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पुरालेख तिथि-अनुसार। पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक लेखकों से
अभिव्यक्ति हिंदी पुरस्कार- २०१२ //  तुक कोश  //  शब्दकोश //  पता-


२. ४. २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में- योगेन्द्र वर्मा व्योम, भगवत शरण अग्रवाल, कुमार अनिल, सुशीला शिवराण,  की रचनाओं के साथ संकलित क्षणिकाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- दाल हम रोज खाते हैं, पर कुछ नया हो तो क्या कहने? प्रस्तुत है १२ व्यंजनों की स्वादिष्ट शृंखला में- मसूर तड़के वाली

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु- किताबों में रुचि

बागबानी में- टी बैग प्रयोग के बाद प्रयोग किये गए टी बैग पौधों में नमी बनाए रखने का अच्छा साधन हैं। ...

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ अप्रैल से १६ अप्रैल २०१२ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२१ में हरसिंगार के फूल पर आधारित नवगीतों का प्रकाशन निरंतर जारी है। रचनाएँ अभी भी भेजी जा सकती हैं। 

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है- १ फरवरी २००४  को प्रकाशित, यू.एस.ए. से अमरेन्द्र कुमार की कहानी— चिड़िया

वर्ग पहेली-०७५
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में सूरीनाम से भावना सक्सेना
की कहानी- एक उधार बाकी है

पाँच बजते ही सुजीत सौम्या को दफ्तर से लेने आ जाते हैं, इस छोटे से शहर में सार्वजनिक यातायात सुविधाएँ अच्छी नहीं हैं। कुछ छोटी बसें नियत समय पर चलती हैं लेकिन पके ताँबे से रंग के और कईं तो एकदम रात्रि के अंधकार जैसे बड़े डील डौल वाले क्रिओल लोगों के साथ सफर करने के विचार से ही घबराहट होती हैं, तो सौम्या के लिए दो ही रास्ते बचते हैं- या तो पति का इंतज़ार करो या ग्यारह नंबर की बस पकड़ कर निकल चलो। यूँ घर बहुत दूर भी नहीं हैं लेकिन इस देश में पैदल चलने का रिवाज ही नहीं हैं। एक-आध बार निकली भी तो कोई न कोई परिचित रास्ते में टकरा गया और घर तक छोड़ गया, या फिर प्रश्नवाचक नज़रों से बचती घर आ भी गयी तो लगता था सुजीत नाराज हो गए, सो बहुत दिन से पैदल चलने का विचार ही त्याग दिया था। आज कुछ तो मौसम खुशगवार था और कुछ अंदर की बेचैनी, दफ्तर की फाइलें और जीवन के उतार चढ़ाव अति में हो जाने पर उसे कई बार ताज़ी हवा की... विस्तार से पढ़ें...
*

आशा मोर की लघुकथा
मातृभक्ति का दूसरा पहलू
*

प्रभु जोशी का संस्मरण-
अनंत काल तक बचे रहें गायक

*

पेतैर शागि का साहित्यिक निबंध
मोहन राकेश की कहानियों के महिला पात्र
*

पुनर्पाठ में अजय ब्रह्मात्मज का आलेख
फिल्मी संसार की वे प्रसिद्ध महिलाएँ

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पिछले सप्ताह-


डॉ. गौतम सचदेव का व्यंग्य
भारतीय भ्रष्ट संघ का भारत बंद
*

फुलवारी में पहली अप्रैल के अवसर पर
शीला इंद्र की बालकथा- पत्थर ही पत्थर

*

रंगमंच में वंदना शुक्ल की प्रस्तुति
नाटक - क्रमिक विकास, प्रयोग और प्रयोजन

*

पुनर्पाठ में कलादीर्घा के अंतर्गत
चित्रकार बी प्रभा के विषय में
*

समकालीन कहानियों में यू.के. से अचला शर्मा की
कहानी- दिल में एक कसबा है

“हलो मिसेज़ जी!” प्रभा को यह संबोधन ज़हर जैसा लगता है।
कैंटिश टाऊन के एक घर के नीचे तल्ले के फ़्लैट की घंटी बजाकर पिछले दो मिनट से वह उसके खुलने का इंतज़ार कर रही थी। ये दो मिनट बीस मिनट जैसे लगे। हाथ के बैग प्रभा ने ज़मीन पर रख दिए थे। प्लास्टिक के बैग उठाए उठाए हथेलियों में लकीरें उभर आईं थीं। एक बैग में खाने के डिब्बे हैं और दूसरे में उसके रात के कपड़े। पहली बार इस बात पर खीज हुई कि क्यों नहीं कार से आई। कार से आती तो यह झोले उठाकर अंडरग्राउंड स्टेशन से यहाँ तक का सफ़र इतना मुश्किल ना होता। आमतौर पर यहाँ के होमलैस लोग इस तरह प्लास्टिक के झोलों में अपनी गृहस्थी उठाए घूमते हैं। लेकिन प्रभा जब घर से निकली थी तो महसूस हुआ था पैरों में जैसे कार के पहिए लग गए हैं। तय किया था कि आज पैदल ही चलेगी। कई दिनों से चलना फिरना कम हुआ है। विस्तार से पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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