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१. ३. २०२२

इस माह-

अनुभूति में-
होली के अवसर पर रंगों से सराबोर गीत कजल और दोहों में विभिन्न रचनाकारों की मनभावन रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ-

रंग भारत की पहचान हैं। मौसम, प्रकृति, भाषा, परिधान और भोजन सब कुछ रंगों से भरपूर है, फिर रंगों के त्यौहार का क्या कहना? ...आगे पढ़ें

घर-परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि अग्रवाल होली की दावत के लिये विशेष रूप से प्रस्तुत कर रही हैं- कश्मीरी दम आलू।

बागबानी में-बारह पौधे जो साल-भर फूलते हैं इस शृंखला के अंतर्गत इस माह प्रस्तुत है- सदाबहार की गुलाबी बहार।

स्वाद और स्वास्थ्य में- स्वादिष्ट किंतु स्वास्थ्य के लिये हानिकारक भोजनों की शृंखला में इस माह प्रस्तुत है- फलों के डिब्बाबंद रस के विषय में।

जानकारी और मनोरंजन में

गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं कि मार्च  के महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से 

वे पुराने धारावाहिक- जिन्हें लोग आज तक नहीं भूले और अभी भी बार-बार याद करते हैं इस शृंखला में जानें ये जो है जिंदगी के विषय में।

नवगीत संग्रहों, संकलनों, समीक्षा पुस्तकों से परिचय के स्तंभ में इस माह प्रस्तुत है- मनोज जैन मधुर का नवगीत संग्रह- धूप भरकर मुट्ठियों में

वर्ग पहेली-३४७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

हास परिहास में
पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य और संस्कृति- के अंतर्गत होली विशेषांक में

समकालीन कहानियों में इस सप्ताह प्रस्तुत है
कृष्णलता सिंह की कहानी छोटी सी शरारत

कनुप्रिया अभी दस दिन पहले इस अपार्टमेन्ट में आई थी। अभी उसका परिचय किसी से नहीं था। बस हरीश भाई ने फ्लैट का सारा काम करा दिया था। फ्लैट तैयार होते ही रहने आ गयी थी। नयी जगह में अपने को व्यवस्थित करने में वह इतनी व्यस्त हो गयी कि उसे होली का ध्यान ही नहीं रहा। वह तो कामवाली आया रामवती ने याद दिलाया- 'मैडम होली खेलने को कोई पुरानी सफेद साड़ी दो। आप तो सफेद पहनती हैं।'
हैरान होकर उसने पूछा- 'होली कब है?'
रामवती मन ही मन हँसी- 'कैसी मैडम हैं?’
फिर बड़ी उमंग से कहा- 'परसों है। 'साथ ही अल्टीमेटम देती हुई बोली- 'परसों छुट्टी लूँगी।'
आज होली थी। दूधवाले और कामवाली को आना नहीं था। देर तक बेफिक्र सोती रही। आँख खुली तो घड़ी साढ़े नौ बजा रही थी। मन में अपराध बोध लिये वह जल्दी जल्दी तैयार हो गयी। फिर सोचा उसे जाना कहाँ है? फिर इतनी हड़बड़ी और अपराधबोध क्यों? होली खेलना नहीं है। टीवी अभी लगा नहीं है। आगे...

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अरविन्द तिवारी का व्यंग्य
होली विशेषांक का अतिथि संपादक
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मधु संधु का शोध निबंध
प्रवासी महिला कथाकार और होली के रंग
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रेखा राजवंशी का संस्मरण
भांग वाली ठंडाई

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कंदर्प का ललित निबंध
फागुन लाग्यो जब से

 
कहानियों में-
bullet होली की गुझिया
- मीनू त्रिपाठी

व्यंग्य-

bullet

होली की हड़ताल
- पूरन सरमा

ललित निबंध-

bullet वसंत के केन्द्र में प्रेम की ज्योत्सना
- कल्पना मनोरमा
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साहित्यिक निबंध-

bullet रंगपाल जी के फाग गीत
- डॉ. राधेश्याम द्विवदी

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संग्रह और संकलन में पुस्तक परिचय-

bullet धूप भरकर मुट्ठियों में
- मनोज जैन मधुर

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह के पहले सप्ताह मे प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : रतन मूलचंदानी

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