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२१. . २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
सोम ठाकुर, हरीश दरवेश, सुमन केशरी, भारतेन्दु मिश्र और रूपा धीरू की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- अंतर्जाल के संसार में सबसे लोकप्रिय भारतीय पाक-विशेषज्ञ शेफ-शुचि के रसोईघर से राजस्थानी व्यंजनों की शृंखला में- गट्टे की कढ़ी।

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु- आवाज से डर

बागबानी में- बगीचे की देखभाल के लिये टीम अभिव्यक्ति के अनुभवजन्य अनमोल सुझाव- इस अंक में- खरपतवार से बचाव

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १६ मई से ३१ मई २०१२ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२२ के लिये नवगीत का विषय है गर्मी के दिन। विस्तृत विवरण के लिये नवगीत की पाठशाला देखें। 

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है- १ अक्तूबर २००४ को प्रकाशित, भारत से सुकेश साहनी की कहानी— पैन

वर्ग पहेली-०८२
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में भारत से
स्नेलता की कहानी- अम्मा जी का मोबाइल

ट्रिन-ट्रिन, ट्रिन-ट्रिन टेलीफोन की घंटी बजी, अम्माजी ने टेलीफोन की तरफ देखा, रिंकू दौड़ कर आया, रिसीवर उठा लिया, शुरू हो गया हाँ-हाँ बोलो कैसा रहा कल का मैच, कौन-कौन जीता, ...अच्छा हाँ-हाँ ...मम्मी ने नहीं जाने दिया ...बातें करता रहा। अम्मा जी सुनती रहीं। कैसे मजे से बातें कर रहा है। जब पहले दिन फोन लगवाया था तभी रवि ने कहा, "अम्मा लो कर लो बात, अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं ... जिस बिटिया से चाहो उससे बैठी-बैठी बातें कर लिया करो। फोन पर आवाज़ कैसी मीठी लगी थी जब रिसीवर में उन्हें छुटकी की आवाज़ सुनाई पड़ी थी। लगा जैसे सामने ही बैठी हो। कितनी साफ़ साफ़ आवाज़ सुनाई दे रही थी। बातें करके बिल्कुल ऐसा लगा जैसे आमने सामने बातें हो रही हो। बस बोलने वाला नहीं दिखाई देता, मगर कोई बात नहीं, सुनाई तो देता है। उसके बाद बस अम्मा जी को हर समय लगता कब छुटकी का फोन आए कब छुटकी अम्मा से बातें करें ...हाँ अब तो वह अपनी बहन हेमा और कन्नौ से भी बातें कर सकती हैं। विस्तार से पढ़ें...
*

अंतरा करवड़े की लघुकथा
त्याग
*

गोविंद सिंह का आलेख
साहित्य और मीडिया

*

शशि पाधा की कलम से
दृश्य, पटकथा, पात्र- एक संस्मरण
*

पुनर्पाठ में कला और कलाकार
के अंतर्गत-
जतीन दास से परिचय

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पिछले सप्ताह-


कमलेश पांडेय का व्यंग्य
संत सुनेजा
*

वेदप्रकाश अमिताभ का निबंध
गीत में घर और गाँव- अपनी जड़ों की तलाश

*

डा. रवीन्द्र अग्निहोत्री का आलेख
इजराइल में हीब्रू-संकल्प का बल
*

पुनर्पाठ में हेमंत शुक्ल मोही की
कलम से-
बाल फिल्मों के प्रेरणास्रोत
*

समकालीन कहानियों में भारत से तरुण भटनागर की कहानी- देश तिब्बत राजधानी ल्हासा

जब तक मैंने वहाँ के बाशिंदों को नहीं देखा था, पहले-पहल वह गाँव ठेठ ही लगा। यह बात थी उन्नीस सौ अस्सी की। वह गाँव इतना ठेठ लगा था, कि लगता है वह आज भी जस का तस है। रुका हुआ और अ-बदला। छत्तीसगढ में वह समुद्र तल से सबसे अधिक ऊँचाई पर बसी जगह है। वहाँ के रहवासी हमारे यहाँ के नहीं जाने जाते हैं। उन लोगों को देखकर उस गाँव का ठेठपन चुकने लगता है और उसकी जगह अजीब सा बेगानापन घिर आता है। लंबे बीते समय ने यह जतलाया कि चपटी खोपडी वाले ये लोग दूसरों से अलग नहीं हैं, सिवाय इसके कि वे अलग दिखते है। ...और यह भी कि इस गाँव में बीते पचास सालों में और उस दिन जब मैं वहाँ गया था, बीत चुके छब्बीस सालों में, उन्होंने यह मानने की भरसक कोशिश की है, कि यह जमीन, यह आकाश, यह जंगल, दूर तक फैले हरे घास के मैदान, लोग, जानवर...सब उनके ही तो हैं।  वे आज भी एक झूठा ढाँढस खुद को देते हैं। विस्तार से पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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