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२९. ३. २०१

सप्ताह का विचार-  शरीर को रोगी और निर्बल रखने के सामान दूसरा कोई पाप नहीं है। - लोकमान्य तिलक

अनुभूति में-
रमेशचंद्र शर्मा आरसी, नीरज गोस्वामी, विजय चतुर्वेदी, सुदर्शन प्रियदर्शिनी और प्रदीप मिश्र की रचनाएँ।

समय और स्थान बदलने से बहुत सी धारणाएँ किस तरह बदल जाती हैं इसका आभास पिछले कुछ सालों में गहराई से हुआ है। पृथ्वी जैसी...आगे पढ़ें

सामयिकी में- आर्थिक विकास की संभावनाओं और घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों पर गिरीश मिश्र के विचार- भारतीय अर्थव्यवस्था का भविष्य।

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव - एक बाल्टी पानी में चुटकी भर पिसी हुई फिटकरी मिलाकर नहाएँ तो त्वचा से पसीने की गंध दूर रहती है।

पुनर्पाठ में- १ दिसंबर २००१ के अंक में विशिष्ट कहानियों के स्तंभ गौरव गाथा के अंतर्गत प्रकाशित रवीन्द्र कालिया की कहानी - चाल

क्या आप जानते हैं? कि भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त (५९८-६६८) तत्कालीन गुर्जर प्रदेश के प्रख्यात नगर उज्जैन की अन्तरिक्ष प्रयोगशाला के प्रमुख थे।

शुक्रवार चौपाल- पिछले सप्ताह शरद जोशी के नाटक एक था गधा उर्फ अल्लादाद खाँ का पाठ न हो सकने के कारण... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-७ में वसंत और होली के गीतों-नवगीतों क्रम पूरा हुआ। प्रतीक्षा है इन रचनाओं पर विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया की।


हास परिहास

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में भारत से
निर्मल गुप्त की कहानी नदीदे

हाथ में काँच की रंग-बिरंगी गोलियाँ उछालता रघु चारों ओर घेर कर खड़े बच्चों को चीख-चीख कर हिदायतें दे रहा था। छूना मत। हाथ मत लगाना। अबके धंईया मेरी। निशाना न लगे तो कहना।
जबरदस्त खेल चल रहा था। पूरी बारह गोलियाँ दाँव पर लगी थीं। मजाक की बात थी क्या। सुकना ने उलाहना दिया, ''हाँ-हाँ बहुत देखे हैं धंईया जीतने वाले। पहले कन्चे फेंक तो सही।''
''फेंकता हूँ, पर देख सुकना। सबको गुच्चक पर से हटा दे।''
''हटो रे'' कहता सुकना किसी कांस्टेबिल की तरह उत्सुकता से आगे बढ़ आए बच्चों को पीछे धकेलने लगा।
सब बच्चे दम साधे खड़े थे। देखों क्या होता हैं? कौन जीतेगा इत्ते सारे कन्चे? सुकना या रघु, रघु या सुकना। सब अटकलें लगा रहे थे। और रघु कन्चे खनकाता चीखे जा रहा था, ''पीछे हटो सब, और पीछे हटो।''
पूरी कहानी पढ़ें...
*

विजी श्रीवास्तव का व्यंग्य
सच का सामना में गांधी जी का बंदर
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रूपेश कुमार का आलेख
आईआईटी कानपुर का जुगनू अंतरिक्ष में
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कैलाश जैन से सुनें
पहली अप्रैल की कहानी

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समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

पिछले सप्ताह

श्यामसुंदर घोष का व्यंग्य
 तकिया 

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विपिन चंद्र चतुर्वेदी का आलेख
क्या बड़े जलाशय भूकंप का कारण होते है

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डॉ. भारतेंदु मिश्र की कलम से-
छंदप्रसंग के आदर्श: आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री 

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शिवानी का संस्मरण
अरुंधती

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समकालीन कहानियों में यू.के. से
तेजेन्द्र शर्मा की कहानी- दीवार में रास्ता

छोटी जान आज़मगढ़ आ रही हैं।
मोहसिन को महसूस हुआ कि अब दीवार में रास्ता बनाना संभव हो सकता है। भावज ने पोपले मुँह से पूछ ही लिया,''अरे कब आ रही है? क्या अकेली आ रही है है या जमाई राजा भी साथ में होंगे? सलमान मियाँ को देखे तो एक ज़माना हो गया है। वैसे, मरी ने आने के लिए चुना भी तो रमज़ान का महीना!'' भावज की आँखों के कोर भीग गए। रात को सकीना ने अपनी परेशानी मोहसिन के सामने रख दी,''सुनिये जी, क्यों आ रही हैं छोटी जान? अचानक पचास साल बाद क्यों हमारी याद आ गई?''
''कुछ साफ़ तो मुझे भी नहीं पता। सुनने में आ रहा है कि छोटी जान इंग्लैंड में बड़ी सियासी शख़्सियत बन गई हैं। शायद एम.पी. हो गई हैं शहर वालों ने इज्ज़त देने के लिए बुलाया है।  मगर उनके आने में अभी तो देर है''
''पता नहीं क्यों, मेरा तो दिल डोल रहा है'' आगे पढ़ें...

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