अनुभूति

9. 11. 2003

अभिनंदनपत्रआज सिरहानेआभारउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवार
दो पल
परिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
विशेषांक
शिक्षा–सूत्रसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्य समाचारसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यसंदर्भसंपर्कहास्य व्यंग्य 

 

पिछले सप्ताह

कहानियों में
भारत से सुधा अरोड़ा की कहानी
कांसे का गिलास

चिल्की की आंखों की नमी पर आंखें टिका पाना मुश्किल था – अब तो फोन भी नहीं करती, पहले कर लिया करती थी – दस पंद्रह दिन में एक बार। उस दिन निखिल ने ही डांट दिया – "क्यों फोन करती हो बार बार। उसे इस तरह परेशान करने से क्या फायदा! अगर बेटी के लिए तुम्हारे मन में जरा भी माया ममता बची रह गई हैं तो वह तुम्हें भूल सकें, इसमें हमारी मदद करो। सात समंदर पार से अपनी आवाज सुना सुनाकर
उसे हलकान मत करो।" निखिल की आवाज़ में कड़वाहट थी और नेहा को कड़वाहट पसंद नहीं थी। उसने फोन पटक दिया और उसके बाद फिर कभी ब्लैंक कॉल तक नहीं आया। समय के साथ साथ रिश्ते धुंधलाने की कोशिश में थे।
°

संस्मरण में
सुप्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी की डायरी से एक अविस्मरणीय वृतांत
दो चेहरे
°

कलादीर्घा में
कला और कलाकार के अंतर्गत
रसिक रावल
से परिचय उनके चित्रों के साथ
°

साक्षात्कार में
दिल्ली की जानी मानी फोटोग्राफर
सर्वेश के साथ बातचीत 

तस्वीरें बोलती हैं
1°1

फुलवारी में
पूर्णिमा वर्मन की कहानी
लाल गुब्बारा
और 'जंगल – के – पशु'
लेखमाला के अंतर्गत जानकारी

बाघ

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इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से विनोद विप्लव की कहानी
फ़र्क़

साबुन के बारे में उसके पास एक और महत्वपूर्ण जानकारी यह थी कि उसे रगड़ने पर झाग निकलता है – उसी तरह का झाग जैसा नदी में बाढ़ आ जाने पर किनारे–किनारे जमा हो जाता है। शादी के बाद शहर में अपने मर्द के साथ रहकर मजदूरी करने वाली उसकी सखी ने बताया था कि शहर में औरतें शरीर और बालों में उजली मिट्टी नहीं, बल्कि साबुन लगाती हैं। साबुन लगाने से शरीर बिल्कुल साफ और मन तरोताजा हो जाता है। सभी मैल दूर हो जाते हैं। इसीलिए तो शहर की औरतें इतनी गोरी और सुंदर दिखती हैं।

°

महानगर की कहानियां में
विनीता अग्रवाल की लघुकथा
पाषाण पिंड

°

परिक्रमा में
दिल्ली दरबार के अंतर्गत
बृजेशकुमार शुक्ला का आलेख
प्रिंसेज़ डायना की प्रतिकृति

और

मेलबर्न की महक 
के अंतर्गत
आस्ट्रेलिया की हिन्दी गतिविधियों को अभिव्यक्ति पर प्रस्तुत कर रहे हैं
हरिहर झा
साहित्य संध्या में

°

धारावाहिक में 
कृष्ण बिहारी की आत्मकथा का
इस पार से उस पार से का अगला भाग
असुरक्षा बोध बहुत
ख़तरनाक होता है

°

सप्ताह का विचार
नुष्य का जीवन एक महानदी की
भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन
दिशाओं में राह बना लेती है।
— रवीन्द्रनाथ ठाकुर

 

अनुभूति में

दिनेश कुशवाह,
सुनील सिंह सजवान, राजीव श्रीवास्तव व
मोहित कटारिया
की आठ नयी
रचनाएं

दीपावली विशेषांक समग्र

° पिछले अंकों से°

  कहानियों में
चयनराम गुप्ता
दिये की लौ–शैल अग्रवाल
बीस फुट के बापूजी–एस आर हरनोट
उत्तरजीवितादिव्या माथुर
सलमाउषा वर्मा
°

सामयिकी में
दीपावली के अवसर पर
चंद्रशेखर का आलेख

सत्य का दीया तप का तेल
°

घर परिवार में
सुंदर घर के नये अंदाज़
रोशनी से कायाकल्प
°

प्रौद्योगिकी में
विजय कुमार मल्होत्रा से जानकारी
!सूचना प्रौद्योगिकी और!भारतीय भाषाएं (दूसरी किस्त)
°

उपहार में शुभकामना संदेश 
सचित्र कविता के साथ —
दीप जले
°

साहित्यिक निबंध में लोक गीतों में कर्तिक माह का महत्व मृदुला सिन्हा द्वारा
कार्तिक हे सखी पुण्य महीना के अंतर्गत
°

हास्य व्यंग्य में
प्रेम जनमेजय का आलेख
तुम ऐसे क्यों आयीं लक्ष्मी
°

पर्व परिचय में
प्रमिला कटरपंच
का आलेख 
 लोकपर्व सांझी
°

परिक्रमा में
लंदन पाती के अंतर्गत 
शैल अग्रवाल का आलेख
सात समुंदर पार

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
       सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिया
  साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला