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लेखकों से
 १. ७. २०१६

इस पखवारे-

अनुभूति-में-
शिवानंद सहयोगी, आर्य हरीश कोशलपुरी,  पृथ्वीपाल रैणा, मंजु मिश्रा और सरिता शर्मा की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- झटपट खाना शृंखला के अंतर्गत-हमारी-रसोई संपादक शुचि लाई हैं जल्दी से तैयार होने वाली पौष्टिक व्यंजन विधि- किंवा सलाद

फेंगशुई में- २४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर जीवन को सुखमय बना सकते हैं- १३- अच्छी नींद के लिये फेंगशुई

बागबानी- के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव- १३- बकोपा की मनभावन टोकरी।

सुंदर घर- शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- १३- कलाकृतियों का चुनाव

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन (१ जुलाई को)  चंद्रशेखर, हरिप्रसाद चौरसिया, सुषम बेदी, आदित्यराज कपूर का जन्म... विस्तार से

नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है- आचार्य संजीव सलिल की कलम से आनंद तिवारी के नवगीत संग्रह- दिन बड़े कसाले के का परिचय।

वर्ग पहेली- २७१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
सूर्यबाला की कहानी बहनों का जलसा

ट्रेन के प्लेटफार्म पर रुकते ही वे चारों एक दूसरे की कलाइयाँ पकड़े, अपनी अपनी कंडियाँ, थैले और बक्सियाँ सँभालतीं, डिब्बे की तरफ दौड़ चलीं।
चढ़ती, उतरती भीड़ के बीच भी वे एक दूसरी का हाथ कस कर पकड़े, सँभल कर चढ़ने की ताकीद करती जा रही थीं। ‘पहले तू...' ‘नहीं तू चढ़ पहले' की जल्दबाजी में, सबने मिल कर पहले ‘सबसे बड़ी' को चढ़ाया जबकि वह, अपने से पहले तीनों छोटियों को चढ़ाना चाह रही थी। यहाँ तक कि डिब्बे में चढ़ जाने के बाद भी वह लगातार बाकी तीनों के लिए ‘आ, आ जा छोटी...' मँझली चढ़ी?... ‘जल्दी कर सँझली... जैसे चिंताकुल जुमले बोले जा रही थी। तभी मँझली को याद आया - ‘अरे, गाड़ी अभी रुकेगी, मैं जरा दाल चिक्की और समोसे लेती आऊँ?
-‘चाँटा खायेगी... चुप बैठ, गाड़ी से नहीं उतरना है अब' - ‘बड़ी' ने अपनी दाहिनी दुबली हथेली से एक सुकुमार से चाँटे की शक्ल बना कर फिर उसे ‘खिलाने' की मुद्रा भी दिखाई... आगे-
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संकलित लघुकथा
परिणाम
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डॉ. स्वाती तिवारी का आलेख
दीपक शर्मा की कहानियों में नारी विमर्श
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चीन से गुणशेखर की डायरी
अब भारत में भी क्योटो और शंघाई
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पुनर्पाठ में हजारी प्रसाद द्विवेदी का
ललित निबंध- शिरीष के फूल

पिछले पखवारे- शिरीष विशेषांक के अंतर्गत

सरस्वती माथुर की लघुकथा
शिरीष खिल रहा है
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विद्युल्लता का ललित निबंध
ओ शिरीष, सुन रहे हो न ?
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डॉ क्षिप्रा शिल्पी की कलम से
शिरीष का वृक्ष और उसके गुण
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पूर्णिमा वर्मन का आलेख
डाक टिकटों में शिरीष की उपस्थिति

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वरिष्ठ रचनाकारों की चर्चित कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में गजानन माधव मुक्तिबोध की कहानी
पक्षी और दीमक

बाहर चिलचिलाती हुई दोपहर है लेकिन इस कमरे में ठंडा मद्धिम उजाला है। यह उजाला इस बंद खिड़की की दरारों से आता है। यह एक चौड़ी मुंडेर वाली बड़ी खिड़की है, जिसके बाहर की तरफ, दीवार से लग कर, काँटेदार बेंत की हरी-घनी झाड़ियाँ हैं। इनके ऊपर एक जंगली बेल चढ़ कर फैल गई है और उसने आसमानी रंग के गिलास जैसे अपने फूल प्रदर्शित कर रखे हैं। दूर से देखनेवालों को लगेगा कि वे उस बेल के फूल नहीं, वरन बेंत की झाड़ियों के अपने फूल हैं। किंतु इससे भी आश्‍चर्यजनक बात यह है कि उस लता ने अपनी घुमावदार चाल से न केवल बेंत की डालों को, उनके काँटों से बचते हुए, जकड़ रखा है, वरन उसके कंटक-रोमोंवाले पत्‍तों के एक-एक हरे फीते को समेट कर, कस कर, उनकी एक रस्‍सी-सी बना डाली है और उस पूरी झाड़ी पर अपने फूल बिखराते-छिटकाते हुए, उन सौंदर्य-प्रतीकों को...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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