अभिव्यक्ति-चिट्ठा
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१६. ५. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
शीलेन्द्र सिंह चौहान, प्रवीण पंडित, नियति वर्मा, कुमार रवीन्द्र और सुभाष चौधरी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

मसालों का महाकाव्य- देश-विदेश में लोकप्रिय चटपटे मिश्रणों के बारे में प्रमाणिक जानकारी दे रहे हैं शेफ प्रफुल्ल श्रीवास्तव। इस अंक में- आलियोली

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का २०वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- मधुमेह के लिये आँवला और करेला

अभिव्यक्ति का २० जून का अंक टेसू या पलाश विशेषांक होगा। इस अंक के लिये हर विधा में गद्य रचनाओं का स्वागत है। रचनाएँ हमें १० जून से पहले मिल जानी चाहिये। पता इसी पृष्ठ पर ऊपर है।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- अपने कंप्यूटर पर फाइलों (डॉक्यूमेंट) को गोपनीय रखने के लिए हम दो प्रकार के कूटशब्द का प्रयोग कर सकते हैं-

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- १६ के लिये नवगीत का विषय है टेसू या पलाश। रचना भेजने की अंतिम तिथि २० मई है।

वर्ग पहेली-०२९
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- के साहित्य सत्र में पिछले कुछ दिनों से इसमें हाइकु कार्यशालाएँ चलती रही हैं।... इस बार यहीं से काम आगे बढ़ा। आगे पढ़ें...

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य और संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में यू.एस.ए से
उमेश अग्निहोत्री की कहानी- बनियान

‘पिछले जन्म में जो आपके दुश्मन होते हैं, वे आपकी औलाद बन कर पैदा होते हैं।‘
न जाने पापा जी से यह बात किसने कही थी, लेकिन यह बात उन्हें इतनी पसंद आयी थी कि अगले-पिछले जन्मों में यकीन न होने के बावजूद उनके दिमाग में रह गई थी, और उस वक्त तो खासतौर पर याद हो आती थी जब वह अपने बेटे को बनियान उलटी पहने देखते।
तब वह उन्नीस-बीस साल का रहा होगा। उन्होंने उसे एक बार टोका था - तूने बनियान उलटी पहन रखी है। वह दिन और आज का दिन, वह तीस का हो चला था उसने फिर कभी बनियान सीधी पहन कर नहीं दी थी। पापा जी ने कहा – तू बनियान उलटी पहनता है, यह जताने के लिये कि मेरी बात की परवाह नहीं है। बेटा कुछ नहीं बोला। वह अक्सर पापा जी के सामने नहीं बोलता था। उसकी कोशिश रहती थी कि उनके सामने न ही पड़े। पूरी कहानी पढ़ें...

*

प्रवीण शर्मा की लघुकथा
राजनीतिक बाप
*

दिविक शर्मा का आलेख
२१वीं सदी का बाल-साहित्य: विभिन्न भाषाओं से अनुवाद के संदर्भ मे

*

डॉ राजेन्द्र गौतम की कलम से
नवगीत और जातीय अस्मिता
*

पुनर्पाठ में कृपाशंकर तिवारी के विचार
मुसीबत बनता प्लास्टिक कचरा

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पिछले सप्ताह-

1
यशवंत कोठारी का व्यंग्य
मेरी असफलताएँ
*

भरत चंद्र मिश्र का आलेख- हिन्दी कविता में
चमत्कार काव्य के एकमात्र कवि- ह्रषीकेश चतुर्वेदी

*

कुसुम खेमानी का सरस यात्रा विवरण
आसमान से झरा समुद्र में तिरा एक भारत और
*

पुनर्पाठ में डॉ. गुरुदयाल प्रदीप का आलेख
जैव-ईंधन : ऊर्जा के नये वैकल्पिक स्रोत

*

समकालीन कहानियों में भारत से
पावन की कहानी- दो तस्वीरें दो कहानियाँ

अरे! हैलो!
कब तक ताकते रहोगे? अब बस भी करो। अधिक मत सोचो, मुझे कहने दो।
यह मेरा ही फोटो है। मैं, अवनिका, उम्र छब्बीस साल, रिहाइश दिल्ली। इस फोटो में मैं जहाँ हूँ वहीं से
शुरू करती हूँ-  कुछ चीजों पर किसी का बस नहीं होता, शायद ईश्वर का भी नहीं। वे होने के लिए बनी होती हैं, होना ही उनकी नियति होती है। हम सिर्फ बाध्य होते हैं उसे होते देखते रहने के लिए। मेरे साथ क्या हुआ? यही तो। मेरे वश में कभी भी कुछ नहीं रहा। मेरे साथ जो घटता रहा, मैं मूक उसे देखती रही और आज भी देख रही हूँ। इस सबके पीछे कारण तो कई हो सकते हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण है खुद को किस्मत के सहारे छोड़ देना और ठोस विश्वास करना कि यही मेरी किस्मत में लिखा है। पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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