शुषा लिपि
सहायता

अनुभूति

16. 1. 2003 

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इस सप्ताह
नये युग कहानियों के क्रम में तीसरी कहानी भारत से सूर्यबाला की
टी वी त्रासदी
दादी और रिमोट

साफ–सुथरा चांटा–पोंछा धर।  एक
कोने में उनकी कोठरी।  पदें ढंकी
खिड़की, तिपाई,  जग में पानी और
तिपाई पर बिस्कुट का पाकिट भी। 
और तो और उनकी खाट के ऐन सामने
एक छोटा टी•वी• भी। इन सबके
बीच पूरी निगरानी के साथ दादी को
स्थापित कर दिया गया।  नल की
टोटियां खोल बंद करके बताई गई।
खिड़की के हुक और दरवाजों के
हैंडल।  कमोड में पानी चलाने की
तरकीबें।इस स्थापना–पर्व के बीच ही
बेटे के बेटे ने पुट्ट से रिमोट की बटन
दबा दी। 
°
आज सिरहाने
हिन्दी साहित्य की नयी पुरानी पुस्तकों
से परिचय के इस नये स्तंभ में
श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास

 
राग विराग
से संक्षिप्त परिचय
°
कलादीर्घा में
कला और कलाकार के अंतर्गत जामिनी राय 
से परिचय उनकी कलाकृतियों के साथ
°
धारावाहिक में
अभिज्ञात की आत्मकथा तेरे बगैर
की अगली किस्त
जो शब्दों की कमी के लिए क्षमा मांगते हैं
°
निबंध में
नव वर्ष के अवसर
पर नरेश भारतीय का लेख

नव वर्ष नव संकल्प
°

निमंत्रण

अभिव्यक्ति की ओर से 'कथा महोत्सव 2003' के लिये भारत के नागरिक व निवासी  हिन्दी कथाकारों की कहानियां आमंत्रित की जाती हैं। कहानी का आकार 3000 शब्दों से 5000 शब्दों के बीच होना चाहिये। कहानी का विषय कुछ भी हो सकता है पर उसमें भारत के हवा–पानी की खुशबू होना ज़रूरी है।
   
विस्तृत सूचना

 

पिछले सप्ताह

°

परिक्रमा में 
दिल्ली दरवार के अंतर्गत भारत की
ताज़ातरीन घटनाओं का लेखा जोखा
बृजेश कुमार शुक्ला के शब्दों में
भारत में मेट्रो 
और सस्ती दूरसंचार सेवा


°

प्रेरक प्रसंग में
संसार में प्रणियों और वस्तुओं की
उपयोगिता के विषय में मानस त्रिपाठी
की प्रेरणाप्रद रचना
उपयोगिता

°

महानगर की कहानियां
में महानगर की संवेदनाओं को समेटती बसंत आर्य की लघुकथा
बारिश

°

रसोईघर में
नये वर्ष में प्रस्तुत है शाकाहारी मुगलई
का मस्त ज़ायका। इस अंक में 
प्रस्तुत कर रहे हैं
पनीर के सीक कवाब

°

कहानियों में
कंप्यूटर कहानियों के क्रम में दूसरी कहानी भारत से राजेश जैन की
प्रोग्रामिंग

यह इक्कीसवीं सदी के संध्याकाल का एक भारतीय महानगर हैं – सम्पूर्ण परिवेश 'इंटरनेट' की न दिखने वाली सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक तरंगों के गसे हुए जाल में बंधा पड़ा है।  'हार्ड प्लास्टिक' की दीवारों से बने हुए अपार्टमेंट्स में लोग बैठे–बैठे पूरा कारोबार कर रहे हैं।  सड़कों पर बाहर तभी निकलते हैं जब पर्यटन की इच्छा हो या बदलाव के लिए वाकई किसीसे रूबरू मिलना हो, अन्यथा टी•वी• साइज के 'पावडा' (पर्सनल आडिओ विजुअल डिवाइस एपरेटस) घर–घर में कल्पवृक्ष की भांति लगे हैं और अपने कमाए हुए 'मेन मिनट्स' खर्च करके लोग अपने–अपने 'पावडा' से अपना अपना काम कर रहे हैं
°

सप्ताह का विचार

आशा से दीर्घजीवी कोई वस्तु 
नहीं होती।
प्रेमचंद°

 

अनुभूति में


रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' और राजेश जोशी की
बीस से अधिक नयी कविताएं

–  साहित्य समाचार  –

° पिछले अंकों से °
°

हास्य व्यंग्य में महेश द्विवेदी का लेख
मेरी प्रेमिका को लाओ कार पाओ
°

फुलवारी में लोक कथाओं के क्रम में कन्नड़ लोककथा पुण्यकोटि गाय
और कविता खिड़की पर गमले
°
पर्व परिचय में क्रिसमस के विषय में
गीतांजलि सक्सेना का लेख
क्रिसमसःकुछ तथ्य
और 

मकर संक्रांन्ति के अवसर पर
डा गणेश कुमार पाठक की कलम से
मकर संक्रांति : एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण
°

संस्मरण में रानी पात्रिक की मधुर
स्मृतियां
क्रिसमसः जो ढोलक की 
थाप पर पूरा हुआ
°

पर्यटन में वियना के दार्शनिक स्थलों
की जानकारी पर्यटक की कलम से
विचरना वियना में
°

फिल्म इल्म में इस माह की 
प्रमुख फिल्मों
कर्ज, रिश्ते, मसीहा 
और साथिया
से परिचय

°
कहानियों में
 यू के से शैल अग्रवाल की कंप्यूटर
कहानी
सूखे पत्ते
°
कहानियों में अन्विता अब्बी की
कहानी
रबरबैंड
°
सहित्य संगम में लक्ष्मी रमणन की
तमिल कहानी
का हिंदी रूपांतर
टूटा हुआ स्वर
°

परिक्रमा में
लंदन पाती के अंतर्गत यूके से शैल अग्रवाल प्रस्तुत कर रही हैं बीते साल पर एक विहंगम दृष्टि
अल्विदा दो हज़ार दो
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प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
     सहयोग : दीपिका जोशी
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  साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला