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१. १२. २०१७

इस माह-

1अनुभूति में-
ज्ञानप्रकाश आकुल, जगदीश पंकज, सतपाल ख्याल, मधु प्रधान और  बाबूलाल शुक्ल की रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस माह सर्दी के सेहत भरे दिनों के लिये हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं-बादाम शोरबा

स्वास्थ्य में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के २४ उपाय- १५- थकान से बचें।

बागबानी- के अंतर्गत घर की सुख स्वास्थ्य और समृद्धि के लिये शुभ पौधों की शृंखला में इस पखवारे प्रस्तुत है- १५- सिल्वर क्राउन

भारत के सर्वश्रेष्ठ गाँव- जो हम सबके लिये प्रेरणादायक हैं- १५- मुत्तुरु-जहाँ-लोग-आज-भी-संस्कृत-बोलते-हैं।

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (दिसंबर) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया?...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- जगदीश पंकज की कलम से वेदप्रकाश शर्मा वेद के नवगीत संग्रह- ''शब्द अपाहिज मौनी बाबा'' का परिचय।

वर्ग पहेली- २९६
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
सुशांत सुप्रिय की कहानी- मिलन

मैं कौन हूँ यह महत्वपूर्ण नहीं है। जो मैं आज आपको बताने जा रहा हूँ, महत्वपूर्ण वह है। एक बात और... यह काल्पनिक कहानी नहीं है, सच्ची घटना है। तल्ख़ हक़ीक़त है। अपने अराजक समय का दस्तावेज़ है। बच्चे, कमज़ोर-दिल महिलाएँ और भावुक पुरुष इसे न पढ़ें क्योंकि इसे पढ़ कर यदि आपका गला रुँधा या आपकी आँखें गीली हुईं तो मैं इसके लिए क़तई ज़िम्मेदार नहीं माना जाऊँगा।
वह दिसंबर की एक सर्द शाम थी। हम छह लोग कनॉट प्लेस के 'वोल्गा' रेस्तराँ में ब्रजेश की प्रोमोशन पार्टी के मौक़े पर इकट्ठे हुए थे। ब्रजेश यानी बंटी- मेरा छोटा भाई। ब्रजेश 'इंडिया बुल्स 'कम्पनी में मैनेजिंग डायरेक्टर बन गया था। ख़ुशी का मौक़ा था। मेरी पत्नी सरला और ब्रजेश की पत्नी नेहा के अलावा ब्रजेश के सहकर्मी श्री और श्रीमती श्रीनिवासन भी हमारे साथ थे। एक बूढ़ा सरदार बैरा थके हुए क़दमों से आया और हमें 'मेनू 'दे गया। मैंने देखा कि ब्रजेश उस सरदार वेटर को ध्यान से देख रहा था। जैसे उसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो। अचानक वह अपनी कुर्सी से उठा और उस बूढ़े सरदार के पास पहुँच कर उसने कहा- ...आगे-
*

कांता राय की लघुकथा-
कतरे हुए पंख
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रचना प्रसंग में रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
का आलेख- लघुकथा की भाषा
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उषा वधवा का नगरनामा
यह वो शहर तो नहीं
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पुनर्पाठ में गृहलक्ष्मी से जानें-
अलाव के नये अंदाज

पिछले माह-

विश्वंभर विज्ञ की
लघुकथा- बचाओ
*

रचना प्रसंग में कुमार रवीन्द्र का आलेख-
आँगन आँगन बिखरे गीत
*

आज सिरहाने पंकज सुबीर
का कहानी संग्रह- चौपड़े की चुड़ैलें
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विज्ञानवार्ता में डॉ गुरुदयाल प्रदीप से जानें-
सूँघने में छुपे रहस्य और नोबेल पुरस्कार

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है यू.एस.ए. से
देवी नाँगरानी की कहानी- परछाइयों के जंगल

माँ को बड़ी मुश्किल से सहारा देकर बस में चढ़ाया और फिर मैं चढ़ी। बस धक्के के साथ आगे बढ़ी तो माँ गिरते-गिरते बची। मैं भी उसे न सँभाल पाई। एक दयावान वृद्ध ने अपने स्थान से उठकर उसे बैठने के लिए कहा और माँ एक आज्ञाकारी बालक की तरह सीट पर बैठ गई। मैंने टिकट लिया और उसके साथ सटकर खड़ी हो गई। ‘टैंकबंड’ बस स्टॉप पर उतरना था। कंडक्टर ने दो बार जोर से पुकारा 'टैंकबंड, टैंकबंड' पर मैं अतीत की खलाओं में खोई रही, जब इसी तरह सहारा देकर माँ ने मुझे पहले चढ़ाया था और बाद में वह खुद चढ़ी थी। बस चलने लगी थी, पर फिर पाया कि कुछ छूट गया था, कुछ नहीं बहुत कुछ छूट गया था। पिताजी जो साथ आए थे, पीछे रह गए थे। हड़बड़ी में वे चढ़ ही नहीं पाये या...! माँ का चेहरा ज़र्द, आँखें फटी फटी, गुमसुम आलम में वह बड़बड़ाते हुए अचानक चिल्लाने लगी- 'अरे बस रोको, बस रोको, मुनिया के पिता पीछे रह गए हैं। अरे भाई रोको मुझे उतरने दो, वे पीछे रह गए हैं।' आवाज शोर में लुप्त सी हो गई और...आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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