रक्षाबंधन के अवसर पर
एन शाह का आलेख
बंधन धागों का
°

स्वास्थ्य संदर्भ में
दीपिका जोशी की भोजन पड़ताल
पिज़ा की पौष्टिकता

 

अनुभूति में

भारत के राष्ट्रपति
सहित 
36 कवियों की
देशभक्ति रचनाएं
साथ ही
दिनेश चमोला शैलेश की कविताएं

साहित्य समाचार

° पिछले अंकों से°

 रवीन्द्र कालिया का उपन्यास ए बी सी डी
°

कहानियों में
बिल्लियां बतियाती हैं–एस आर हरनोट
लावारिस–विद्याभूषण धर
चीफ़ की दावतभीष्म साहनी
मन्ना जल्दी आना–दयानंद पांडेय
°

सामयिकी में
तुलसी जयंती के अवसर पर
तुलसीदास के व्यक्तित्व और कृतित्व से
एक परिचय
हुलसी के तुलसी
°

साक्षात्कार में
उर्मिला शिरीष की बातचीत
चित्रा मुद्गल के साथ
°

कलादीर्घा में
कला और कलाकार के अंतर्गत 
जतीन दास का परिचय
उनके चित्रों के साथ
°

फुलवारी में 
सितारों की दुनिया स्तंभ के
अंतर्गत इला प्रवीन से जानकारी
वृहस्पति ग्रह
और कहानियों में
अंजलि राजगुरू की मजे़दार कहानी
बंटी की आइस्क्रीम
°

यू के में हिन्दी 
के अंतर्गत वेद मित्र की कलम से
हस्तलिखित पाठों से हिन्दी ज्ञान
प्रतियोगिता तक
°

धारावाहिक में 
कृष्ण बिहारी की आत्मकथा का 
अगला भाग
दो घण्टे चालीस मिनट का सफ़र
°

विज्ञान वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप से विज्ञान चर्चा
नैनोटेक्नॉलॉजी 
या फिर जादुई चिराग

°

परिक्रमा में

लंदन पाती के अंतर्गत 
शैल अग्रवाल का आलेख 

वृहत आकाश

°

और नार्वे निवेदन के अंतर्गत
ओस्लो, नार्वे से
सुरेश चंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' द्वारा 
नार्वे निवेदन

   

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन    
      सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिया   साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला