अनुभूति

1. 12. 2003

आज सिरहानेआभारउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवार
दो पल
परिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
विशेषांक
शिक्षा–सूत्रसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्य समाचारसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यसंदर्भसंपर्कहास्य व्यंग्य 

 

पिछले सप्ताह

परिक्रमा में
लंदन पाती के अंतर्गत 
शैल अग्रवाल का आलेख
मानदंड

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विज्ञान वार्ता में
गुरूदयाल प्रदीप का आलेख
आधी दुनिया के पक्ष में

°

प्रौद्योगिकी में
विजय प्रभाकर कांबले का आलेख
भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर
और विश्वजाल का विकास

°

उपहार में
जन्मदिन के लिये उपयुक्त एक नयी
कविता जावा आल्ेाख के साथ
चाय हो जाए

°

कहानियों में
भारत से अलका प्रमोद की कहानी
दंश

जब पहुंची तो ऋतिका श्री वर्मा की बाहों में अधलेटी सी सांस लेने का कठिन प्रयास कर रही थी। उसकी विवश आंखों में मुझे देख कर याचना उभर आई मानो कह रही हो कि 'डॉक्टर मुझे बचा लो, मैं जीना चाहती हूं' वर्मा जी भी मुझे देख कर आशान्वित हो उठे। मैं उन्हें क्या बताती कि स्थिति मेरे वश से बाहर हो चुकी है, परिणाम जानते हुए भी प्रयास तो करना ही था, मन में कहीं एक झूठी सी आस थी कि क्या पता कोई चमत्कार ही हो जाए। कैसी विडम्बना थी कि अभी सप्ताह भर पूर्व ही जिस ऋतिका की उत्साह से पूर्ण वाणी इस घर में विवाह की शहनाई से एकमय हो कर गूंज रही थी वह आज निष्प्राण सी पड़ी जीवन से जूझ रही थी। मैं अपने विचारों को झटक कर कर्तव्य पूर्ति में व्यस्त हो गई।
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इस सप्ताह

साहित्य संगम में
हरिकृष्ण कौल की कश्मीरी कहानी
अढ़ाई घंटे

"इस मुल्क का कुछ नहीं होगा! न ट्रेन वक्त पर आएगी न प्लेन टाइम पर टेक–ऑफ करेगा।" मेरे दोस्त ने यह बात तल्ख लहज़े में कही और बेंच से उठ कर प्लेटफॉर्म पर निरूद्देश्य घूमने लगा। मैं स्टेशन मास्टर के पास गया। उस ने मुझे तसल्ली दी कि ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। गाड़ी आते ही हमें टी•टी• से बात करनी चाहिए। अगर उस के पास कोई बर्थ खाली होगी तो वह बर्थ हमें ही मिलेगी। जिस प्रकार कोई मुर्गी चोंच में दाना ले कर चूज़े के पास जाती है उसी प्रकार मैं यह शुभ सूचना ले कर अपने दोस्त के पास गया। सुन कर उसे कोई प्रसन्नता नहीं हुई। उस के चेहरे पर उस की खास मुस्कुराहट एक बार फिर मेरा मज़ाक उड़ाने लगी – स्कूल मास्टर से ले कर स्टेशन मास्टर तक सब झूठी तालीम और झूठी तसल्ली देते हैं। इस मुल्क का कुछ नहीं होगा।

°

संस्मरण में
डा प्रभाकर श्रोत्रिय की कलम से 
कोलकाता की शाम

°

कलादीर्घा में
भारत की लोक कलाओं के अंतर्गत 
बाटिक
के विषय में कुछ रोचक जानकारी

°

साक्षात्कार में
उस्ताद अब्दुल हलीम जाफर खां से विजयशंकर मिश्र की तथ्यपूर्ण बातचीत
सितार का अनूठा अंदाज
जाफरखानी बाज

°


फुलवारी में
अरूणा घवाना की कहानी
चिंटू और चीनी
और 'जंगल–के–पशु' लेखमाला
के अंतर्गत जानकारी
भालू

सप्ताह का विचार
विता का बाना पहन कर सत्य और
भी चमक उठता है।
— अज्ञात

 

अनुभूति में

भारत से
प्रदीप मिश्रा
और
सूरीनाम से
पुष्पिता की
नयी कविताएं

साहित्य समाचार
लंदन से नाटक समीक्षा

° पिछले अंकों से°

  कहानियों में
संगीत पार्टीसुषम बेदी 
फ़र्क़विनोद विप्लव
पाषाण पिंडविनीता अग्रवाल
कांसे का गिलास–सुधा अरोड़ा
चयनराम गुप्ता
°

सामयिकी में
बाल दिवस के अवसर पर हेमंत 
शुक्ला का आलेख

बाल फिल्मों के प्रेरणास्रोत

°

ललित निबंध में
गोविंद कुमार गुंजन का आलेख
एक फूल खिलना चाहता है

°

हास्य व्यंग्य में
महेश चंद्र द्विवेदी का व्यंग्य लेख
मुफ्त को चंदन घिस मेरे नंदन

°

आज सिरहाने में
अमरीक सिंह दीप के विचार 
मैत्रेयी पुष्पा के उन्यास

कस्तूरी कुण्डल बसै
के विषय में

°

धारावाहिक में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा का अगला भाग
असुरक्षा बोध बहुत ख़तरनाक होता है

°

परिक्रमा में
दिल्ली दरबार के अंतर्गत
बृजेशकुमार शुक्ला का आलेख
प्रिंसेज़ डायना की प्रतिकृति

और

मेलबर्न की महक के अंतर्गत
आस्ट्रेलिया की हिन्दी गतिविधियों को अभिव्यक्ति पर प्रस्तुत कर रहे हैं
हरिहर झा
साहित्य संध्या में

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
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  साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला