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पर्व पंचांग२७. १०. २००८

इस सप्ताह दीपावली विशेषांक में-
के. वि. नरेन्द्र की तेलुगु कहानी का
कोल्लूरि सोम शंकर द्वारा हिंदी रूपांतर झाड़ू
आधी रात, थका हुआ नगर, आधे सपने देखता सो रहा है - जैसे युद्ध विराम हो। शीत चुपचाप आक्रमण कर रही है। सड़क के लैंपपोस्ट के प्रकाश में जो बर्फ़ बरस रही है, दिखाई भी नहीं देती। पूरी सड़क खाली है। प्रश्न चिह्न की तरह झुकी कमर से जवाबों को छूकर उठाते झाडू... बिना माँ बाप की नन्हीं मुर्गियाँ दानों की तलाश में जब कच्ची ज़मीन पर झुकती हैं तब उनके फड़फड़ाते डैनों से आवाज़ के साथ जिस तरह धूल उठती है उसी तरह नगर के कूड़े को झाड़ते झुके हुए ये लगभग तीस लोग हैं। सुजाता को इस काम की आदत नहीं है। ज़ोर से साँस लेती है, एक बार झुकती है और फिर सीधी खड़ी होकर अंगड़ाई लेती है। उस की उम्र लगभग बीस साल होगी। दसवीं पास सुजाता को काम दिलाने के लिए जब उसका मर्द यहाँ लाया तब उसे क्या पता था कि काम क्या है। पहले दिन जब उसने कहा कि उसे सड़क पर झाडू लगाने का काम नहीं करना है तो उसका मर्द नरसिंह बहुत नाराज़ होकर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा था, झाडू लगाना भी नहीं आता तो कैसी औरत हो?

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अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य
तेरस की तहस-नहस और दिवाली का दिवाला

लोक-जीवन में हर्षनंदिनी भाटिया का आलेख
ब्रज के लोकगीतों में गोवर्द्धन-पूजा

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कलादीर्घा में
दीपावली विभिन्न कलाकारों की तूलिका से

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साहित्य समाचारों में
मेरठ, दिल्ली, बाँदा, हैदराबाद, चंडीगढ़, नॉर्वे और शिमला से नए समाचार

पिछले सप्ताह
हास्य व्यंग्य में राजेन्द्र त्यागी ले कर आए हैं
साक्षात्कार लक्ष्मीजी का

कथा महोत्सव- २००८
अंतिम तिथि १५ नवंबर २००८

संस्कृति में डॉ. हरिराम आचार्य का आलेख
प्रथम पूज्य गणपति गणनायक

पर्व परिचय में डॉ. विवेकानंद शर्मा से सुने
दीपावली से संबंधित कथाएँ

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विविध रचनाओं से सुसज्जित
दीपावली विशेषांक समग्र

समकालीन कहानियों में भारत से
सूर्यबाला की कहानी अनार खिलखिला उठा
जगमगाती दुनिया के पार अंधेरी-सी झोंपड़ी के सामने सुनहरे, हरे और सफ़ेद बूटों वाला छोटा-सा अनार छूट रहा था और उसमें घुली थीं दो मुक्त, मगन खिलखिलाहटें। पर्व वेला पर रोशनी की कतारें अभी उतरी नहीं हैं। जब उतरेंगी तो सागरतट की पंद्रहवीं मंज़िल पर मेरा फ्लैट कंदील-सा झिलमिला उठेगा। रंग-रोगन, झाड़-पोंछ, सिल्वो, ब्रासो से चमचमाती पीतल, चाँदी और कांसे की नायाब नक्काशियाँ। धूप-दीप, नैवेद्य और फूल, गजरे। दीप पर्व पर लक्ष्मी की पूजा का विशेष विधि-विधान। इसीलिए शाम को फिर से नहाई और बाथरूम से निकल कॉलोन, लैवंडर छिड़के लहराते गीले बालों के लच्छे झटक दिए हैं। कमरे में खुशबू का सोता-सा फूट पड़ा है। तब बालों को बड़े प्यार से समेट, धुले कुरकुरे तौलिए से सहला-सहलाकर पोंछती हुई मैं उसकी ओर पलटती हूँ। वह उसी तरह समूचे माहौल की मोहकता में सराबोर हकीबकी-सी खड़ी है। चारों ओर बिखरी हुई रोशनी और चकाचौंध में चौंधियाई-सी, जैसे इस लोक में नहीं, किसी अपार कौतुक-भरे, अतींद्रिय लोक में खड़ी हो।

अनुभूति में-
दीपावली की ज्योति से जगमग, ज्योतिपर्व का उल्लास बिखेरती नई
दीपावली रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ-
दीप जीवन का प्रतीक है, प्रकाश का प्रतीक है- प्रकाश जो अदम्य साहस के साथ विशाल अंधकार के विरुद्ध तिल तिल निरंतर श्रम से साध्य होता है। ऐसा प्रकाश स्वयं को ही प्रकाशित नहीं करता विश्व में भी ज्योति और कर्मठता के प्राण फूँकता है। इस प्रकार दीप निस्वार्थ साधना का भी प्रतीक है- ऐसी साधना जो जग का मग जगमग करे और जब जग जगमग हो तो मन में अंधेरा कैसे रह सकता है? वही सच्चा पल होता है पर्व का, दीप-पर्व दीपावली का। इसीलिए प्रार्थना की गई है- दीप ज्योति नमस्तुते... हम सब कर्मठ दीप बनें इसी सुमंगल कामना के साथ- पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)

इस सप्ताह विकिपीडिया पर
विशेष लेख- शैलेश मटियानी

क्या आप जानते हैं? कि रेफ्लीसिया का फूल वनस्पति जगत के सभी पौंधों के फूलों से बड़ा है जिसका वजन ७ किलोग्राम तक हो सकता है।

सप्ताह का विचार
लक्ष्मी उसी के लिए वरदान बनकर आती है जो उसे दूसरों के लिए वरदान बनाता है। -सुदर्शन

हास परिहास

सप्ताह का कार्टून- कलाकार- कीर्तीश भट्ट

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

   

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