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16. 5. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह—
भारत से ममता कालिया के
धारावाहिक उपन्यास दौड़ की पहली किस्त
वह अपने ऑफ़िस में घुसा। शायद इस वक्त लोड शेडिंग शुरू हो गई थी। मुख्य हॉल में आपातकालीन ट्यूब लाइट जल रही थी। वह उसके सहारे अपने केबिन तक आया। अँधेरे में मेज़ पर रखे कंप्यूटर की एक बौड़म सिलुएट बन रही थी। फ़ोन, इंटरकॉम सब निष्प्राण लग रहे थे। ऐसा लग रहा था संपूर्ण सृष्टि निश्चेष्ट पड़ी है। बिजली के रहते यह छोटा-सा कक्ष उसका साम्राज्य होता है। थोड़ी देर में आँख अँधेरे की अभ्यस्त हुई तो मेज़ पर पड़ा माउस भी नज़र आया। वह भी अचल था। पवन को हँसी आ गई, नाम है चूहा पर कोई चपलता नहीं। बिजली के बिना प्लास्टिक का नन्हा-सा खिलौना है बस। ''बोलो चूहे कुछ तो करो, चूँ चूँ ही सही,'' उसने कहा। चूहा फिर बेजान पड़ा रहा।

*

हास्य-व्यंग्य में
राजेन्द्र त्यागी के साथ संसद में बंदर
संसद के अंदर बंदरों का जमघट देखा तो सवालों की श्रृंखला के साथ हमारे अंदर का पत्रकार जागा। हमने उनका साक्षात्कार करने की ठानी और अपनी ठान कंधे पर लाद संसद का दरवाज़ा जा खटखटाया। मुख्य द्वार से ही इक्का-दुक्का बंदरों से भेंट होनी शुरू हो गई। महानुभावों की श्रद्धा के साथ केलों का कलेवा कराते-कराते हम महात्मा गांधी की प्रतिमा के नज़दीक पहुँचे। प्रतिमा के तले ही महानुभावों का दरबार लगा था। नमन किया और केलों का शेष स्टॉक उनके सामने यों खोल कर रख दिया ज्यों प्रियतमा के सामने प्रेमी का आत्मसमर्पण।

*

ललित निबंध में
डॉ. शोभाकांत झा का आलेख अपवित्रो पवित्रो वा

पिताजी नित्य पूजन प्रारंभ करने से पूर्व इस मंत्र को पढ़कर 'विष्णुर्विष्णुर्हरि हरिः'  कहते व जल छिड़कते हुए देह, पूजन द्रव्य एवं भू शुद्धि करते थे। आज स्वयं नित्य-पूजन अनुष्ठान करने के पूर्व उक्त श्लोक का उच्चारण करता हूँ – टेप की तरह और शुद्धता का कर्मकांड पूर्ण कर लेता हूँ – सोचविहीन क्रिया की तरह। इस क्रिया के द्वारा बाहर भीतर से कितना पवित्र हो पाता हूँ, वह तो हरि जाने, परंतु अब जबकि सोचने की उम्र को जी रहा हूँ तब कभी-कभार बाबा तुलसी से बतियाते और भागवत के आँगन में रमते हुए लगता है कि सच में हरि का स्मरण पूजन पूर्व विधान ही नहीं, विश्वास भी है। भाव-कुभाव से सोच-असोच से जैसे तैसे प्रभु का स्मरण आत्म अभिषेक है। मल धुले वा न धुले, मंगल का आमंत्रण है।

*

आज सिरहाने श्रीप्रकाश शुक्ल का
कविता संग्रह जहाँ सब शहर नहीं होता

श्रीप्रकाश शुक्ल आसपास की बनती-बिगड़ती दुनिया से बेहद ख़बरदार युवा कवि है। उनकी कविता प्रतिरोध और करुणा की ताक़त से लैस है। श्रीप्रकाश की कविता कहीं से भी शुरू हो सकती है और परिचित दृश्य के ह्रदय से कभी भी अदृश्य दिखना प्रारंभ हो सकता है। छोटे शहरों की सामाजिकता पर केंद्रित कई कविताएँ उन्होंने लिखी हैं। ऐसी बहुत सारी विशेषताओं के साथ उनका कविता संग्रह 'जहाँ सब शहर नहीं होता' प्रकाशित हुआ है। संग्रह प्रमाणित करता है कि श्रीप्रकाश अपने समय की उन सीमाओं से परिचित हैं जिन पर बरसों बहस तो की जा सकती है मगर जिनको दुरुस्त करना असंभव है।

*

संस्मरण में
मोहन थपलियाल की
कटोरा भर याद में डूबी टिहरी
बचपन की धुँधली यादों में टिहरी मेरे दिमाग़ में तब से उभरता है, जब पाँच वर्ष का होने पर पीले कपड़ों में मेरा मुंडन कराया जा रहा था। हमारा घर, जहाँ मैं पैदा हुआ था, दयाराबाग में था, यानी भिलंगना नदी के दाहिने किनारे, मदननेगी-प्रतापनगर जाने वाली सड़क के पहले पड़ाव पर। नीचे कंडल गाँव था, जहाँ की सिंचित ज़मीन बहुत उपजाऊ मानी जाती थी। टिहरी के घंटाघर की तरफ़ से चलें तो भादू की मगरी तक सीधा रास्ता था। फिर भिलंगना की घाटी में नीचे उतरना पड़ता था, जहाँ एक पुल था और फिर पुल के पार दयाराबाग का किनारा छूते हुए खड़ी चढ़ाई पर यह सड़क प्रतापनगर तक जाती थी।

सप्ताह का विचार
किताबें समय के महासागर में जलदीप की तरह रास्ता दिखाती हैं। - अज्ञात

 

वीरेन्द्र जैन, प्रेम शंकर रघुवंशी, शरद तैलंग, महेंद्र भटनागर
और
किशोर सर्राफ़ की
नई रचनाएँ

मित्रों,  अभिव्यक्ति का 16 जून का अंक अमलतास विशेषांक होगा। इस अवसर पर अमलतास से संबंधित कहानी, व्यंग्य, नाटक, निबंध तथा अन्य विधाओं में रचनाएँ आमंत्रित हैं। रचना हमारे पास 1 जून तक अवश्य पहुँच जानी चाहिए। --टीम अनुभूति

-पिछले अंकों से-
कहानियों में
मुलाक़ात-शिबन कृष्ण रैणा
थोड़ा आसमान ...-रवींद्रनाथ भारतीय
क्या हम दोस्त...-उमेश अग्निहोत्री
संक्रमण-कामतानाथ
फ्रैक्चर- डॉ० मधु संधु
चश्मदीद- एस आर हरनोट
*

हास्य व्यंग्य में
अपुन का ताज़ा एजेंडा!-गुरमीत बेदी
सारा डेटा पा जाएगा बेटा-अशोक चक्रधर
मैच फ़िक्सिंग के...-अविनाश वाचस्पति
पेन मांगने में... -दीपक राज कुकरेजा
*

संस्कृति में
वैद्य अनुराग विजयवर्गीय के शब्दों में
दूब तेरी महिमा न्यारी
*

फुलवारी में
मौसम की कहानी का अगला भाग

कोहरा क्यों होता हैं?
*

रसोईघर में
माइक्रोवेव-अवन में पक रही है
गोभी की सूखी सब्ज़ी
*

महानगर की कहानियों में
मधु संधु की लघुकथा
थैंक्यू
*

रचना प्रसंग में
महेश अनघ समझा रहे हैं
नवगीत का वस्तु विन्यास

*

साहित्यिक निबंध में
डॉ. ऋषभदेव शर्मा का आलेख
भूमंडलीकरण की चुनौतियाँ : संचार माध्यम और हिंदी का संदर्भ

*

प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव का प्रश्न
आप क्या कर रहे हैं?
*

साहित्य समाचार में
*मॉस्को में हिंदी महोत्सव
*'रंग तरंग और हास्य व्यंग्य - सीधे प्रसारण के संग' तथा
*
कवि अभिनव डाट कॉम' का विमोचन
*

संस्कृति में
अशोक श्री श्रीमाल का आलेख

शब्दकोश का जन्

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

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