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 १. ६. २००९

इस सप्ताह- यूएसए से उमेश अग्निहोत्री की कहानी मैं विवाहित नहीं रहना चाहता
गीता सोच रही थी कि क्रिस के साथ असली बातें तब होंगी जब वे दोनों अकेले होंगे। रात को जब बच्चे सो चुके होंगे और वे दोनों अपने बेडरूम में होंगे अपने बिस्तर पर एक-दूसरे की तरफ़ मुँह किए लेटे हुए, एक-दूसरे की आँखों में भीतर तक देखते हुए...
यों बातें तो उनमें होती आ रही थीं। जो बातें हो रही थीं वे भी काम की बातें थीं। जब चारों बच्चों को साथ लेकर वह उसे एअर-पोर्ट लेने गई थी, दोनों ने बातें की थी, बल्कि एक-दूसरे को गले भी लगाया था। बातें उनमें तब भी हुई थीं जब वे फैमिली - वेन में एअर-पोर्ट से घर लौटे थे। वह कार चला रही थी, और कृष्ण उसकी बग़ल में पैसेंजर-सीट में बैठा था। सबसे पीछे बूस्टर सीटों पर बैठे इरमा और एडवर्ड उछल-उछल कर तरह-तरह के सवाल पूछते रहे थे, ''पापा, अब तो आप वॉर में नहीं जाओगे? पापा, क्या हमें कल टायेज़ स्टोर ले चलोगे? पापा...पापा... और जब उन्हें कुछ न सूझता तो वे स्कूल में मिले अपने ग्रेड्स के बारे में ही बताने लगते, या फिर आपस में ही लड़ने लगते।
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अनूप शुक्ला का व्यंग्य
होना चीयर बालाओं का

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वीरेंद्र सिंह का निबंध
समकालीन गीतकारों की रचना दृष्टि

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धारावाहिक में प्रभा खेतान के उपन्यास
आओ पेपे घर चलें का बारहवाँ भाग

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पराग मांदले का नगरनामा
करोगे याद तो...  (उज्जैन)
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पिछले सप्ताह

अशोक चक्रधर का व्यंग्य
जय हो की जयजयकार

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डाकटिकटों के स्तंभ में प्रशांत पंड्या द्वारा
डाक टिकटों पर आपका फ़ोटो

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धारावाहिक में प्रभा खेतान के उपन्यास
आओ पेपे घर चलें का ग्यारहवाँ भाग

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समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
भारत से प्रवीण पंडित की कहानी कबीरन बी

कबीरन बी का असली नाम मैं भूल गया। सच तो यह है कि अपना असली नाम खुद कबीरन को भी याद नहीं रहा होगा। जाँच-परख करनी हो तो कोई अल्लादी के नाम से आवाज़ लगा कर देख ले। कबीरन न देखेगी, न सुनेगी और ना ही पलटेगी। अगल-बगल झाँके बिना सतर निकलती चली जाएगी, जैसे अल्लादी से उसका कोई वास्ता ही ना हो। शक नहीं कि कबीरन बी का असली नाम- यानि अब्बू का दिया हुआ नाम अल्लादी ही था। अब पैदायशी नाम-ग्राम पर तो किसी का ज़ोर ही क्या? लेकिन जिस घड़ी अल्लादी ने बातों को समझना शुरू किया, उसे लगने लगा था कि वो सिर्फ़ अल्लादी नहीं है। ये बात दीगर है कि यह समझ उसे ज़रा जल्दी पैदा हो गई। वैसे वो जो पूरी-पूरी दोपहरी महामाई के थान पर जाकर बैठती थी, कोई सोची समझी बात नहीं थी। बस बैठती थी, लेकिन करती क्या थी? लोग कहते हैं कि कभी गाती- कभी गुनगुनाती।
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अनुभूति में-
कुमार रवीन्द्र, श्रद्धा जैन,  मेहेरवान राठौर, रामनिवास मानव और अभिनव शुक्ला की नई रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ- ३० मई को अचानक मौसम का पारा गर्म हुआ और यह ५०-५१ डिग्री सेल्सियस पर जा टिका। ...  आगे पढ़े

रसोई सुझाव- नूडल्स का चिपचिपापन दूर करने के लिए उबालते समय उसमें थोड़ा सा तेल डालें और उबालने के बाद ठंडा पानी।

पुनर्पाठ में - १ दिसंबर २००१ को प्रकाशित क्रांति त्रिवेदी की कहानी फूलों को क्या हो गया

क्या आप जानते हैं? कि कंबोडिया स्थित अंकोरवाट मंदिर विश्व का सबसे बड़ा मंदिर है।

शुक्रवार चौपाल- आज विशेष अवसर था चौपाल की दूसरी वर्षगाँठ का। इस उपलक्ष्य में फ़िल्मशो, आशु-अभिनय और रात्रिभोज की तैयारियाँ... आगे पढ़ें

सप्ताह का विचार- बुद्धि से विचारकर किए गए कर्म ही सफल होते हैं। - महाभारत


हास परिहास

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सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

नवगीत की पाठशाला- जहाँ नवगीत लिखने, पढ़ने, सीखने और सिखानेवालों का मेला है।

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