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पिछले सप्ताह

हास्य व्यंग्य में
डा प्रेम जनमेजय का गुरूमंत्र
राम! पढ़ मत, मत पढ़

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मंच मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में
प्रभो उनको काले नाग से बचाए

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चिठ्ठापत्री में
चिठ्ठापंडित की पैनी नज़र
मई महीने के चिठ्ठों पर

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संस्मरण में
रामप्रकाश सक्सेना का आलेख
पुण्य का काम

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कहानियों में
भारत से सुषमा जगमोहन की कहानी
शहादत

आजकल प्रफुल्ल बाबू बहुत खुश हैं। खुश होने की दो वजह हैं। यही तो कुछ दिन हैं जब उन्हें लोग प्रफुल्ल बाबू कह कर पुकारने लगते हैं। दूसरे, ये उनके कमाई के दिन हैं- सॉलिड कमाई के। अपने ही शब्दों में आज कल वह चांदी काट रहे हैं। चौंकिए मत, प्रफुल्ल बाबू के चांदी काटने का मतलब है सौ-डे़ढ सौ रूपए रोज़ की दिहा़डी, साथ में खाना और शाम को दारू का इंतज़ाम भी।
कई तरह के दूसरे फ़ायदे भी हो जाते हैं। ज़रूरत पड़ी तो बेटे को भी स्कूल से छुट्टी दिलवा देते हैं। और पत्नी शांति भी कारखाने से वक्त निकाल कर यहां आ जाती है। कभी– कभार छुट्टी मार ली। यानि कि बाद की ज़िंदगी के कई महीने सुकून से गुज़र जाते हैं।

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गुमो विशेषां

कहानियों में
यू.के. से शैल अग्रवाल की कहानी
यादों के गुलमोहर

डाल–डाल फूल पतियों से सजा, गरमियों के इन दो तीन महीनों में पूरा का पूरा यूरोप कुछ और ही निखर जाता है . . .दुल्हन–सा संवर जाता है। यों तो यहां भी वही धरती, आकाश, हवा, पानी सब वही हैं, बस रंग ही कुछ और ज्यादा शोख और चटक हो जाते हैं . . .आदमियों के ही नहीं . . .धरती, आकाश, फूल पती सभी के। घास कुछ और ज्यादा हरी दिखने लगती है और आसमान व समंदर कुछ और ही गहरे और नीले। फिर वैनिस तो एक रूमानी शहर है।आकाशचुंबी इमारतों की गोदी में इठला–इठलाकर बहती नदी और मैंडेलिन व बैंजो की सुरीली धुनों पर हंसों से गर्दन उठाए बहते गंडोले और इन सब में मंत्रमुग्ध रेशमा।

और

पुराने अंकों से
डॉ शांति देवबाला की हृदयस्पर्शी कहानी
गुलमोहर
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हास्य व्यंग्य में
अनूप शुक्ला जानना चाहते हैं
है किसी का नाम गुलमोहर
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प्रकृति में
अर्बुदा ओहरी का तथ्यों से भरपूर आलेख
लाल फूलों वाला गुलमोहर

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ललित निबंध में
पूर्णिमा वर्मन के साथ साहित्य की गलियों में
गुलमोहर दर गुलमोहर

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नाटक में
मथुरा कलौनी की संवेदनशील प्रस्तुति
संदेश

 सप्ताह का विचार
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। — हरिवंश राय बच्चन

गुलमोहर विशेषांक में गीत, ग़ज़ल, दोहों और कविताओं में 40 से अधिक
गुलमोहर रचनाएं

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
भाई साहब–गिरीश पंकज
ठूंठ–ऋषि कुमार शर्मा
मां आकाश है–गिरिराज किशोर
बुधवार का दिन–गुरमीत बेदी
धूप के मुसाफ़िर – मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी
सेल – इला प्रसाद

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हास्य व्यंग्य में
आरक्षित भारत –रविशंकर श्रीवास्तव
जब मैने आदमी–अभिरंजन कुमार
तोहफ़ा टमाटरों का–मनोहर पुरी
फैशन शो में . . .–शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

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प्रकृति और पर्यावरण में
ऑस्ट्रलिया से सूरज जोशी की प्रस्तुति
ऑस्ट्रेलिया के कंगारू

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पर्यटन में
चंदन सेन के साथ देखते हैं
बूंदों में खिलता बूंदी का रूप

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फुलवारी में
ललित कुमार से जानकारी की बातें
मिस्र, द .अफ्रीका, नाइजीरिया

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विज्ञान वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप की पड़ताल
लड़कियां लड़कों सी नहीं होतीं

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प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव के साथ अंतरजाल पर हिंदी के बढ़ते कदम

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साहित्य समाचार में
असगर वजाहत एवं गोविंद शर्मा को
कथा यू.के. सम्मान 2006

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

     

 

 
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