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पिछले सप्ताह

हास्य व्यंग्य में
अरूण राजर्षि का
कुता

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का चौदहवां भाग
समायोजन विधि भाग–2

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महानगर की कहानियों में
कमल चोपड़ा की लघुकथा
खेलने के दिन

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प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव ने परखा 'भारत संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय' के
हिन्दी सॉफ्टवेयर उपकरण

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उपन्यास अंश में  
भारत से प्रमोद कुमार तिवारी के उपन्यास
'डर हमारी जेबों में ' का एक अंश
चीजू का पाताल

हम अपने गांव में 'चीजू का पाताल' वाला खेल खेलते थे। वह पाताल धरती की अनंत गहराइयों में बसा था। बीस कुंओं के बराबर मिट्टी निकालने के बाद ही पहुंचा जा सकता था वहां। जिसका मन जितनी ऊंची उड़ान भर पाता‚ उतना ही सुंदर हो जाता उसका 'चीजू का पाताल।' वहां वो सारी चीजें होतीं‚ जो मन चाहता था। पर केवल मन की गति थी वहां तक। पिताजी की बातें सुनकर लगा था‚ मैं खेलासराय नहीं‚ बल्कि अपने चीजू के पाताल में जा रहा था। अपने टोले के अवधेसवा को बताया भी था कि मुझे मेरा चीजू का पाताल मिल गया था। अवधेसवा का चेहरा उतर गया था।
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इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से विजय शर्मा की कहानी
सुहागन

गायत्री ब्याह कर नारायण दत के घर आ गई। नए घर के कठोर नियम–कायदों से नारायण दत ने उसे जल्दी परिचित करा दिया। खिड़की का परदा उठाकर या सरका कर नहीं रखना‚ दरवाजे पर खड़ी होना अच्छा नहीं। आर्य समाजी होने के कारण वे परदे के सख्त खिलाफ थे पर पत्नी किसी पर पुरूष से बात करे यह वे सहन नहीं कर सकते थे। वे हिदायत देते‚ ‘आंख नीची करके बात किया करो‚ भले घर की स्त्रियां आंख में आंख डाल कर बात नहीं करतीं। घर में पढ़ने के लिये सत्यार्थ प्रकाश‚ स्वामी दयानन्द सरस्वती की जीवनी थी। पंडित देवीदत भी समझाते‚ ‘गायत्री मंत्र का जाप किया करो‚ इससे चित शांत रहता है।

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हास्य व्यंग्य में
डा नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य
कुतुबमीनार

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का पंद्रहवां भाग
तस्कीन विधि

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दृष्टिकोण में
महेशचंद्र द्विवेदी का मन्थन
आस्तिकता या नास्तिकता

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फुलवारी में
आविष्कारों की नयी कहानियां
और शिल्पकोना में बनाएं
बाघ का नया मुखौटा

 

अनुभूति में

गौरवग्राम में 
पं बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' और
कविताओं में
तरूण भटनागर की
नयी रचनाएं

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में

गुनहगार–सुषम बेदी
फर्क–सूरज प्रकाश
मुक्ति–प्रत्यक्षा
शर्ली सिंपसन शुतुर्मुर्ग है–उषा राजे सक्सेना
बदल जाती है ज़िन्दग़ी–अर्चना पेन्यूली

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हास्य व्यंग्य में

प्रवासी से प्रेम–डा प्रेम जनमेजय
बहुसंख्यक होने का अर्थ–डा नरेन्द्र कोहली
हे निंदनीय व्यक्तित्व–अशोक स्वतंत्र 
मानवाधिकार–डा नरेन्द्र कोहली

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सामयिकी में
प्रेमचंद जयंती के अवसर पर
डा जगदीश व्योम की जांच–पड़ताल
प्रेमचंद 'मुंशी' कैसे बने

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आज सिरहाने
कृष्णा सोबती का उपन्यास
समय सरगम

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प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव के सहयोग से
लिनक्स आया हिंदी में

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प्रकृति और पर्यावरण में
आशीष गर्ग द्वारा नवीनतम जानकारी
वर्षा के पानी का संरक्षण
!°!!

!सप्ताह का विचार!
सत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की एक चिनगारी भी उसे भस्म कर देती है। —हरिभाऊ उपाध्याय
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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

 

 

 
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