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 २०. ७. २०१५

इस सप्ताह-

अनुभूति में-1
मालिनी गौतम, कल्पना रामानी, अश्विनी कुमार विष्णु, सुधीर विद्यार्थी तथा प्रदीप कुमार की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक शुचि लेकर आई हैं शर्बतों की शृंखला में- अनार का शर्बत

बागबानी में- आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं- २४- बगीचे में पक्षी।

कला और कलाकार- निशांत द्वारा भारतीय चित्रकारों से परिचय के क्रम में के.के. हेब्बार की कला और जीवन से परिचय।

सुंदर घर- घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- २४- बेज रंग का आकर्षण

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन- (२० जुलाई को)  विष्णु प्रभाकर, राजेन्द्र कुमार, अश्वघोष, नसीरुद्दीन शाह, देबाशीष मोहन्ती, ग्रेसी सिंह... विस्तार से

नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है- डॉ. जगदीश व्योम द्वारा राघवेन्द्र तिवारी के नवगीत संग्रह- जहाँ दरक कर गिरा समय भी का परिचय।

वर्ग पहेली- २४६
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में-

साहित्य संगम में प्रस्तुत है यूसुफ मेकवान की गुजराती कहानी का हिंदी रूपांतर-  परागी

अभी लंच करके लेटा ही था, तभी फोन बज उठा। रिसीवर उठाकर कान पर लगाते हुए मैंने पूछा, "हेलो, कौन?"
"नमस्ते पापा!" परागी की आवाज सुनते ही मैंने हँसकर कहा, "ओह परागी! कैसी हो तुम?"
"बस पापा! अवनीश और मैं अपने अपार्टमेंट की बालकनी में बैठे-बैठे ब्रेकफास्ट कर रहे हैं"। परागी ने कहा, "यहाँ ऑस्ट्रेलिया में सुबह है और आपके इंडिया में दोपहर।"
"ठीक कहा बेटा! खूब खुश लग रही है तू!"
"जी पापा! वातावरण ही खुशनुमा है, जैसे साबरमती अहमदाबाद के बीच से बहती है, बैसे ही यारा नदी यहाँ मेलबर्न के बीच से बहती है। बहुत ही सुंदर लगती है।"
फिर उसकी गंभीर सी आवाज आई, "आज आकाश में बादल...पापा, इन्हें देखकर मुझे अपना बचपन याद आ गया।"
"कैसे बेटा?"
"मैं और भाई मुनीर, जब हम छोटे थे, तब इसी तरह आकाश में बादलों में बनते-बदलते आकारों के बारे में आप बतलाया करते थे।" आगे-
*

सुशील यादव का व्यंग्य
चिंतन का दौर
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ओम प्रकाश सारस्वत का
ललित निबंध- बरगद बाबा

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पूर्णिमा पांडेय का आलेख-
ध्यान का अभ्यास
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पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
सागर के इस पार से उस पार से का चौथा भाग

पिछले सप्ताह-

राजेन्द्र परदेसी की
लघुकथा - जंगलीपन
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डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा का आलेख
हाइकु में वर्षा वर्णन

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प्रेमशंकर रघुवंशी का रचना प्रसंग
नवगीत और उसका उद्भव काल
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पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
सागर के इस पार से उस पार से का तीसरा भाग

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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
महेंद्र भीष्म की कहानी मेरी कहानी

विमान ने काहिरा एयर-पोर्ट से उड़ान भरी। कुछ समय बाद माइक्रोफोन पर विमान परिचारिका का मोहक स्वर गूँजा, "कृपया आप लोग अपनी कमर से सीट बेल्ट खोल लें।" यह एयर इंडिया का विमान था, जिसमें मैं अपनी मॉम के साथ मंट्रियाल से सवार हुआ था। मैं अपने बिजनेस के सिलसिले में अक्सर अमेरिका से यूरोप आता-जाता रहा हूँ। मेरी सदैव यह इच्छा रहती है कि मैं एयरइंडिया के विमान से ही यात्रा करूँ। पिछली अधिकांश यात्राएँ जो मैंने एयर इंडिया के विमानों से सम्पन्न की थीं, उन सभी उड़ानों पर मुझे जितनी खुशी हुआ करती थी, उनकी सम्मिलित खुशी से भी अधिक मुझे इस बार भारत के लिए की जा रही अपनी यात्रा से हो रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि मेरा जन्म-स्थान भारत है और मेरी रगों में गौरवशाली देश भारतवर्ष का खून प्रवाहित हो रहा है, परन्तु आज मैं एक अमेरिकी नागरिक की हैसियत से भारत जा रहा हूँ। मंट्रियाल नगर के सम्भ्रांत उद्योगपति स्वर्गीय चार्ल्स का दत्तक पुत्र विल्सन चार्ल्स हूँ मैं। आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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