अनुभूति

9. 12. 2003

आज सिरहानेआभारउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवार
दो पल
परिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
विशेषांक
शिक्षा–सूत्रसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्य समाचारसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यसंदर्भसंपर्कहास्य व्यंग्य 

 

पिछले सप्ताह

संस्मरण में
डा प्रभाकर श्रोत्रिय की कलम सेे 
कोलकाता की शाम
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कलादीर्घा में
भारत की लोक कलाओं के अंतर्गत
बाटिक

के विषय में रोचक जानकारी 
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साक्षात्कार में
उस्ताद अब्दुल हलीम जाफर खां से विजयशंकर मिश्र की तथ्यपूर्ण बातचीत
सितार का अनूठा अंदाज
जाफरखानी बाज
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फुलवारी में
अरूणा घवाना की कहानी
चिंटू और चीनी
और 'जंगल–के–पशु' लेखमाला
के अंतर्गत जानकारी 

भालू
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साहित्य संगम में
हरिकृष्ण कौल की कश्मीरी कहानी
अढ़ाई घंटे

"इस मुल्क का कुछ नहीं होगा! न ट्रेन वक्त पर आएगी न प्लेन टाइम पर टेक–ऑफ करेगा।" मेरे दोस्त ने यह बात तल्ख लहज़े में कही और बेंच से उठ कर प्लेटफॉर्म पर निरूद्देश्य घूमने लगा। मैं स्टेशन मास्टर के पास गया। उस ने मुझे तसल्ली दी कि ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। गाड़ी आते ही हमें टी•टी• से बात करनी चाहिए। अगर उस के पास कोई बर्थ खाली होगी तो वह बर्थ हमें ही मिलेगी। जिस प्रकार कोई मुर्गी चोंच में दाना ले कर चूज़े के पास जाती है उसी प्रकार मैं यह शुभ सूचना ले कर अपने दोस्त के पास गया। सुन कर उसे कोई प्रसन्नता नहीं हुई। उस के चेहरे पर उस की खास मुस्कुराहट एक बार फिर मेरा मज़ाक उड़ाने लगी – स्कूल मास्टर से ले कर स्टेशन मास्टर तक सब झूठी तालीम और झूठी तसल्ली देते हैं। इस मुल्क का कुछ नहीं होगा।
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इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से तरूण भटनागर की कहानी
खिड़की वाला संसार

डॉक्टर पिताजी को सिगार पीने के लिए मना करते थे। सिगार उन्हें भीतर से गला रहा था, पर वे नहीं माने। वे सिगार पीते रहे। कभी–कभी जीतन काका उन्हें सख्ती से रोक देते थे। पर वे नहीं मानते थे। वे सिगार पीने का जस्टीफिकेशन देने लगते। सिगार ही उनकी मौत का कारण बनी। पिताजी बहुत धीमी मौत मरे थे। कई बार पिताजी उन्हें अपनी गोद में बिठा लेते। फिर कुछ सोचते से शून्य में ताकने लगते। वे कहते 'तू तो पराया धन है। लड़कियों को एक दिन घर छोड़कर जाना पड़ता है। कभी–कभी ऐसा कहते हुए पिताजी की आंखों में एक पारदर्शी मोती सा उभर आता था। फिर वे उन्हें अपने पास खींच लेते और देर तक चुपचाप उनका सिर सहलाते रहते। 

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परिक्रमा में
दिल्ली दरबार के अंतर्गत
बृजेशकुमार शुक्ला का आलेख
नये चुनाव नये परिणाम

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धारावाहिक में 
सागर के इस पार से उस पार से का अगला भाग कृष्ण बिहारी की कलम से
शील सा’ब भी क्या
आदमी थे

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रसोईघर में
स्वास्थ्यवर्धक स–फल व्यंजन
फलराज

°

प्रेरक प्रसंग में
रजनीकांत शुक्ल की कलम से
नागरी की शक्ति
1

!सप्ताह का विचार!
ताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह
ही कर्म को सफल बनता है।
— वाल्मीकि

 

अनुभूति में

भारत से
पोद्दार रामावतार अरूण, सत्येश भंडारी और
यू एस ए से
साहिल लखनवी की नयी कविताएं

साहित्य समाचार
दिल्ली में व्यंग्य पर विचार गोष्ठी

° पिछले अंकों से°

  कहानियों में
दंशअलका प्रमोद
संगीत पार्टीसुषम बेदी
फ़र्क़विनोद विप्लव
पाषाण पिंडविनीता अग्रवाल
कांसे का गिलास–सुधा अरोड़ा
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विज्ञान वार्ता में
गुरूदयाल प्रदीप का आलेख
आधी दुनिया के पक्ष में 
°

प्रौद्योगिकी में
विजय प्रभाकर कांबले का आलेख
भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर
और विश्वजाल का विकास
°

उपहार में
जन्मदिन के लिये उपयुक्त 
नयी कविता जावा आलेख के साथ
चाय हो जाए
°

सामयिकी में
बाल दिवस के अवसर
पर हेमंत शुक्ला का आलेख
बाल फिल्मों के प्रेरणास्रोत
°

ललित निबंध में
गोविंद कुमार गुंजन का आलेख
एक फूल खिलना चाहता है
°

हास्य व्यंग्य में
महेश चंद्र द्विवेदी का व्यंग्य लेख
मुफ्त को चंदन घिस मेरे नंदन
°

आज सिरहाने में
अमरीक सिंह दीप के विचार मैत्रेयी पुष्पा के उन्यास कस्तूरी कुण्डल बसै
के विषय में
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परिक्रमा में
लंदन पाती के अंतर्गत 
शैल अग्रवाल का आलेख
मानदंड

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेन  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
      सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिया
  साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला