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रेखा को लगा इस नाप तोल के पीछे ज़रूर स्टैला का हाथ होगा। उसका बेटा तो ऐसा हिसाबी कभी नहीं था। खुद यह जम कर बरबाद करने में यकीन करता था। एक बार नाश्ता बनता, दो बार बनता। पवन को पसंद न आता। शहजादे की तरह फरमा देता, ''आलू का टोस्ट नहीं खाएँगे, आमलेट बनाओ।'' अब आमलेट तैयार होता वह दाँत साफ़ करने बाथरूम में घुस जाता। देर लगा कर बाहर निकलता। फिर नाश्ता देखते ही भड़क जाता, ''यह अंडे की ठंडी लाश कोई खा सकता है? मालती पराठा बनाओ नहीं तो हम अभी जा रहे हैं बाहर।'' घर की पुरानी सेविका मालती में ही इतना धीरज था कि रेखा की गैरमौजूदगी में पवन के नखरे पूरे करे। कभी बिना किसी सूचना के तीन-तीन दोस्त साथ ले आता। सारा घर उनके आतिथ्य में जुट जाता।

पवन ने कहा, ''भारत मेरा लंच पैक मत करना, दुपहर में मैं घर आ जाऊँगा।'' फिर रेखा से कहा, ''माँ क्या करूँ, ऑफ़िस जाना ज़रूरी है, देखो कल की छुट्टी का जुगाड़ करता हूँ कुछ। तुम पीछे से टी.वी. देखना, सी.डी. सुन लेना। कोई दिक्कत हो तो मुझे फ़ोन कर लेना। सामने पटेल आँटी रहती है, कोई ज़रूरत हो तो उनसे बात कर लेना।'' तभी स्टैला फूलों का गुलदस्ता लिए आई।
''गुड मॉर्निंग मैम।'' उसने गुलदस्ता रेखा को दिया। उसमें छोटा-सा गिफ्ट कार्ड लगा था, ''स्टैला पवन की ओर से।''

फूलों की बजाय रेखा ध्यान से उस चिट को देखती रही। पवन ताड़ गया। उसने कहा, ''माँ यह हम दोनों की तरफ़ से है।'' उसने गिफ्ट कार्ड में पेन से स्टैला और पवन के बीच कॉमा लगा दिया।
रेखा को थोड़ी आश्वस्ति हुई। उसने देखा स्टैला की मुख मुद्रा थोड़ी बदली।
स्टैला ने अपना लंच बाक्स और ऑफ़िस बैग उठाया, ''बाय, सी यू इन द ईवनिंग मैम, टेक केयर।''
उसी के पीछे-पीछे पवन, अनुपम भी गाड़ी की चाभी लेकर निकल गए।
अकेले घर में बिस्तर पर पड़ी-पड़ी रेखा देर तक विचारमग्न रही। बीच में इच्छा हुई कि राकेश से बात करे पर एस.टी.डी. कोड डायल करने पर उधर से आवाज़ आई, ''यह सुविधा तमारे फ़ोन पर नथी छे।'' फ़ोन की एस.टी.डी. सुविधा पर इलेक्ट्रानिक ताला था। एक बार फिर रेखा को लगा इस घर पर स्टैला का नियंत्रण बहुत गहरा है।

रेखा के तीन दिन के प्रवास में स्टैला सुबह शाम कोई न कोई उपहार उसके लिए लेकर आती। एक शाम वह उसके लिए आभला(शीशे) की कढ़ाई की भव्य चादर लेकर आई। पवन ने कहा, ''जैसे पीर शाह पर चादर चढ़ाते हैं वैसे हम तुम्हें मनाने को चादर चढ़ा रहे हैं माँ।''
''पीर औलिया की मज़ार पर चादर चढ़ाते है, मुझे क्या मुर्दा मान रहे हो?''
''नहीं माँ मुर्दा तो उन्हें भी नहीं माना जाता। तुम हर अच्छी बात का बुरा अर्थ कहाँ से ढूँढ़ लाती हो।''
''पर तुम खुद सोचो। कहीं काँच की चादर बिस्तर पर बिछाई जाती है। काँच पीठ में नहीं चुभ जाएँगे।''

स्टैला ने उन दोनों का संवाद सुना। उसने पवन के जानू पर हाथ मारा, ''आइ गॉट इट। मैम इसे वॉल हैगिंग की तरह दीवार पर लटका लें। पूरी दीवार कवर हो जाएगी।''
पवन ने सराहना से उसे देखा, ''तुम जीनियस हो सिली।''
चादर प्लास्टिक बैग में डाल कर रेखा के सूटकेस के ऊपर रख दी गई।
रेखा को रात में यही सपना बार-बार आता रहा कि उसके बिस्तर पर शीशे वाली चादर बिछी है। जिस करवट वह लेटती है उसके बदन में शीशे चट-चट कर टूट कर चुभ रहे हैं।
उसने सुबह पवन से बताया कि वह चादर नहीं ले जाएगी। पवन उखड़ गया, ''आपको पता है हमारे तीन हज़ार गिफ्ट पर खर्च हुए हैं। इतनी कीमती चीज़ की कोई कद्र नहीं आपको?''
रेखा को लगा अगर इस वक़्त वह तीन हज़ार साथ लाई होती तो मुँह पर मारती स्टैला के। प्रकट उसने कहा, ''पुन्नू उस लड़की से कहना विल बना कर रख ले हर चीज़ का, मैं वहाँ जा कर पैसे भिजवा दूँगी।''
''आप कभी समझने की कोशिश नहीं करोगी। वह जो भी कर रही है, मेरी मर्ज़ी से, मेरी माँ के लिए कर रही है। अब देखो वह आपके लिए राजधानी एक्सप्रेस का टिकट लाई है, यहाँ से अमदाबाद वह अपनी एस्टीम में खुद आपके ले जाएगी। और क्या करे वह, सती हो जाए।''
''सती और सावित्री के गुण तो उसमें दिख नहीं रहे, अच्छी कैरियरिस्ट भले ही हो।''
''वह भी ज़रूरी है, बल्कि माँ वह ज़्यादा ज़रूरी है। तुम तो अपने आपको थोड़ा बहुत लेखक भी समझती हो, इतनी दकियानूस कब से हो गई कि मेरे लिए चिराग ले कर सती सावित्री ढूँढ़ने निकल पड़ो। वी आर मेड फॉर इच अदर। हम अगले महीने शादी कर लेंगे।''
''इतनी जल्दी।''
''हमारे एजेंडा पर बहुत सारे काम हैं। शादी के लिए हम ज़्यादा से ज़्यादा चार दिन खाली रख सकते हैं।''
''क्या सिविल मैरेज करोगे?'' रेखा ने हथियार डाल दिए।
स्वामी जी से पूछना होगा। उनका शिबिर इस बार उनके मुख्य आश्रम, मनपक्कम में लगेगा।''
''कहाँ?''
''मद्रास से तीस पैंतीस मील दूर एक जगह है माँ। मैं तो कहता हूँ आप वहाँ जा कर दस दिन रहो। आपकी बेचैनी, परेशानी, बेवजह चिढ़ने की आदत सब ठीक हो जाएगी।''
''मैं जैसी भी हूँ ठीक हूँ। कोई ठाली बैठी नहीं हूँ जो आश्रमों में जा कर रहूँ। नौकरी भी करनी है।''
''छोटी-सी नौकरी है तुम्हारी छोड़ दो, चैन से जियो माँ।''
''इसी छोटी-सी नौकरी से मैंने बड़े-बड़े काम कर डाले पुन्नू, तू क्या जानता नहीं है?''
''पर आप में जीवन दर्शन की कमी है। स्टैला के माँ बाप को देखो। अपनी लड़की पर विश्वास करते हैं। उन्हें पता है वह जो भी करेगी, सोच समझ कर करेगी।''

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