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 १. ८. २०१८

इस माह-

अनुभूति में-
अशोक के पेड़ और फूल को समर्पित, विविध विधाओं में अनेक रचनाकारों के मनमोहक रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस माह वर्षा के मौसम को और मनोरंजक बनाते हुए, हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं - अरबी के कवाब

स्वास्थ्य में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के २७ उपाय- २३- व्यायाम पर हो ध्यान

बागबानी- वनस्पति एवं मनुष्य दोनो का गहरा संबंध है फिर ज्योतिष में ये दोनो अलग कैसे हो सकते हैं। जानें- ८- शोक से मुक्ति के लिये अशोक

भारत के विचित्र गाँव- जैसे विश्व में अन्यत्र नहीं हैं। इस बार चलते हैं - मैस्कुलीगंज, जिसे मिनी लंदन भी कहते हैं।

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (अगस्त) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- जगदीश पंकज की कलम से ब्रज किशोर वर्मा 'शैदी' के नवगीत संग्रह- ''मोरपंखी स्वर हमारे'' का परिचय।

वर्ग पहेली- ३०४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में-  अशोक विशेषांक

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
संतोष श्रीवास्तव की कहानी- फरिश्ता

मेलोडी जान-बूझकर कमलेश को यहाँ लाई थी। वैसे इच्छा तो कमलेश की भी थी इस माहौल से परिचित होने की। सुना खूब था लेकिन देखा अब। देखा और पाया कि उस जैसे व्यक्तित्व इस माहौल में अधिक देर नहीं रुक सकते।
'मेलोडी, घर चलें अब?' कमलेश ने उठना चाहा।

कल शाम एक डच हिप्पी नंगा घूमता पकड़ा गया और सिपाही ने जब उससे इस तरह घूमने की वजह पूछी तो बोला - 'हम क्या करें? ईश्वर ने हमें नंगा ही पैदा किया है।' सामने वाली मेज की भीड़ में बैठे एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने मेलोडी की तरफ घूमते हुए सबको बताया और सारी भीड़ ठहाका मार कर हँस पड़ी। मेलोडी ने अपना बेहद गंदा थैला मेज पर से उठा कर कंधे पर टाँग लिया। फिर उसमें हाथ डालकर कुछ ढूँढ़ने लगी। कमलेश की ऊब बढ़ती जा रही थी। शायद मेलोडी सिगरेट ढूँढ़ रही है। अगर यह सिगरेट सुलगा लेगी तो पंद्रह-बीस मिनिट फिर रुकना पड़ेगा क्योंकि मेलोडी सड़क पर चलते हुए कभी सिगरेट नहीं पीती। आगे-
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भावना सक्सैना की
लघुकथा- आशीर्वाद
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ऋता शेखर मधु की कलम से
पेड़ है अशोक का
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पूर्णिमा वर्मन का आलेख-
डाकटिकटों में अशोक का पेड़
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पुनर्पाठ में- हजारी प्रसाद द्विवेदी का
ललित निबंध- अशोक के फूल

पिछले अंक से-

सुदीप शुक्ल की लघुकथा
बाढ़ और मुसाफिर
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डॉ. मधु संधु की कलम से
प्रवासी कहानी में परामनोविज्ञान
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भावना तिवारी से रचना प्रसंग में-
नवगीत में महिला रचनाकारों का योगदान
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पुनर्पाठ में- उर्मिला शुक्ल का आलेख-
भक्तिकालीन काव्य में वर्षा ऋतु

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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
दीपक शर्मा की कहानी- चंपा का मोबाइल

“एवज़ी ले आयी हूँ, आंटी जी,” चम्पा को हमारे घर पर हमारी काम वाली, कमला, लायी थी।
गर्भावस्था के अपने उस चरण पर कमला के लिये झाड़ू-पोंछा सम्भालना मुश्किल हो रहा था। चम्पा का चेहरा मेक-अप से एकदम खाली था और अनचाही हताशा व व्यग्रता लिये था। उस की उम्र उन्नीस और बीस के बीच थी और काया एकदम दुबली-पतली। मैं हतोत्साहित हुई। अतिव्यस्तता के अपने इस जीवन में मुझे फ़ुरतीली, मेहनती व उत्साही काम वाली की ज़रुरत थी न कि ऐसी मरियल व बुझी हुई लड़की की!
“तुम्हारा काम सम्भाल लेगी?” मैं ने अपनी शंका प्रकट की।
“बिल्कुल, आंटी जी। खूब सम्भालेगी। आप परेशान न हों। सब निपटा लेगी। बड़ी होशियार है यह। सास-ससुर ने इसे घर नहीं पकड़ने दिए तो इस ने अपनी ही कोठरी में मुर्गियों और अंडों का धन्धा शुरू कर दिया। बताती है, उधर इस की माँ भी मुर्गियाँ पाले भी थी और अन्डे बेचती थी। उन्हें देखना... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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