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१. १०. २०२२

इस माह-

अनुभूति में-
दीपावली के अवसर पर विशेष रूप से तैयार किये गए फुलझड़ी विशेषांक में तीस से अधिक रचनाकारों की भावभीनी रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ-

दुबई में नये मंदिर का उद्घाटन इस माह एक सुखद घटना रही। दशहरे के दिन चार अक्टूबर को यूएई के सहिष्णुता मंत्री हिज हाइनेस शेख ...आगे पढ़ें

घर-परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि अग्रवाल प्रस्तुत कर रही हैं, मिठाइयों का अनमोल संग्रह- मिठाइयाँ ही मिठाइयाँ

बागबानी में-बारह पौधे जो साल-भर फूलते हैं इस शृंखला के अंतर्गत इस माह प्रस्तुत है- लैंटाना की देखभाल।

विज्ञानवार्ता में- दीपावली के अवसर पर हमारी टीम द्वारा संकलित विशिष्ट आलेख- पटाखे, प्रदूषण और सावधानी

जानकारी और मनोरंजन में

गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं कि अक्टूबर महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से 

दीपावली के अवसर पर विशेष रूप से फुलवारी में बच्चों के लिये सुधा भार्गव की मनमोहक कहानी- अनोखे दीपक

नवगीत संग्रहों और संकलनों से परिचय की शृंखला में- अविनाश ब्योहार का नवगीत संग्रह- कोयल करे मुनादी- आचार्य संजीव सलिल की कलम से।

वर्ग पहेली-३५४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

दीपावली विशेषांक में-

समकालीन कहानियों में इस माह प्रस्तुत है- भारत से भारत से कंदर्प की कहानी- वापस आओ रघुवीर

माँ आज बहुत रोई थी। माँ को रोते हुए किसी ने नही देखा लेकिन मुझे पता था कि माँ आज बहुत रोई थी। रोने के बाद माँ के दूध से भी उजले चेहरे पर जैसे सिंदूर मल जाता है। नाक और गाल सामान्य से अधिक लाल हो जाते है। पहले पापा अक्सर माँ को छेड़ते हुए कह देते थे, "अरे …क्या हुआ ...चेहरे की रंगत बढ़ गयी है!... रोई थी क्या सुखु?" लेकिन अब यह वाक्य सुनाई नही देता। बल्कि पिछले दो सालो से सुनाई नही दिया कि... रोइ थी क्या सुखु? दो साल बीत गए। दो साल पहले उस रात माँ ने अचानक झिंझोडकर हम दोनो भाइयो को उठा दिया था, मैं और रघु। "सुन….लगता है …तेरे पापा को अटैक आया है... हॉस्पिटल जा रही हूँ… ध्यान रखना।” माँ बोलते-बोलते ही घर से निकल गयी थी। पड़ोस के पांडे अंकल की कार की पिछली सीट पर टिका हुआ पापा का सर धीरे धीरे हमारी आँखों के सामने से गुजर गया था। वह रात मैने और रघु ने जाग कर ही काटी थी। उस रात घर अजीब सा डरावना लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे माँ की आँखों में उभरा हुआ डर पूरे घर की खिड़कियों और दरवाजे पर फैल सा गया है। माँ डरी हुई थी। वह डरी हुई थी अपने घोंसले के आस पास मँडराते हुए... आगे-
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रघुविन्द्र यादव का प्रेरक प्रसंग
उपकार का बदला
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परिचय दास का ललित निबंध
दीपावली ज्योति के बिंबों की लड़ी है
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अनिरुद्ध जोशी का आलेख
राम के वंशज जो आज भी जीवित हैं
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प्रेमपाल शर्मा से पर्व परिचय में जानें
पंच-महोत्सव और लक्ष्मी गणेश पूजन के विषय में

पिछले अंकों से-

गिरीश बिल्लोरे मुकुल की लघुकथा
शुभकामनाएँ - एक चिंतन


घर परिवार में अर्बुदा ओहरी के सुझाव
प्रकृति प्रेम के संग दीवाली


रमेश तिवारी 'विराम का ललित निबंध
ज्योतिपर्व की जय


कुमार रवींद्र का आलेख-
तुलसी के राम की मर्यादा और उनका राज्यादर्


शशि पाधा का संस्मरण-
एक नदी एक पुल


फुलवारी में बच्चों के लिये
आओ बनाएँ कागज की कंदील


घर परिवार में दीपावली उपहारों के
कलात्मक सुझाव-  ज्योतिर्मय उपहार

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यह पत्रिका प्रत्येक माह के पहले सप्ताह मे प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : रतन मूलचंदानी

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