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1. 9. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर-
उपन्यास अंश में भारत से
नरेंद्र कोहली के उपन्यास ''वसुदेव'' का अंश कृष्ण आ गया है
देवकी चौंक कर उठ बैठीं। वसुदेव अपनी नींद पूरी कर चुके थे, किंतु अभी लेटे ही हुए थे। उन्हें देवकी का इस प्रकार चिहुँक कर उठ बैठना कुछ विचित्र-सा लगा।
''क्या हुआ?''
''कृष्ण कहाँ गया?''
वसुदेव ने अपनी आँखें पूरी तरह विस्फारित कीं, ''कृष्ण? कृष्ण हमारे पास था ही कब?''
''वह यहीं तो था मेरे पास...।'' और वे रुक गईं, ''तो मैंने स्वप्न देखा था क्या?''
''क्या देखा था?'' वसुदेव ने पूछा।
''पर नहीं! वह सपना नहीं हो सकता।'' देवकी ने कहा, ''वह यहीं था, मेरे पास।

*

हास्य-व्यंग्य में
गुरमीत बेदी का रहस्य मेरे पास भी है एक सीडी
एक सीडी मेरे पास भी है। इस सीडी को मैंने बहुत सँभाल कर रखा है। इतना सँभाल कर तो मैंने अपनी शादी से पहले के प्रेम पत्र भी नहीं रखे, जितना इस सीडी को रखा है। गाहे-बेगाहे मैं यह चेक करता रहता हूँ कि सीडी मेरी गिरफ़्त में ही है न! कहीं विरोधियों के हाथ तो नहीं लग गई? मुझे विरोधियों के षडयंत्रों से बहुत डर लगता है। क्या पता, कौन-सा विरोधी कब यह ख़बर लीक कर दे कि मेरे पास भी एक सीडी है। आजकल चुनाव आयोग वैसे भी सीडियों के मामले पर बड़ी पैनी नज़र रखे है। बीवी की नज़र से बचना आसान हो सकता है लेकिन चुनाव आयोग की नज़र से बचना बहुत मुश्किल है।

*

धारावाहिक में अशोक चक्रधर के विदेश यात्रा संस्मरण
अमरीका में कविता का चस्का लगाया काका ने

सन चौरासी, मार्च महीने में मेरे घर के जीने पर रेलिंग पकड़ कर चढ़ते हुए काका बोले, 'लल्ला हमारे साथ चलो अमरीका। अशोक गर्ग ने वहाँ कुछ अच्छी पारिवारिक गोष्ठियों का जुगाड़ जमाया है। महीने भर मज़े करेंगे!' मेरे एक हाथ में उनका बैग और दूसरे में होल्डॉल था। दोनों सामानों को सीढ़ी पर टिकाते हुए और प्रसन्नता में आँखें चौड़ाते हुए मैंने कहा, 'वैरी गुड!' उनके इस प्रस्ताव से उत्पन्न प्रसन्नता खुलकर अंगड़ाई भी न ले पाई थी कि एक विचार ने मुझे सन्न कर दिया। विचार यह था कि अगर मैं काका जी के साथ जाता हूँ तो बेचारे वीरेंद्र तरुण जी का क्या होगा? डॉ. वीरेंद्र तरुण देश भर के कविसम्मेलनों में उनके साथ जाया करते थे।

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नगरनामा में
नीरज त्रिपाठी की कलम से बिरियानी की ख़ुशबू में डूबा हैदराबाद
डरता हूँ कि कभी ऐसा न हो कि कोई आंध्र प्रदेश की राजधानी पूछे और मेरे मुँह से अनायास ही निकल जाए बिरियानी। अब बिरियानी होती ही इतनी स्वादिष्ट है कि क्या कहें, जहाँ सुना बिरियानी, मुँह में आया पानी। अब अगर मेरा ये लेख पढ़कर आपको बिरियानी की खुशबू न आए तो ये मेरे लेखन का कच्चापन है बिरियानी के स्वाद का नहीं। हैदराबाद में रहते-रहते कई बार मैंने महसूस किया कि मुझे इस शहर से प्यार हो गया है। एक बेहद साफ़-सुथरा शहर जो तकनीक के क्षेत्र में नई ऊँचाइयों को छू रहा है और साथ ही अपनी शाही और निज़ामी पहचान को बचाए रखने में भी कामयाब रहा है।

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साहित्यिक निबंध में दिविक रमेश का आलेख
समकालीन साहित्य परिदृश्य - हिंदी कविता
हिंदी कविता के समकालीन परिदृश्य का हम दो दृष्टियों से अवलोकन कर सकते हैं। एक तो हिंदी कविता की गुणवत्ता या कहें दशा-दिशा की दृष्टि से और दूसरे उसके परिवेश की दृष्टि से। प्रारंभ में ही यह भी उल्लेखनीय है कि हिंदी कविता का संसार या क्षितिज बहुत फैलाव लिए हुए है। एक ओर देश की धरती पर हिंदी और हिंदीतर प्रदेशों में रची गई अथवा जा रही कविता है तो दूसरी ओर देश के बाहर प्रवासी और भारतवंशी कवियों के द्वारा संभव कविता है। रूप और शैलियों की दृष्टि से भी देखें तो हिंदी कविता को समृद्ध पाएँगे। यहाँ काव्य नाटक और लंबी कविताएँ भी हैं और ग़ज़ल, गीत और छंदबद्ध रचनाएँ भी खूब लिखी जा रही हैं।

 

मधु मोहिनी उपाध्याय
कुसुम सिन्हा, विपिन चौधरी, परमजीत ओबेरॉय,  घनश्याम आहूजा और कल्याण सिंह
की नई रचनाएँ

पिछले सप्ताह
24 अगस्त 2007 के अंक में
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समकालीन कहानियों में
भारत से एस आर हरनोट की कहानी
नदी ग़ायब है

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हास्य-व्यंग्य में
डॉ राम प्रकाश सक्सेना का
मौसम है फीलगुडयाना

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फ़िल्म इल्म में
रक्षाबंधन के अवसर पर
ममता सिंह की फ़िल्मी-पड़ताल
हिंदी फ़िल्मों में रक्षाबंधन

राखी का ज़िक्र करें तो सबसे पहले याद आती है फ़िल्‍म 'रेशम की डोरी'। सन 1974 में आई इस फ़िल्‍म के निर्देशक थे गुरुदत्त के भाई आत्‍माराम। धर्मेंद्र की बहन बनी अभिनेत्री कुमुद छुगानी गाती हैं- 'बहना ने भाई की कलाई पे प्‍यार बाँधा है, प्‍यार के दो तार से संसार बाँधा है, रेशम की डोरी से संसार बाँधा है'। ये गाना सुमन कल्‍याणपुर ने गाया था, शैलेंद्र ने लिखा था और संगीत था शंकर जयकिशन का।
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साहित्य समाचार में

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प्रेरक प्रसंग में
दीपिका जोशी की कलम से
दादी की मीठी चिज्जी

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अन्य पुराने अंक

सप्ताह का विचार
बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है और सभी वस्तुएँ पूर्ण अंधकार में हैं। -- अज्ञात

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

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