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३०. १२. २०१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में- नये साल की अगवानी में अनेक रचनाकारों की विविध विधाओं में रची संवेदनशील कविताओं का आकर्षक गुलदस्ता।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- नव वर्ष के अवसर में विशेष स्वाद भरने के लिये- चॉकलेट कप केक

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- सेट से बिछड़े हुए बर्तनों से शृंगार मेज का शृंगार

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- सांता के उपहार

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- नई कार्यशाला- ३१ के विषय- नव वर्ष के स्वागत पर रचनाओं का प्रकाशन शुरू हो गया है। टिप्पणी के लिये देखें- विस्तार से...

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- इस सप्ताह प्रस्तुत है १६ जनवरी २००५ को प्रकाशित संतोष गोयल की कहानी— 'कोना झरी केतली'।  

वर्ग पहेली-१६६
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों के अंतर्गत भारत से गोवर्धन यादव की कहानी एक मुलाकात

दिसंबर का अंतिम सप्ताह चल रहा है। चार दिन की केजुअल बाकी है। यदि जेब में मनीराम होते तो मजा आ जाता। दोस्तों की ओर से भी तरह-तरह के प्रस्ताव मिल रहे थे। परंतु सभी को कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देता हूँ, बिना पैसों के किया भी क्या जा सकता था। अत: आफिस से चिपके रहकर समय पास करना ही श्रेयस्कर लगा। ३१ दिसम्बर का दिन, पहाड़ जैसा कट तो गया पर शाम एवं रात्रि कैसे कटेगी यह सोचकर दिल घबराने-सा लगा। उडने को घायल पंछी जैसी मेरी हालत हो रही थी। अनमना जानकर पत्नी ने कुछ पूछने की हिम्मत की, पर ठीक नहीं लग रहा है, कहकर मैं उसे टाल गया। खाना खाने बैठा तो खाया नहीं गया। थाली सरका कर हाथ धोया। मुँह में सुपारी का कतरा डाला। थोड़ा घूम कर आता हूँ, कहकर घर के बाहर निकल गया। ठंड अपने शबाब पर थी। दोनों हाथ पतलून की जेब में कुनकुना कर रहे थे। तभी उँगलियों के पोर से कुछ सिक्के टकराए। अंदर ही अंदर उन्हें गिनने का प्रयास करता हूँ एक सिक्का और दो चवन्नियाँ भर जेब में पड़ी थीं। आगे-

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रघुविन्द्र यादव की लघुकथा
न्यू इयर पार्टी
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राहुल देव का आलेख
समकालीन कहानियों में नया साल
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पर्वों की जानकारी के लिये
पर्व पंचांग - २०१४
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पुनर्पाठ में-गृहलक्ष्मी की कलम से
बधाई हो बधाई

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पिछले सप्ताह-

1
कृष्णनंदन मौर्य का व्यंग्य
बुरे फँसे कवि बनकर
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प्राण चड्ढा से जानें
संस्कृति के वाहक गाँव के हाट बाजार
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मनीष मोहन गोरे का आलेख
जीव जन्तु की अनोखी दुनिया
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पुनर्पाठ में-तेजेन्द्र शर्मा की कलम से-
ब्रिटेन में हिंदी रेडियो के पहले महानायक रवि शर्

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समकालीन कहानियों के अंतर्गत नार्वे से
शरद आलोक की कहानी आदर्श एक ढिंढोरा

क्रिसमस के दिन थे। परसों २५ दिसम्बर है। बाजार में बहुत चहल-पहल थी। छोटी-बड़ी सभी दुकानें बन्दनवारों से सजी थीं। आंस्लो नगर का खूबसूरत बाजार कार्ल यूहान्स गाता ऐसे सजा था, जैसे बारावफात का पुराने लखनऊ से अमीनाबाद तक सजा रहता है। दुकानों की खिड़कियाँ जन्माष्टमी की तरह सजी थीं। पूरे वर्ष का कौतूहल मानो इस सप्ताह ही भर गया हो। जगह-जगह पर पीतल और काँसे के उपहार बेचते प्रवासी लोग आसानी से देखे जा सकते थे। सम्पूर्ण स्कैंडिनेविया बर्फ गिरने से उज्जवल होने लगा था। बहुत सर्दी थी। फिर भी चारों ओर गरमा-गरम चहलकदमी थी। यदि क्रिसमस में बर्फ न गिरे तो मानो अशुभ क्रिसमस है। क्रिसमस के साथ जुड़ी लम्बी छुट्टियों का आभास। एक नयी स्फूर्ति, एक नयी उत्सुकता। पूरे स्कैंडिनेविया (नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क) में शायद ही कोई ऐसा हो जिसे क्रिसमस के बाद एक सप्ताह की लम्बी छुट्टियों का क्रम विचारक्रम में घूमता। आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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